राजिम माघी पुन्नी मेला आस्था, अध्यात्म और संस्कृति का अद्भूत संगम

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गरियाबंद
छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के नाम से प्रसिद्ध राजिम का विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। प्राचीन काल से ही राजिम मेला लोगों की आस्था, श्रद्धा और विश्वास का केन्द्र रहा है। जिला मुख्यालय गरियाबंद से 45 किलोमीटर दूर राजिम में प्रतिवर्ष फरवरी-मार्च में माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लगभग पन्द्रह दिन 'माघी पुन्नी मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक श्रद्धालु राजिम की यात्रा नहीं कर लेते हैं।

भगवान श्री राजीव लोचन जी का मंदिर भी राजिम की प्रसिद्धी का एक प्रमुख कारण है। पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार यह मंदिर आठवीं-नवमीं शताब्दी का है। यह मंदिर चतुभुर्जी आकार का है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। काले पत्थर से बनी चतुभुर्जीय विष्णु की प्रतिमा दर्शनीय है। इसके अलावा त्रिवेणी संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का मंदिर विराजमान है। कहा जाता है कि यहां शिव लिंग में सिक्के चढ़ाने पर इसकी प्रतिध्वनि गूंजती है। यहां लोमश ऋषि आश्रम भी है। महर्षि लोमश ने भगवान शिव और विष्णु की एकरूपता स्थापित करते हुए हरिहर की उपासना का महामंत्र दिया था। लोमश ऋषि के अनुसार बेल पत्र में विष्णु की शक्ति को अंकित कर शिव को अर्पित करना चाहिए। यहां शैव और वैष्णव परम्परा का भी संगम दिखता है। यह धार्मिक सद्भाव का भी उदाहरण है।

महानदी, पैरी नदी और सोंढूर नदी के त्रिवेणी संगम पर स्थित राजिम नगर को श्रद्धालु श्राद्ध तर्पण, पर्व स्नान, दान आदि धार्मिक कार्यों के लिए पवित्र मानते हैं। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में राजिम पुन्नी मेले में स्नान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। नई सरकार ने जनभावनाओं को ध्यान में रखकर राजिम पुन्नी मेले के परम्परागत स्वरुप में स्थापित करते हुए इसके व्यवस्थित आयोजन को लेकर कई निर्णय लिए हैं। माघी पुन्नी मेले को छत्तीसगढ़ी संस्कृति के अनुरुप नया कलेवर देने की पहल की है। इस 15 दिवसीय मेले में सतनाम पंथ, कबीर पंथ, गायत्री परिवार, शंकराचार्य परंपरा के विद्वतजनों के प्रवचन के साथ-साथ रामायण पाठ और पारंपरिक खेल फुगड़ी, कब्ड्डी, भौंरा, बाटी जैसे खेलों का आयोजन की भी शुरूआत की जा रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने मेले के लिए 15 एकड़ जमीन आरक्षित करने का भी निर्णय लिया है। यह प्रदेश के लोगों के लिए उनकी आस्था और श्रद्धा को सहेजने और संवारने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

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