किसी ने बचपन बिताया तो किसी ने जवानी, चिरमिरी से पलायन की अब है दुख भरी कहानी

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पलायन का दंष झेल रहे चिरमिरी वासियों पर दोहरी मार…?
हो सकते है घर से बेघर, एसईसील के 750 के क्वाटर असुरक्षित घोषित
डिसेंट हाउसिंग के नाम पर बीते साल फूके थे लाखों रूपये

सूनी सड़के खंडहर मकान, विराना होता शहर. अब बनेगी चिरमिरी की नई पहचान ,जनप्रतिनिधियों की कुद्रष्टि के है ये निशान

चिरमिरी – कोयलांचल नगरी लम्बे समय से पलायन का दंष झेल रहा है चूंकि कोयलांचल का कोई इस्थायित्व नही है, इस वजह से यहां के रहवासी पलायन करने को सोंच रहे है। इसी बीच कई परिवारों को दोहरी मार झेलनी पड रही है। यहां के 750 क्वाटरों को एसईसीएल कुरासिया प्रबंधन के द्वारा असुरक्षित घोषित कर दिया है। इसके साथ ही तिमंजिला भवन की प्रत्येक ब्लाक में इस तरह का लेख पेंटिंग करा दिया है कि यह आवास अब असुरक्षित है बता दें कि इस भवन में बीते साल एसईसीएल ने लाखों रूपये पानी की तरह बहा कर डिसेंट हाउसिंग का कार्य कराया था अब इन मकानों की रिपेयरिंग कराने के बजाय प्रबंधन इन करोडों की बिल्डिंग को असूरक्षित बता कर इस ओर से अपने हाथ खिंच रहा है। वहीं दूसरी ओर यहां दषकों से निवासरत रहवासियों को अपने सर के उपर से छत छिन जाने पर वे मायूस है।

किसी ने बचपन बिताया तो किसी ने जवानी
इन मकानों में किसी ने अपना बचपन बिताया है तो किसी ने अपनों को खोया भी है। यहां रह रहे लोगों की भवनाऐं इन घरों से कुछ इस तरह जुड चुकी है कि वे इन भवन को छोडना ही नही चाहते है। वहीं एसईसीएल के द्वारा आवासों पर काले पेन्ट से असुरक्षित मकान आवास के बोड लगाए जाने के बाद अब यहां के रहवासियों के बीच आसरा छिन जाने का भय बना हुआ है।

कर्मचारी समेत पल्लेदार भी है निवासरत, –
इन मकानों में ज्यादातर लगभग 70 फिसदी लोग रोज कमाने-खाने वालों में से है इनमें से कई लोग प्रधानमंत्री आवास के लिए भी आवेदन कर चुके है लेकिन कई लोग योजना का लाभ लेने दस्वावेज समेत स्थायी जमीन के नियम में फस कर रह गए है। लोगों की माने तो कोयलांचल नगरी चिरमिरी कहे जाने वाले नगरपालिक निगम चिरमिरी में पट्टे की जमीन ही नही है बमुष्किल यहां 100 फिसदी में से महज 5 फिसदी लोग ही पट्टाधारी है। जिसके कारण उन्हे योजनाओं का लाभ भी नही मिल सका है।

एसईसीएल के क्वार्टरों में 30 प्रतिशत कर्मी –

आजाद नगर 750 क्वार्टरों में एसईसीएल कर्मचारियों का यदि आंकड़ा देखा भी जाए तो इन क्वार्टरों में लगभग 30-35 प्रतिशत ही एसईसीएल कर्मचारी निवासरत होंगे। बाकी बचे 70-75 प्रतिशत क्वार्टरों में लगभग 25 सालों से प्राइवेट लोग अपना सिर छुपाए हुए हैं।

क्या कहते है क्षेत्रवासी –

दिहाड़ी मजूर कहां जाऐंगें-
स्थानीय निवासी नीली पाल कहती हैं कि यहां रोज सुबह कमा कर शाम को दो रोटी खाने वाले लोग भी निवासरत हैं। जिन पर सर की छत छिन जाने का खतरा सता रहा है अब ऐसे में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मजदूर कहां जाएंगे।

स्थानीय निवासी राजकुमारी कहती हैं कि हम लगभग सन 94 से आजाद नगर के क्वार्टर में निवासरत है। मेरे पति ड्राइवर है हमारे पास इतना पैसा नहीं कि हम खुद का घर खरीद सके हमारे लिए तो बेघर होने का सपना भी भयावह है।

स्थानीय निवासी लक्ष्मी चक्रवर्ती कहती है कि हमने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत निगम में आवास के लिए आवेदन तो किया था पर नियम कानून में ही पीस कर रह गए है। हमारे पास खुद का स्थाई जमीन ही नहीं है इसलिए आवास योजना में अपात्र की श्रेणी में आ गए है। ऐसा नही कि हमने आवेदन नही किया आवेदन के बाद भी पीएम आवास का लाभ नहीं मिला अब यदि सालों से रह रहे इन आवासों को भी छोडे तो बुढापे में आखिर जाएगें कहां।

रख रखाव में अभाव में जर्जर हुई बिल्डिंग –
कांगे्रस के युवा नेता शिवराम प्रधान कहते हैं कि झोपडी व कच्चे मकान भी 30-35 साल तक सही सलामत होते है। इन भवनों में मरम्मत का अभाव है यदि प्रबंधन चाहे तो इन भवनों में मरम्मत कार्य करा भवन की ओर ध्यान दिया जाए तो यहां के रहवासियों को काफी मदद मिलेगी। पूर्व में प्रबंधन द्वारा डोमनहिल में श्रमिक क्वाटर को रिजेक्ट लिस्ट में डाला था परिणाम यह हुआ की करोडों की बिल्डिंग अब विरान पडे हुए है। यहां जनवरों का डेरा बना हुआ है। असुरक्षित आवास का लेख लिखे जाने से स्थानीय लोग डरे सहमे से हैं। वही हम सब इस संबंध में स्थानीय विधायक और महापौर से अनुनय विनय करेंगे निश्चित ही इस संबंध में वह सकारात्मक कदम उठाएंगे।

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