देवों के देव महादेव :महाशिवरात्रि विशेष

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जोगी एक्सप्रेस
शिव महिमा संकलनकर्ता ए.एन .अशरफ़ी चिरमिरी जिला कोरिया छत्तीसगढ़

1 संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मुखारविन्द से कहलवाया है कि शिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहु मोहि नहिं भावा अर्थात जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता।

देवों के देव महादेव भगवान शिव-शंभू, भोलेनाथ शंकर की आराधना, उपासना का त्यौहार है महाशिवरात्रि। यह पर्व पूरे देश में पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाता है। वैसे तो पूरे साल शिवरात्रि का त्यौहार दो बार आता है लेकिन फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अर्थात अमावस्या से एक दिन पहले वाली रात को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ माना गया है। भगवान शंकर सबका कल्याण करने वाले हैं। अतः महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने मात्र से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। जहां महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है वहीं युवतियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। जबकि छात्र वर्ग को विद्या का वरदान मिलता है। वहीं महाशिवरात्रि का दिन किसी भी शुभ के लिए श्रेष्ठ होता है। महाशिवरात्रि को रात के समय शिवलिंग व शिव मूर्ति की पूजा का विशेष महत्व है
वास्तव में शिव की महिमा अपरंपार है। जिनके कोष में भभूत के अतिरिक्त कुछ नहीं है परंतु वह निरंतर तीनों लोकों का भरण पोषण करने वाले हैं। परम दरिद्र शमशानवासी होकर भी वह समस्त संपदाओं के उद्गम हैं और त्रिलोकी के नाथ हैं। अगाध महासागर की भांति शिव सर्वत्र व्याप्त हैं। वह सर्वेश्वर हैं। अत्यंत भयानक रूप के स्वामी होकर भी स्वयं शिव हैं। शिव अनंत हैं। शिव की अनंतता भी अनंत है। शिव स्वयं आनंदमय हैं। कहते है मानव जब सभी प्रकार के बंधनों और सम्मोहनों से मुक्त हो जाता है तो स्वयं शिव के समान हो जाता है। समस्त भौतिक बंधनों से मुक्ति होने पर ही मनुष्य को शिवत्व प्राप्त होता है। ज्योतिष गणना के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। इस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेता है तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे कष्टों का सामना करना पड़ता है। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं और ऐसे में उनकी आराधना करने मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

भगवान शंकर आदि-अनादि हैं और सृष्टि के विनाश व पुनः स्थापना के बीच की कड़ी हैं। भगवान शंकर को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने का महत्व है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इस सृष्टि से पहले सत और असत नहीं थे, केवल भगवान शिव थे। जो सर्वस्व देने वाले हैं। विश्व की रक्षार्थ स्वयं विष पान करते हैं। अत्यंत कठिन यात्रा कर गंगा को सिर पर धारण करके मोक्षदायिनी गंगा को धरा पर अवतरित करते हैं। श्रद्धा, आस्था और प्रेम के बदले सब कुछ प्रदान करते हैं। शिव की शक्ति रात्रि ही है जो विश्व के समस्त प्राणियों को जीने की राह सिखाता है। बताता है सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, इसके सिवाय कुछ भी नहीं है। अर्थात शिव और शिवत्व की दिव्यता को जान लेने का महापर्व है महाशिवरात्रि। महाशिवरात्रि शिव और पार्वती के वैवाहिक जीवन में प्रवेश का दिन होने के कारण प्रेम का दिन है। यह प्रेम त्याग और आनंद का पर्व है। शिव स्वयं आनंदमय हैं। कहते है मानव जब सभी प्रकार के बंधनों और सम्मोहनों से मुक्त हो जाता है तो स्वयं शिव के समान हो जाता है। समस्त भौतिक बंधनों से मुक्ति होने पर ही मनुष्य को शिवत्व प्राप्त होता है।

शिव को देवाधिदेव महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व पशु-पक्षी एवं समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव की अराधना से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान है- मैं आपकी अनंत शक्ति को भला क्या समझ सकता हूं। हे शिव, आप जिस रूप में भी हों, उसी रूप को मेरा प्रणाम। शिव यानी ‘कल्याण करने वाला’। शिव ही शंकर हैं। शिव के ‘श’ का अर्थ है कल्याण और क का अर्थ है करने वाला। शिव, अद्वैत, कल्याण- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं। शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं। ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं। शिव और शक्ति का सम्मिलित स्वरुप हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों का प्रदर्शक है। शिव औघड़दानी है और दुसरों पर सहज कृपा करना उनका सहज स्वभाव है। अर्थात शिव सहज है, शिव सुंदर है, शिव सत्य सनातन है, शिव सत्य है, शिव परम पावन मंगल प्रदाता है, शिव कल्याणकारी है, शिव शुभकारी है, शिव अविनाशी है, शिव प्रलयकारी है, इसीलिए तो उनका शुभ मंगलमय हस्ताक्षर सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, को सभी देव, दानव, मानव, जीव-जंतु, प्शु-पक्षी चर-अचर, आकाश-पाताल, सप्तपुरियों में शिव स्वरुप महादेव के लिंग का आत्म चिंतन कर धन्य होते हैं। यह कटु सत्य है। ओउम् नमः शिवाय, यह शिव का पंचाक्षरी मंत्र है।

माना जाता है कि जब कुछ नहीं था अर्थात सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान ब्रह्मा के शरीर भगवान शंकर रुद्र रुप में प्रकट हुए थे। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शंकर ने तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त किया था। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया है। इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी इसी दिन हुआ था। इसलिये महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों एवं भगवान शिव के उपासकों का एक मुख्य त्यौहार है। ऐसा भी माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने, व्रत रखने और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं एवं उपासक के हृदय को पवित्र करते हैं। भगवान शंकर के भक्त महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बिल्व-पत्र, बेल फल, बेर, धतूरा, भांग आदि चढ़ाते हैं, पूजन करते हैं, उपवास करते हैं तथा रात्रि को जागरण करते हैं। इस दिन रुद्राभिषेक और जलाभिषेक का भी विशेष महत्व होता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर कई स्थानों पर रात्रि में भगवान शंकर की बारात भी निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का परिचायक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है, जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। महाशिवरात्रि भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। कहते हैं इस व्रत को करने मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति दया भाव उपजने लगता है। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान शिव की सेवा में दान-पुण्य करने व शिव उपासना से उपासक को मोक्ष मिलता है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान शंकर हैं और यह उनकी प्रिय तिथि है। ज्योतिष शास्त्रों में इसे शुभ फलदायी माना गया है और ज्योतिषी महाशिवरात्रि को भगवान शिव की आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं।

महाशिवरात्रि पर्व पर कैसे करें शिव का पूजन
महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिवमंदिरों में श्रद्धालुओं, उपासकों की लंबी कतारें लग जाती हैं। जल अथवा दूध से श्रद्धालु भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। गंगाजल या दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से शिवलिंग को स्नान करवाया जाता है। फिर चंदन लगाकर फूल, फल, बेल के पत्ते अर्पित किये जाते हैं। धूप और दीप से भगवान शिव का पूजन किया जाता है। कुछ श्रद्धालु इस दिन उपवास भी रखते हैं।

कहां करें शिव का पूजन
वैसे तो किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना की जा सकती है। लेकिन किसी निर्जन स्थान पर बने शिव मंदिर की साफ-सफाई कर भगवान शिव की पूजा की जाये तो भगवान शिव शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं।

महाशिवरात्रि पर क्या करें भोजन?
भक्त इस बात का ख्याल रखें कि भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खाता है, वह नरक के दुखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम हो, तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं है। व्रत के व्यंजनों में सामान्य नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करते हैं। लाल मिर्च की जगह काली मिर्च का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग व्रत में मूंगफली का उपयोग भी नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में आप मूंगफली को सामग्री में से हटा सकते हैं। व्रत में यदि कुछ नमकीन खाने की इच्छा हो, तो आप सिंघाड़े या कुट्टू के आटे के पकौड़े बना सकते हैं। इस व्रत में आप आलू सिंघाड़ा, दही बड़ा भी खा सकते हैं। सूखे दही बड़े भी खाने में स्वादिष्ट लगते हैं। तो, जितने आपको सूखे दही बड़े खाने हों उतने दही बड़े सूखे रख लीजिए और जितने दही में डुबाने हों दही में डुबो लीजिये। इस दिन साबूदाना भी खाया जाता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है। इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है। इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। व्रतधारी इसका खीर अथवा खिचड़ी बना कर उपयोग कर सकते हैं। साबूदाना दो तरह के होते हैं एक बड़े और एक सामान्य आकार के। यदि आप बड़ा साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे एक घंटा भिगोने की बजाय लगभग आठ घंटे भिगोये रखें। छोटे आकार के साबूदाने आपस में हल्के से चिपके चिपके रहते हैं लेकिन बड़े साबूदाने का पकवान ज्यादा स्वादिष्ट होता है। यदि आप उपवास के लिए साबूदाने की खिचड़ी बनाते हुए उसमें नमक सा स्वाद पाना चाहते हैं तो उसमें सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें।

महाशिवरात्रि पर्व पर कैसे करें शिव का पूजन
महाशिवरात्रि के दिन सुबह से ही शिवमंदिरों में श्रद्धालुओं, उपासकों की लंबी कतारें लग जाती हैं। जल अथवा दूध से श्रद्धालु भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। गंगाजल या दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से शिवलिंग को स्नान करवाया जाता है। फिर चंदन लगाकर फूल, फल, बेल के पत्ते अर्पित किये जाते हैं। धूप और दीप से भगवान शिव का पूजन किया जाता है। कुछ श्रद्धालु इस दिन उपवास भी रखते हैं।

कहां करें शिव का पूजन
वैसे तो किसी भी शिव मंदिर में भगवान शिव की आराधना की जा सकती है। लेकिन किसी निर्जन स्थान पर बने शिव मंदिर की साफ-सफाई कर भगवान शिव की पूजा की जाये तो भगवान शिव शीघ्र मनोकामना पूरी करते हैं।

महाशिवरात्रि पर क्या करें भोजन?
भक्त इस बात का ख्याल रखें कि भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खाता है, वह नरक के दुखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम हो, तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं है। व्रत के व्यंजनों में सामान्य नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करते हैं। लाल मिर्च की जगह काली मिर्च का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग व्रत में मूंगफली का उपयोग भी नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में आप मूंगफली को सामग्री में से हटा सकते हैं। व्रत में यदि कुछ नमकीन खाने की इच्छा हो, तो आप सिंघाड़े या कुट्टू के आटे के पकौड़े बना सकते हैं। इस व्रत में आप आलू सिंघाड़ा, दही बड़ा भी खा सकते हैं। सूखे दही बड़े भी खाने में स्वादिष्ट लगते हैं। तो, जितने आपको सूखे दही बड़े खाने हों उतने दही बड़े सूखे रख लीजिए और जितने दही में डुबाने हों दही में डुबो लीजिये। इस दिन साबूदाना भी खाया जाता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है। इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है। इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। व्रतधारी इसका खीर अथवा खिचड़ी बना कर उपयोग कर सकते हैं। साबूदाना दो तरह के होते हैं एक बड़े और एक सामान्य आकार के। यदि आप बड़ा साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे एक घंटा भिगोने की बजाय लगभग आठ घंटे भिगोये रखें। छोटे आकार के साबूदाने आपस में हल्के से चिपके चिपके रहते हैं लेकिन बड़े साबूदाने का पकवान ज्यादा स्वादिष्ट होता है। यदि आप उपवास के लिए साबूदाने की खिचड़ी बनाते हुए उसमें नमक सा स्वाद पाना चाहते हैं तो उसमें सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें।

शिव बारात
संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मुखारविन्द से कहलवाया है कि शिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहु मोहि नहिं भावा अर्थात जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए शिवरात्रि में शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्व होता है। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश और पुनःस्थापन के बीच की कड़ी हैं। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। कहते है जब शिव जी बारात ले कर हिमालय के घर पहुंचे तो वे बैल पर सवार थे। उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी थे। सारे बाराती नाच गा रहे थे। सारे संसार को प्रसन्न करने वाली भगवान शिव की बारात अत्यंत मन मोहक थी। इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो गया और पार्वती को साथ ले कर शिव जी अपने धाम कैलाश पर्वत पर सुख पूर्वक रहने लगे।

महात्म्य
पौराणिक मान्यता है कि एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा, ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? शिवजी ने पार्वती को शिवरात्रि के व्रत का उपाय बताया। इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले ही उत्तर-पूर्व में पूजन-आरती की तैयारी कर लेनी चाहिए। सूर्योदय के समय पुष्पांजलि और स्तुति कीर्तन के साथ महाशिव रात्रि का पूजन संपन्न होता है। उसके बाद दिन में ब्रह्मभोज भंडारा के द्वारा प्रसाद वितरण कर व्रत संपन्न होता है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इस व्रत को करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति आपके मन में दया भाव उपजता है।

सुख-शांति-वैभव और मोक्ष
महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण होता है। शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

शिव का अभिषेक
अभिषेक यानी स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है।

जब प्रलय में पूरी सृष्टि का विनाश हो गया था, तब माता पार्वती ने भगवान् शिव को प्रसन्न करने हेतु तपस्या की थी और महाशिवरात्रि के ही दिन उनसे पुनः सृष्टि की रचना करने की प्रार्थना की थी।
इस दिन भगवान् शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।
भगवान् महा विष्णु जब भगवान् शिव के चरणों और ब्रह्मा जी उनके शीश को खोज रहे थे, तब इसी दिन शिव जी उनके समक्ष प्रकट हुए थे।
देवों और असुरों द्वारा क्षीर सागर के मंथन के दौरान निकले हलाहल विष के प्रभाव से सृष्टि की रक्षा करने के लिए भगवान् शिव ने उसका पान किया था। और देवी माँ ने उस विष को उनके कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया था ताकि वो उनके उदर में स्थित सृष्टि के जीवों तक पहुँचकर उन्हें हानि ना पहुँचा सके। इसी कारण भगवान् शिव को ‘नीलकंठ’ और ‘नंजुंडा स्वामी’ कहा जाता है। यह घटना भी महाशिवरात्रि के दिन ही घटी थी।
अपनी कठिन तपस्या के फलस्वरूप अर्जुन ने इसी दिन भगवान् शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था।
वर्षों की कठिन तपस्या और अटल विश्वास के पश्चात् भागीरथ शिवरात्रि के ही दिन माँ गंगा को धरती पर लाने में सफल हुए।
तिरुक्कड़ैयूर में मार्कण्डेय के प्राण लेने का प्रयास करने पर यम धर्मराज को इसी दिन भगवान् शिव ने मृत्युदंड दिया था।
कन्नप्पा नयनार की कथा तो आप सभी ने सुनी होगी। इस अनुकरणीय भक्त ने अपना एक नेत्र निकालकर भगवान् शिव को अर्पित कर दिया था। यह घटना भी महाशिवरात्रि के ही दिन की है।
माता पार्वती ने कठिन तप के बल पर इसी दिन भगवान् शिव के दिव्य रूप का अर्द्ध अंश प्राप्त किया था।

इसी कारण कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन अनेक शुभ संयोग घटित हुए थे और इस दिन को अत्यंत पावन और शुभ फलदायी माना जाता है।

रावण रचित सम्पूर्ण शिव तांडव स्तोत्र का महत्व

जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।

कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।

मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।

सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥

इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥

जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंच कालिम प्रभा-
वलम्बि कंठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कंधरम्‌ ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

जिनका कंठ देश खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली हरिणी की-सी छवि वाले चिन्ह से सुशोभित है तथा जो कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले उन शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-

धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥

इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।

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