छत्तीसगढ़ में चर्चित हो रहा है केरल का ये ‘भिलाई हाउस’

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छत्तीसगढ़ का मिनी इंडिया कहे जाने वाले स्टील सिटी भिलाई की आवो—हवा सभी को अपनी ओर खींच लेती है. इस शहर में जो भी एक बार आ जाए, फिर उसे भूल नहीं पाता. इसका ताजा उदाहरण केरल के सुदूर इलाके में रहने वाले एए अबूक​क्र हैं.

अबूबक्र भले ही जन्मस्थान केरल में लौट गए हैं, लेकिन रह-रह कर उन्हें भिलाई की याद सताती है.
भिलाई में बिताए दिनों की याद कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी तो केरल निवासी अबूबक्र ने अपने नए मकान का नाम ही भिलाई हाउस रख दिया. आज भिलाई हाउस सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच खासा चर्चित हो गया है. वहां के लोगों के लिए भिलाई हाउस एक लैंडमार्क बन गया है.

केरल के त्रिशूर जिले के काटूर गांव निवासी एए अबूबक्र सन् 1958 में अपने दूसरे रिश्तेदारों के साथ भिलाई पहुंचे थे. यहां उन्होंने भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी तो नहीं की, लेकिन रोजी-रोटी के लिहाज से भिलाई-तीन में टेलरिंग की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

अबूबक्र की मानें तो शुरुआत में उनका इरादा कुछ साल बाद केरल लौट जाने का था, लेकिन बाद देखते ही देखते बरस बीतते गए और वे व उनका परिवार पूरी तरह भिलाई का ही हो कर रह गया. उनके बच्चे और दूसरे रिश्तेदार भिलाई स्टील प्लांट, निजी व्यवसाय सहित अलग-अलग क्षेत्रों में व्यस्त हैं.
55 साल बाद इस वृद्धावस्था में जब उन्हें अपने जन्मस्थान लौटना पड़ा तो उनके लिए एक पीड़ादायक अनुभव था. पुरखों की जमीन में लौटते हुए अबूबक्र अपने साथ भिलाई की यादें लेकर गए. चार साल पहले वहां जब उन्होंने अपने नए मकान में कदम रखा तो भिलाई की उन्हीं यादों को ताजा करते हुए इसका नाम भिलाई हाउस रख दिया.

इसी माह दिवाली से पहले भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर डीजीएम जीएस सेंगर अपने पारिवारिक मित्र और यहां सीआईएसएफ में कार्यरत सीएम रफीक के साथ केरल पहुंचे. केरल में भिलाई हाउस देखकर उनकी भी खुशी का ठिकाना न रहा. अबूबक्र दरअसल रफीक की अम्मी के मामा लगते हैं.

बीएसपी के पूर्व डीजीएम जीएस सेंगर ने बताया कि भिलाई का नाम आते ही अबूबक्र भावुक हो जाते हैं. खास कर अगर कोई भिलाई से पहुंच जाए तो अबूबक्र के लिए वह दिन बेहद खुशी का होता है. सेंगर के मुताबिक अबूबक्र ने मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी साथ ही भिलाई में बिताए दिनों को हर पल याद करते रहे.

रफीक बताते हैं कि अबूबक्र यहां भिलाई-तीन में 50 साल रहे हैं. अब भी बहुत से रिश्तेदार भिलाई में रहते ही हैं. इसलिए भिलाई से रिश्ता तो बना हुआ है और इसी रिश्ते की पहचान के तौर पर उन्होंने अपने घर का नाम भिलाई हाउस रखा है.

रफीक ने बताया कि अक्सर त्रिशूर जिले में भिलाई से रिटायर हो कर गए लोग उनके मकान की नेमप्लेट देखकर अंदर जरूर आते हैं और फिर भिलाई की यादें मिल बैठकर ताजा करते हैं.

केरल से मोबाइल फोन पर चर्चा करते हुए एए अबूबक्र ने बताया कि 1958 में जब वो भिलाई पहुंचे थे तो भिलाई स्टील प्लांट कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. बहुत सारे मजदूरों को मैं देखता था कि सब जाते अच्छे कपड़ों में हैं और लौटते हुए ग्रीस-आइल में लिपे-पुते आते हैं तो मुझे कुछ अटपटा लगा. फिर उन दिनों मजदूरों की मौत बहुत ज्यादा होती थी. इसलिए भले ही मेरे सारे रिश्तेदार बीएसपी में लग गए लेकिन मैनें नौकरी नहीं की.

अबूबक्र बताते हैं कि कुछ दिनों के बाद फिर भिलाई का माहौल मुझे भा गया तो वहीं रहने लग गया. 55 साल में पूरे 45 साल मैं किराए के मकान में रहा.  इस दौरान मैं खुर्सीपार और तितुरडीह दुर्ग में भी रहा. भिलाई तीन में टेलरिंग की शॉप से परिवार चल गया, इसलिए कहीं जाने का सवाल ही नहीं था.

केरल से लौटने के बाद पूर्व बीएसपी के डीजीएम सेंगर ने सोशल मीडिया व अपने जान—पहचान वालों से भिलाई हाउस का अनुभव शेयर किया. इसके बाद से भिलाई सहित छत्तीसगढ़ के अन्य जगहों पर केरल का भिलाई हाउस चर्चित होने लगा है.
साभार  Spsamachar

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