जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीजो की सेवा करने वाले योद्धाओं पर फिर लटकी बेरोजगारी की तलवार, सरकार की बेरुख़ी से खड़ी हुई रोजी रोटी की समस्या

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शहडोल। कोविड-19 की भयावकता को देखते हुए उससे निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने शहडोल सहित पूरे प्रदेश मेंj अस्थाई तौर पर भर्तियां की गई थी, वर्षाे से पढ़ाई लिखाई करने के बाद भी बेरोजगारी की मार झेल रहे हजारों नौजवानों के लिए अस्थाई भर्तियां ही किसी अमृत से कम नहीं थी। नियमत: भर्तियां संपन्न हो गई, चुनावों से पहले कोरोना का कहर ऑन रिकार्ड कम हुआ तो, छटनी की भी बातें सामने आने लगी, शहडोल सहित पूरे प्रदेश में अस्थाई तौर पर भर्ती हुए कर्मचारियों ने आज शनिवार को अपनी मांगों को लेकर कलेक्टर सहित स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों को ज्ञापन सौंपने का कार्यक्रम रखा था, बेरोजगारों ने उक्त कार्यक्रम के लिए विभाग से अनुमति और सूचना न सिर्फ शहडोल बल्कि पूरे प्रदेश में दी थी, जिसके बाद ही वे आज अपना मांग पत्र लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे।
कलेक्टर डॉ. सतेन्द्र सिंह ने स्वास्थ्य कर्मियों से भेंट कर उन्हें यह पत्र वरिष्ठ कार्यालय तक पहुंचाने का आश्वासन दिया, लेकिन इसी बीच शहडोल जिला चिकित्सालय से आई एक खबर ने मानों स्वास्थ्य कर्मियों के पांव के नीचे की जमीन खसका दी। जिला चिकित्सालय में पदस्थ महिला सिस्टर ने स्वास्थ्य कर्मियों को उक्त ज्ञापन सौंपने के मामले को लेकर 7 दिवस की अनुपस्थिति दर्ज करने की बातें कहीं गई, वहीं अस्पताल के मुखिया ने भी एक माह का वेतन शून्य करने की बातें कहीं। हालाकि बेरोजगारी झेल रहे कर्मचारियों ने भविष्य की चिंता व भय के कारण इस मामले की लिखित शिकायत या अधिकारिक बयान नहीं दिये, लेकिन नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि संविधान से प्रदत्त मौलिक अधिकारों को भी हमसे छीना जा रहा है, अपनी बात रखने, ज्ञापन सौंपने तथा अभिव्यक्ति की आजादी तो भारत के संविधान में हर नागरिक को दी हुई है, लेकिन बेरोजगारों को अनुपस्थिति और नौकरी से हटा देने का भय दिखाकर उनके मौलिक अधिकारों का हनन नौकरशाहों द्वारा किया जा रहा है।

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