आत्म निर्भर भारत की ओर मजबूत कदम है छत्तीसगढ़ गो धन न्याय योजना -सुशील आनंद शुक्ला

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रायपुर,छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बड़ी अनूठी योजना शुरू की है जिसे सुनने के बाद सहसा आश्चर्य भी होता है ,सरकार किसानों पशु पालको से गोबर खरीदने जा रही है। इस योजना का मुख्यमंत्री भूपेष बघेल ने नाम दिया है गो धन न्याय योजना । कुछ लोगो के लिए सरकार द्वारा गोबर खरीदने का निर्णय हास परिहास का विषय भले हो लेकिन उपलब्ध संसाधनों का बेहतर प्रबन्धन और उपयोग है गो धन न्याय योजना ।सही मायने में आत्म निर्भर भारत के नारे को साकार करने की ओर छत्तीसगढ़ ने मजबूत कदम बढ़ा दिए हैं। बघेल जैसे नेता जो खेती किसानी ग्रामीण परिवेश से जुडे है वह ग्रामीण जन जीवन से जुडी कोई योजना ले कर आ रहे है तो वह सिर्फ कागजी साबित नही होगी ।इस योजना की सूक्ष्म और दीर्घकालिक परिपेक्ष्य में मीमांसा करने की जरूरत है ।आखिर गोबर क्यो खरीदना चाहते है मुख्यमंत्री ?
जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तो इस सरकार की अपनी शुरुआती योजना यू कहे कि नई सरकार की फ्लेग शिप “योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी ” लागू की गयी इस योजना का भी प्रमुख केंद्र गौधन ही है ।गोठान में पशुओं को एकत्रित कर उनकी सामुहिक देख भाल और चारे पानी की व्यवस्था गोठान में ही किया जाता है । इसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रो में वर्षो से प्रचलित और जो अब लुप्तप्राय हो चुकी है रोका -क्षेका अभियान को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित करने का अभियान चलाया ।रोका क्षेका में ग्रामीण पशुओ को खेतों की ओर जाने से रोकने का समन्वित प्रयास करते है ।इसके लिए पुराने समय से सामूहिक रखवार लगाने की परम्परा थी सारा गांव मिल कर रखवार को अपने खेत के रकबे के आधार पर प्रति एकड़ धान मजदूरी के तौर पर देता था ।मुख्यमंत्री ने रोका छेका अभियान में पशुओं को खेतों में जाने से रोक कर गौठान में लाने का आह्वान किया है।नरवा गरवा घुरवा बाड़ी ,रोका छेका ,और गो धन न्याय योजना तीनो के केंद्र बिंदु में पशु पालन और खेती किसानी का संरक्षण है
।लाखो पशु गांव में आवारा घूम कर चारा पानी के लिए परेशान थे ,जो खेतो में फसल को नुकसान पहुचाते थेउनका सही वैज्ञानिक प्रबन्धन है ये तीनो कार्यक्रम ।राज्य की कृषि परपंरा में आमूल चूल परिवर्तन लाने वाले सिद्ध होंगे ये कार्यक्रम । छत्तीसगढ़ के 75 फीसदी से भी अधिक किसान एक फसली खेती ही करते है । एक फसल लेने के बाद वर्ष के लगभग 7 महीने राज्य के किसान और खेत दोनों ही खाली रहते है । कोई इक्का दुक्का किसान दूसरी फसल लेना भी चाहे तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या अपने फसल को चराई से बचाने की आती है ।गोठान व्यवस्था सुदृढ़ होने और रोका छेका अभियान से इस परेशानी से निजात मिलेगी।गो धन न्याय योजना से भी लोगो को अपने पशुओं को बांध कर रखने की प्रेरणा मिलेगी क्योकि उन्हें अपने पशुओं से गोबर के रूप में एक अतिरिक्त आय की उम्मीद दिखेगी ।यदि सारे लोग अपने पशुओं को गोठानों और अपने गो शालाओ में बांधने लगेंगे तो जो इक्का दुक्का लोग दूसरी फसल लेते है निश्चित तौर पर उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी।दो तीन फसल लेने पर किसानों की आमदनी बढ़गी ।कृषि में रोजगार के दिवस बढेंगे।राज्य की अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी ।गो धन न्याय योजना किसानों के साथ साथ सारी मानवता के लिए भी कल्याणकारी साबित होगी ।आज किसान अपनी ऊपज बढ़ाने के लिए बेतहाशा रसायनिक उर्वरको का उपयोग करते हैं।इसके दुष्परिणाम किसी से छुपे नही हैं ।एक तो खेत अपनी उर्वरा शक्ति खो रहे दूसरे इन रसायनों के उपयोग के कारण पैदा होने वाला अनाज सब्जी आदि मानव के स्वास्थ्य के जहर साबित हो रहे हैं।रसायनिक उर्वरको के बदले यदि किसान गोबर खाद और गोबर निर्मित वर्मी खाद का उपयोग करने लग जाएगे तो सारा का सारा छत्तीसगढ़ जैविक खेती की ओर क्रांतिकारी कदम बढ़ा देगा ।आज के समय
जैविक कृषि उत्पादों के बाजार में मांग और उसकी ऊंची कीमत किसी से छुपी नही है ।इसके साथ ही गोबर से जैविक खाद का उत्पादन बड़े और व्यापारिक स्तर पर होना शुरू गया तो तुलनात्मक रूप से इसकी कीमत रासायनिक उर्वरकों से कम होगी खेती की लागत भी कम होगी ।
ऐसा लगता है जिस दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नरवा गरवा घुरवा बाडी की परिकल्पना की थी उसी समय उन्होंने गो धन न्याय योजना और रोका छेका के पुनर्जीवन की योजना बना लिया था ।नरवा अर्थात वर्षाजल निर्मित प्राकृतिक जल स्रोत का संरक्षण कर उसका खेतो की सिंचाई विशेष कर बाड़ी में उपयोग ।गोठान में गो वंश को आश्रय उनके गोबर को घूर में एकत्रित कर खेतो की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में उपयोग ।
भूपेश बघेल ने इन योजनाओं के माध्यम से यह भी साबित करने का प्रयास किया की असली गो सेवा गाय के नाम पर नारेबाजी करने ,लक्षेदार भाषण से नहीं गाय के नाम पर उन्माद फैला कर मॉब लीचिंग में नही ।गाय और गो वंश को जन जीवन से जोड़ कर उसकी उपयोगिता को प्रासंगिक बनाने में है। उपयोगिता और प्रासंगिकता के इसी सिद्धांत के कारण द्वापर में भगवान कृष्ण ने भी गोवर्धन पूजा की शुरुआत किया था।
(लेखक छ ग प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता हैं )

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