समूह की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए दिया जा रहा प्रशिक्षण

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20 समूहों की महिलाओं ने बांस से टेबल लैंप, विंड चाइम, रेनमेकर झूला, मोबाइल स्पीकर, हैंगर, चिमटा डस्टबिन बनाना सीखा

रायपुर 04 नवंबर 2020/ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप महिला स्व सहायता समूहों का कौशल उन्नयन कर उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास राज्य के सभी जिलों में अनवरत रूप से जारी है। छत्तीसगढ़ शासन की सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में निर्मित गौठानों में महिला समूहों द्वारा जैविक खाद के उत्पाद के साथ ही अन्य आयमूलक गतिविधियां शुरू की गई है। इसका उद्देश्य महिलाओं को संगठित एवं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना है। गौठानों में आजीविका ठौर भी बनाए जा रहे हैं, ताकि महिला समूह यहां आजीविका की गतिविधियां बेहतर तरीके से संचालित कर सके। महिला समूहों को उनके द्वारा अपनाए जाने वाले रोजगार व्यवसाय के लिए शासन के विभिन्न विभागों द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसी सिलसिले में एनआरएलएम (बिहान) के तहत महिलाओं को बाँस से दैनिक उपयोग की विभिन्न चीजें निर्मित करने का प्रशिक्षण दिया गया।
जिला पंचायत दुर्ग सीईओ ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं को अलग-अलग तरह के उत्पाद निर्माण की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि कौशल संवर्धन के साथ-साथ आजीविका के साधन भी निर्मित हों। इको फेंडली एवं सस्टेनेबल लाइवलीहुड में बाँस के बहुआयामी उपयोग को देखते हुए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। बाँस आसानी से उपलब्ध होता है। इसलिए इनसे बहुत से उपयोगी सामग्रियों का निर्माण सीख कर महिलाओं ने एक नया हुनर भी सीखा। महिलाओं को प्रशिक्षित करने आए ख्याति प्राप्त प्रशिक्षक श्री जमान ने बताया कि महिलाएं अपने घर पर ही रह कर बाँस से दैनिक उपयोग की सैकड़ों चीजें बना सकती हैं और विक्रय कर आमदनी अर्जित कर सकती हैं। जिससे पूरे परिवार का जीवन स्तर भी सुधरता है।
प्रशिक्षण में महिलाओं को केवल बाँस के उत्पाद बनाना ही नहीं सिखाया गया, बल्कि लंबे समय तक उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए बाँस के रखरखाव के बारे में भी सिखाया गया। छत्तीसगढ़ में बाँस यहाँ की परंपरा से जुड़ा हुआ है मकान बनाने से लेकर धार्मिक अनुष्ठान तथा दैनिक उपयोग की सूपा, टोकरी, झऊँहा, पर्रा आदि का निर्माण बाँस से किया जाता है। लेकिन अब तक यह कार्य केवल एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता था। इस प्रशिक्षण में महिलाओं को टेबल लैंप, विंड चाइम, रेनमेकर झूला, मोबाइल स्पीकर, कपड़े लटकाने का हैंगर, साड़ी लटकाने का हैंगर चिमटा डस्टबिन इत्यादि निर्मित करना सिखाया गया। जो एक तरह से इनके काम में वैल्यू एडिशन है। प्रशिक्षण में महिलाओं को बाँस से चारकोल बनाना भी सिखाया गया। बैम्बू चारकोल का उपयोग एयर फ्रेशनर से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में होता है। प्रशिक्षण में 20 स्व सहायता समूह की महिलाएं शामिल हुई। जिन्होंने बाँस से दैनिक उपयोग की एवं सजावट की सामग्रियां बनाना सीखा। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य महिलाओं का कौशल उन्नयन था।

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