यूपी में अफसरशाही के मकड़जाल में फंसे हैं निवेशक, ये मामले हैं उलझे

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 लखनऊ 
यूपी में निवेशकों की सहूलियत के लिए सरकार ने ‘रेडकार्पेट’ तो बिछाई है लेकिन अफसरों की लापरवाही से यहां के उद्यमी बेहाल हैं। आला अफसरों के निर्देश, कई दौर की बैठकें और भागदौड़ भी खूब हो रही है लेकिन समाधान निकलने में खासा वक्त लग रहा है। 

उदाहरण के लिए लखनऊ के एक निवेशक ने जमीन खरीदी। उस पर सरकारी मिल का टीनशेड लगा था। तीन साल तक उस टीन शेड की कीमत तय नहीं हो पाई। मामला जब ऊपर पहुंचा तब जाकर उसका मूल्य 32 लाख रुपये तय हुआ। अभी भी मामला अंजाम तक नहीं पहुंचा है। यह अफसरों की सुस्त रफ्तार का नमूना है।

ऐसे कई मामले हैं। जिनमें उद्यमी अपने छोटे-छोटे मामलों को लेकर लंबे समय से इधर से उधर समाधान के लिए भटक रहे हैं। उनके आवेदन फाइलों में दबे हैं। फाइलें विभागों के बीच घूम रही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर हाल ही में मुख्य सचिव आरके तिवारी ने ऐसे ही तमाम मामलों की समीक्षा की तो खुलासा हुआ कि लंबे समय से यह मामले अटके हैं। उन्होंने अब 15 दिन में मामले निपटाने के निर्देश दिए हैं।

पीएम के क्षेत्र में भी लापरवाही:  मामला रामा फूड्स वाराणसी का है। उन्होंने नक्शा पास कराने के लिए 2015 में आवेदन किया था। इसके बाद औद्योगिक विकास  निगम को 8 रिमांडर भेजे गए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। 16 महीने बाद निगम ने छह और कमियां बताईं। इसे यूनिट ने पूरा किया। अब मुख्य सचिव ने उसे जल्द काम का भरोसा दिया है।

अगर औद्योगिक यूनिट को प्रशासनिक देरी की वजह से यूनिट लगाने में मुश्किल आती है तो यूनिट को किसी प्रकार के देय ब्याज को माफ करने की मांग की जाती है। जैसा कि अलीगढ़ के अखिल बदर्स को जमीन मिलने के एक साल बाद भूखंड की ट्रेसिंग दी गई जबकि निगम के मुताबिक लीजडीड के 15 दिन में कब्जे का प्रस्ताव देना चाहिए। निगम ने इस काम में सात महीने लगा दिए। कब्जा लेने के एवज में लगभग चार लाख रुपये जमा कराए गए।

2016 से उलझा है भू-परिवर्तन का मामला

अलीगढ़ के फ्रिगोरिको कंसर्वा एलाना ने 15 हेक्टेयर जमीन का भू-उपयोग बदलवाने के लिए 2016 में जरूरी रकम जमा कर दी। दिसंबर तक आवास विभाग भू-उपयोग बदलने का काम नहीं कर पाया। इसी तरह फ्रेस्को फूड हापुड़ चाहता है कि उसे एमएसएमई यूनिट मानकर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क से छूट दी जाए।  इस पर निर्णय होने में काफी वक्त निकल गया। अब जाकर तय हुआ है कि यह एमएसएमई यूनिट है। 

ये मामले हैं उलझे
लखनऊ के सरोजनीनगर की डायमंड सोप एंड कैमिकल को पावर कारपोरेशन ने पहले 13 लाख से ज्यादा का बिल भेजा। आपत्ति हुई तो बिल 499734 रुपये का भेज दिया। इसे 31 मार्च 2017 को जमा कर दिया गया।  दो साल बाद फिर 30 अक्तूबर 2019 को 3.16 लाख का बिल भेज दिया गया। अब इसको लेकर समाधान नहीं हो पा रहा है। इसी तरह जेके सीमेंट अलीगढ़ को 650 करोड़ का निवेश करना है। इस कंपनी का 650 एकड़ जमीन का लैंडयूज बदलना है। औरया के यूएम पावर का 500 करोड़ का प्रोजेक्ट है जबकि डीसीएम श्रीराम को लखीमपुर खीरी में को-जनरेशन का पावर प्लांट लगाना है। इन दोनों के सामने जमीन मिलने में मुश्किलें आ रही हैं।  

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