समय से पहले जन्मे बच्चे को होती है विशेष देखभाल की जरूरत।

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जगदलपुर 16 नवम्बर । महिलाओं के लिए बेहद खास होता है मां बनने का एहसास। इस अवस्था में उन्हें सबसे ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत भी होती है क्योंकि इस दौरान वह खुद के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे का भी ख्याल रख रही होती हैं। ऐसे में कई बार महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान ऐसी स्थिती आ जाती है, जब उन्हें समय से पहले ही प्रसव करवानी पड़ती है जिसे प्रीमैच्योर डिलीवरी कहते हैं। समय पूर्व प्रसव विश्व भर में शिशु मृत्यु का बड़ा कारण है|
समय से पहले जन्‍म लेने वाले शिशु की देखभाल करने के उपाय को लेकर हर साल 17 नवंबर को दुनियाभर में समय से पहले जन्‍म के बारे में जागरूक करने के लिए प्रीमेच्योरिटी डे मनाया जाता है। यह दिवस समय से पूर्व पैदा होने वाले बच्चों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है| समय पूर्व पैदा हुए बच्चे शारीरिक रूप से अक्सर कमजोर होते हैन और इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता काम रहती है जिसके कारण इन्हे संक्रमण का डर अधिक रहता है |

महारानी अस्पताल, में स्थित मातृ शिशु स्वास्थ्य संस्थान की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ मनीषा गोयल ने बताया समय से पहले जन्में शिशुओं की देखभाल में जरा सी भी लापरवाही बरतना, उनकी जान के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि वह नाजुक और कमजोर होते हैं| ऐसे में उन्हें डॉक्टर की देखभाल में रखना जरूरी होता है। प्रीटर्म बेबी कई दिनों तक हॉस्पिटल में डॉक्टर की निरीक्षण में रहते हैं। घर आने के बाद भी ऐसे बच्चे की देखभाल काफी सावधानी और साफ-सफाई का ध्यान में रखते हुए ही करना चाहिए। प्रीमेच्योर बेबीज को डॉक्टर के कहे अनुसार देखभाल की जरूरत होती है। उसमें जब भी कोई तकलीफ नजर आए, तो डॉक्टर के पास बिना देर किए ले जाएं। ऐसे बच्चे को सांस और आंखों से संबंधित रोग अधिक होते हैं। नियमित रूप से चेकअप कराने से पता चलता रहेगा कि उसका विकास ठीक तरह से हो रहा है या नहीं। अगर महिला 17 साल से कम या 35 वर्ष से अधिक हैं ऐसे में प्रीमैच्योर डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि गर्भवती महिला बहुत दुबली या अंडरवेट न हो।

प्रीमेच्योर पैदा हुए बच्चों को सामान्य बच्चों के मुकाबले ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, जैसे अपरिपक्व फेफड़ों व मस्तिष्क की वजह से उसे सांस लेने में कठिनाई होती है. सांस लेने की प्रक्रिया में लंबे विराम को ऐपनिया कहते हैं, जो अपरिपक्व दिमाग के कारण होता है। प्रीमैच्योर बच्चे के रिफ्लैक्स चूसने और निगलने के लिए कमजोर होते हैं जिससे उसे अपना आहार प्राप्त करने में मुश्किल होती है।
ऐसे बच्चों में गंभीर जटिलताएं जल्दी विकसित हो जाती हैं जैसे रक्तधारा में संक्रमण इस प्रकार के संक्रमण बच्चे की अविकसित रोगप्रतिरोधक प्रणाली की वजह से होते हैं। कुछ बच्चों के दिमाग में रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है किन्तु अल्पकालिक असर के बाद ये ठीक हो जाते हैं। ऐसे बच्चे को रक्त संबंधी समस्याओं का भी जोखिम रहता है. जैसे ऐनीमिया और शिशु पीलिया। इन की वजह से बच्चे को कई बार खून चढ़ाने तथा फोटोथेरैपी लाइट की आवश्यकता पड़ती है.

गर्भावस्था में महिला को पहले से ज्यादा विटामिनों जैसे फौलिक ऐसिड, कैल्सियम व आयरन की जरूरत होती है. गर्भधारण से कुछ महीने पहले से ही इन विटामिन्स का सेवन शुरू कर देने से गर्भावस्था के दौरान बाद में कमी पूरी करने में मदद मिलती है. पूरा आराम और पर्याप्त पानी व तरल पदार्थों का सेवन भी जरूरी होता है।

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