कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए बेहद सावधानी बरत रहे अबूझमाड़िया जनजाति

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फाइल फोटो ,क्रेडिट बाय गूगल
रायपुर, कोराना वायरस के संक्रमण केे खिलाफ पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है। लोगों से घर पर ही रहने की अपील की गई है। संक्रमण से रोकथाम के लिए केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा सभी संभव बेहतर उपाय किए जा रहे है। राज्य शासन द्वारा राहत एवं जागरुकता कार्यक्रम भी चलाये जा रहे है। कोरोना संक्रमण के संबंध मे अबूझमाड़ियां जनजाति के लोग भी अपनी जागरुकता का परिचय दे रहे है। अबूझमाड़ नारायणपुर जिले के नक्सल प्रभावित ओरछा विकासखंड का अतिसंवेदनशील एवं नक्सल हिंसाग्रस्त क्षेत्र है। कोराना से बचाव के प्रति उनकी जागरूकता, सजगता राज्य के लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। 
माड़ियां लोगों से जब कोराना से बचाव के संबंध मे बातचीत की जाती है तब वे कहते है पहले हाथ धो फिर भात खाओ। कोराना से बचाव के प्रति उनकी यह जागरूकता अब धीरे-धीरे भीतरी इलाकों के गांव में भी पहुंचने लगी है। अबूझमाड़ एक दुर्गम वन क्षेत्र है,जो चारांे और से पहाड़ों और घने जंगलों से घिरा हुआ है। लेकिन फिर भी यहां के अबूझमाड़िया कोरोना या अन्य गंभीर बीमारी के प्रति काफी जागरूक हो गये है। वे स्वच्छता पर भी ध्यान दे रहे है। इनके जागरुकता के लिए स्वास्थ्य विभाग के मितानिनों, आर.एच.ओ., आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं एवं शाला आश्रमों के शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान है। 
जिले में राज्य शासन द्वारा जनहितकारी योजनायें चलायी जा रही है जिसका लाभ यहँा के आदिवासी उठा रहे है। वर्षो पहले स्थिति ऐसी थी कि लोग बड़ी बीमारी होने पर देवी-देवताओं का प्रकोप मानते थे, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। जिले के अधिकांश क्षेत्रों में अब जरूरी बुनियादी सुविधाएं पहुंच रही है। 
मितानिन द्वारा नियमित रुप से ग्रामीणों का स्वास्थ्य परीक्षण के साथ-साथ दीवार लेखन के द्वारा जागरुकता का कार्य किया जा रहा है। अनपढ़ लोगों को उनकी स्थानीय भाषा में कोराना एवं अन्य बीमारियों के बचाब के संबंध मे जानकारी दी जा रही है। खाने से पहले और बाद में हाथ धोने और स्वच्छता संबंधी बातें बताई जाती है। गांव के किसी व्यक्ति को कोई बीमारी होने पर तुरंत नजदीक आगंनबाड़ी केन्द्र या मितानिनों से संपर्क करने की समझाईश भी दी जा रही है। 

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