वृंदा ने अमित शाह को हेट मिनिस्टर बताया, एनपीआर-एनआरसी से देश खंडित होगा

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कोरबा
नागरिकता कानून में पहली बार धर्म की शर्त जोड़ी गई है, जो हमारे देश के संविधान की बुनियादी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर ही हमला है। इसके खिलाफ पूरा देश आंदोलित और उद्वेलित है। एनपीआर और एनआरसी के साथ मिलकर यह कानून जो रसायन बनाता है, वह देश की एकता-अखंडता को ही नष्ट करने वाला है और इसकी चपेट में गरीब आदिवासी, दलित, मजदूर सभी आने वाले हैं, जिनके पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सरकार द्वारा मांगे जा रहे माता-पिता के जन्म से संबंधित कागजात नहीं है। इस आंदोलन के खिलाफ स्वयं गृहमंत्री जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उससे साफ है कि वे होम मिनिस्टर नहीं, बल्कि हेट मिनिस्टर बनकर रह गए हैं।

मंगलवार को कोरबा प्रेस क्लब में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कही। उन्होंने आरोप लगाया कि एनपीआर भारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला भी साबित होगा, क्योंकि सरकारी अमले को ही संदिग्ध नागरिकों की पहचान का जिम्मा दे दिया गया है और उन्हें जो भी नागरिक किसी भी कारण से पसंद न आये, उसे उसके नाम पर निशान लगाने का अधिकार देता है। ऐसा अधिकार इस देश के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है। निशान न लगाने के लिये यह अमला नागरिकों से घूस मांग सकता हैं। इस प्रकार एनपीआर एनआरसी की पहली सीढ़ी है।

उन्होंने बताया कि केरल की वाम-जनवादी मोर्चे की सरकार ने एनपीआर लागू न करने की घोषणा की है। अब यह आग छत्तीसगढ़ सहित देश के 12 राज्यों में फैल चुकी है। एनपीआर लागू करने का अधिकार राज्यों का है। देश की बहुमत जनता और अधिकांश राज्यों का इसके खिलाफ होने के बावजूद मोदी सरकार के इस पर अड़े रहने से स्पष्ट है कि यह सरकार देश के संघीय ढांचे की कोई इज्जत नहीं करती और तानाशाही व्यवस्था लादना चाहती है। माकपा नेता ने आशा व्यक्त की कि संविधान, प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर यकीन करने वाली बहुमत जनता मिलकर इस मुहिम को मात देगी और आरएसएस के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की परियोजना को धूल चटायेगी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार को भी केरल की तर्ज पर प्रदेश में एनपीआर न करने का नोटिफिकेशन जारी करना चाहिए। मार्च माह में माकपा घर-घर जाकर अभियान चलाएगी कि आम जनता एनपीआर के सवालों का जवाब न दें।

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