बाड़ी से सब्जी बेचकर अपने दैनिक खर्च के लिए निष्चिंत हुआ धरमपाल का परिवार
कोरिया / कभी दूसरे के खेतों में काम करके अपने लिए रकम जुटाने वाले किसान के लिए उनकी बाड़ी में ही बना एक कुंआ परिवार के लिए नई खुषियां लेकर आया है। अपने दैनिक निस्तार के लिए पेयजल के साथ ही मेहनत करने वाले इस परिवार को अब रोजगार की चिंता भी नहीं रही। खड़गंवा के दूरस्थ गांव पटमा का एक किसान परिवार है जिसके मुखिया श्री धरमपाल हैं। इनके परिवार में चार सदस्य हैं। छोटी सी खेती के बारिष आधारित होेने के कारण आर्थिक तंगी से गुजरने वाले इस परिवार के लिए अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से बना कुंआ बहुपयोगी संसाधन के रूप में साबित हो रहा है। ग्राम पंचायत पटमा में रहने वाले धरमपाल का जीवन पहले उतना सरल नहीं था। पहले उन्हे पेयजल के साथ ही दैनिक निस्तार के लिए घर से दूर हेंडपंप तक जाना होता था। यह काम गर्मियों के साथ ही बारिष मे काफी कष्टदायक होता था। इसके साथ ही बारिष आधारित खेती के बाद वह साल के 10 महीने लगभग रोजगार की चिंता रहती थी। महात्मा गांधी नरेगा के तहत अकुषल श्रम के अलावा उन्हे गांव में ही दूसरे के खेतों में काम करना मजबूरी थी।
इसी जद्दोजहद के बीच वह गांव में होने वाली हमर गांव हमर योजना के ग्राम सभा में पहुंचे और उन्हे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से बनाए जाने वाले कुंए की जानकारी हुई। उन्होने वहीं अपना आवेदन ग्राम पंचायत को देकर घर की बाड़ी में कुंए बनाने की मांग रखी। हितग्राहियों के लिए चयन के प्राथमिकता क्रम की सूची में आने के कारण उनके लिए कुंए बनाने की मांग को ग्राम पंचायत ने प्रस्तावित कर जनपद पंचायत को भेज दिया। तकनीकी प्रस्ताव के आधार पर जिला पंचायत से श्री धरमपाल के निजी भूमि पर कुंए बनाने के लिए एक लाख 80 हजार रूप्ए की प्रषासकीय स्वीकृति प्रदान की गई। लाकडाउन के दौरान उन्हे अपने ही कुंए में काम करके एक ओर रोजगार भी प्राप्त हुआ और उनका एक संसाधन भी तैयार हो गया। इस परिवार ने दस हजार रूपए से ज्यादा का मजदूरी भुगतान प्राप्त किया।
कुंआ खुदाई पूरी हो जाने के बाद से ही पानी की पर्याप्त उपलब्धता हो गई। मेहनती श्री धरमपाल ने अपने बाड़ी में ही मिर्ची और बैंगन की खेती प्रारंभ कर दी। पहली फसल से ही उनके परिवार को पांच हजार रूप्ए का लाभ हुआ और अब कुंआ पूरा बन जाने के बाद से लगातार उनका परिवार सब्जी बेचकर प्रतिमाह 4 से 6 हजार रूप्ए कमाने लगा है। श्री धरमपाल कहते हैं अब रेाजगार की चिंता नहीं रही। घर में ही पेयजल मिलने लगा है और अब अपने बाड़ी से ही रोजी-रोटी का जुगाड़ बन गया है। एक छोटे से संसाधन से ही ग्रामीण किसान परिवार के जीवन की राह सुगम हो गई है।