राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव-2019 : उत्तराखण्ड का हारूल नृत्य वलंका के शोर इन ड्रैगन नृत्य ने बांधा समां

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रायपुर
राष्ट्रीय आदिवासी लोक नृत्य महोत्सव-2019 के आयोजन के दूसरे दिन भारत के गुजरात, तेलंगाना, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तराखण्ड प्रांत सहित अंडमान निकोबार तथा मालदीव,लंका, युगाण्डा देश के कलाकारों ने अपनी स्थानीय संस्कृति पर आधारित नृत्य एवं गीतोें का रोचक ढंग से प्रस्तुति दी। अधिकांश प्रस्तुतियां पारम्परिक उत्सवों व त्यौहारों पर आधारित थीं, वहीं वीररस, श्रृंगाररस से ओतप्रोत नृत्य कलाकारों के द्वारा मंच पर प्रस्तुत किए गए। इस दौरान प्रदेश के संस्कृति एवं खाद्य मंत्री अमरजीत सिंह भगत उपस्थित थे।

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के तीन दिवसीय आयोजन के दूसरे दिन आज सुबह से विभिन्न प्रांतों से आए कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति मंच पर दी। स्थानीय साइंस कालेज मैदान में आयोजित महोत्सव में गुजरात के कलाकारों ने पारम्परिक पोशाक के साथ वसावा नृत्य किया। रिदम के साथ मंच पर एक साथ थिरकते कलाकारों ने दर्शकों का मन मोह लिया। इसके बाद तेलंगाना से आए कलाकारों ने लम्बाड़ी नृत्य प्रस्तुत किया, जिसे फसल कटने के उपरांत उल्लास के तौर पर किया जाता है। यहां के कलाकारों का परिधान एवं आभूषण राजस्थानी संस्कृति से काफी करीब लगा। विशेष तौर पर हाथों के चूड़े, कसीदेदार लहंगे और सफेद कुर्तियां व सिर पर ओढ़नी मरूभूमि परम्परा की याद दिला दी। इसके उपरांत राजस्थान से आए नर्तकों ने गौरी नृत्य का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। तत्पश्चात् गुजरात से आए कलाकारों ने डांगी पुरूष नर्तकों के द्वारा कंधे पर सह नर्तकों को लेकर शारीरिक संतुलन के साथ नृत्य का प्रदर्शन किया गया, जिसे देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार से आए कलाकारों ने निकोबारी नृत्य किया। यहां की जनजाति के द्वारा नारियल के पत्तों से तैयार किए गए वस्त्राभूषण को पहनकर डांस किया जाता है। बताया गया कि यह उत्सव पर आधारित नृत्य है, जिसमें शामिल नर्तक वाद्ययंत्रों की धुन पर रातभर थिरकते हैं।

तमिलनाडु से आए नर्तकों ने पारम्परिक आदिवासी नृत्य टोडा का प्रदर्शन किया। यह नृत्य प्रायः पशुपालकों के द्वारा कथकुडू नामक पोशाक पहनकर किया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि नर्तक सिर पर विशेष ढंग से सज्जित केशगुच्छ का उपयोग नृत्य के दौरान करते हैं। तदुपरांत उत्तराखण्ड से आए नर्तकों के जत्थे के द्वारा हारूल नृत्य किया गया। मांगलिक अवसरों पर आयोजन किया जाने वाला हारूल नृत्य वीर एवं श्रृंगार रस से ओतप्रोत रहता है, जिसे जौनसारी जनजाति के द्वारा किया जाता है। इसमें तुरही, मृदंग सहित करही वाद्य यंत्रों के साथ उपयोग किया जाता है। मुख्य नर्तक तीर-धनुष, ढाल लेकर थिरकते नजर आए, वहीं कुछ ने हाथों में थाल प्रस्तुति के अंत तक उसे घुमाते रहे।

श्रीलंका से आए कला जत्था के द्वारा आधुनिक वाद्य यंत्रों के साथ ‘शोर इन ड्रैगन‘ नृत्य किया जो कि मूलतः उनके आराध्य देव कार्तिकेय (मुरूगन) की पौराणिक कथाओं पर आधारित था। वीर रस पर आधारित कदिरगमा नामक त्यौहार पर किए जाने वाले इस नृत्य में धार्मिक कथानक की प्रस्तुति दी गई। इस नृत्य ने भी दर्शकों से काफी तालियां बटोरीं। इसके उपरांत मालदीव के कलाकारों ने पहले तो हिन्दी गीत ‘ए मेरी जोहराजबीं‘ गाकर सबको मंत्रमुग्ध किया, इसके बाद कलाकारों ने सभी अवसरों पर पेशकश किए जाने वाले बोडोबेरो नृत्य प्रस्तुत किया। इसमें एक प्रमुख नर्तक नृत्य करता है शेष कलाकार वाद्ययंत्रों के साथ थिरकते हैं। तत्पश्चात् युगाण्डा से आए कलाकारों ने कराकरा नृत्य का बेहतरीन प्रस्तुति दी। प्रेम प्रसंगों व विवाह नृत्यों में किया जाने वाला यह नृत्य कलाकारों के द्वारा मोहक ढंग से प्रस्तुत किया गया। इसकी खासियत यह है कि इसमें वाद्य यंत्रों की काफी विविधता रही, जो कि प्रायः भारत में नहीं पाए जाते।

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