सरसों की खेती से कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त कर सकतें है किसान

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 जिलें के 140 हेक्टेयर क्षेत्र में किसान कर रहें सरसों की उन्नत खेती

रायपुर, रायपुर जिले के धरसींवा, तिल्दा व आरंग विकासखंड के किसानों द्वारा 140 हेक्टेयर भूमि में प्रमुख तिलहनी फसलों के रूप में सोयाबीन, मूँगफली और सरसों की खेती कर रहे है। इन तिलहनी फसलों की खेती प्रमुख रूप से राजस्थान में की जाती है। छत्तीसगढ़ में भी रबी के मौसम में प्रायः सभी जिलों में इसकी खेती की जाती है। इन फसलों की खास बात यह है कि यह सिंचित एवं बारानी दोनों ही अवस्थाआंे में आसानी से उगाई जा सकती है। सरसों की खेती से किसान कम लागत में अधिक आय प्राप्त कर सकते है। सरसों के बीज में 30-48 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है।
ज्ञात हो कि वर्तमान रबी वर्ष 2019-20 में रायपुर जिले के आरंग, धरसीवां एवं तिल्दा में कृषि विज्ञान केन्द्र, रायपुर के सहयोग एवं तकनीकी मार्गदर्शन से अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन अंतर्गत कुल 140 हेक्टेयर (लगभग 350 एकड़) रकबा में सरसों किस्म-पीएम 25 की उन्नत खेती की जा रही है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रमणी साहू ने बताया कि खरीफ एवं रबी में धान की फसल लेने से मिट्टी की उर्वरता शक्ति दिनों दिन कम होती जा रही है। किसानों को कम लागत और कम पानी में धान के बाद सरसों की खेती एक अच्छा विकल्प है। अन्य फसल की तुलना में इसमें कीट एवं रोग व्याधियों का प्रकोप भी कम होता है। ग्राम-पलौद, गुजरा (आरंग) एवं नवागांव (खरोरा) के लगभग 38-40 एकड क्षेत्र में स्वयं की उपस्थिति में जैव उर्वरक-एजोटोबैक्टर व पी.एस.बी. कल्चर द्वारा बीज उपचार कर सीड ड्रील के माध्यम से बोवाई कराया गया है। समान दूरी पर बोवाई करने एवं उर्वरकों को शुरूआती अवस्था में देने से पौधे की बढ़वार एकसमान अच्छी बनीे रहती है। वर्तमान में बेमौसम बारिश होने की वजह से रबी फसल काफी हद तक प्रभावित हुआ है लेकिन दलहन की तुलना में सरसों की फसल कम प्रभावित हुई है।

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