गौरवशाली आदिवासी परंपराओं के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय आयोजन से आदिवासी विरोधियों के पेट में दर्द हो रहा है:त्रिवेदी

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पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बयान पर कांग्रेस का पलटवार

गौरवशाली आदिवासी परंपराओं के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय आयोजन से आदिवासी विरोधियों के पेट में दर्द हो रहा है

रमन सिंह किसानों के लिये घड़ियाली आंसू बहा रहे है

रायपुर/28 दिसंबर 2019। रमन सिंह के बयान पर पलटवार करते हुये प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि रमन सिंह किसानों के लिये घड़ियाली आंसू बहा रहे है। किसानो से धोखाधड़ी कांग्रेस का नहीं भाजपा का चरित्र है। भाजपा जब सरकार में थी तब तो भाजपा ने वायदा कर के किसानों को धोखाधड़ी के अलावा और कुछ भी नहीं दिया। रमन सिंह जी ने कहा था कि 5 हॉर्स पावर पंपों की मुफ्त बिजली दी जाएगी, नहीं दी। रमन सिंह जी ने कहा था कि एक-एक दाना किसान की धान की खरीद होगी, नहीं की। रमन सिंह जी ने कहा था कि 2100 रु. का धान का समर्थन मूल्य देंगे और 300 रू. बोनस 5 साल तक देंगे, नहीं दिया। किसानों से किया गया एक भी वादा न पूरा करने वाले रमन सिंह जी और भाजपा को किसानों से किया गया एक-एक वादा पूरा करने वाली कांग्रेस सरकार के मुखिया भूपेश बघेल पर झूठे और निराधार आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। छत्तीसगढ़ के किसान मोदी और भाजपा के 1815 रू. और भूपेश बघेल और कांग्रेस के 2500 रू. का अंतर समझते है। छत्तीसगढ़ के लोग अभी इस बात को नहीं भूले है कि रमन सिंह जी के शासनकाल में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याओं छत्तीसगढ़ में और रमन सिंह जी के क्षेत्र राजनांदगांव में हुयी थी।
प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि माओवाद से लड़ने के नाम पर बस्तर में हत्या और अनाचार का कुचक्र 15 साल तक चलाने वालों को आदिवासी समाज की गौरवशाली परंपराओं के अनुरूप नृत्य महोत्सव का आयोजन भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है। माओवाद से लड़ाई के नाम पर निर्दोष आदिवासियों को मारा जाता रहा और आज गौरवशाली आदिवासी परंपरा के अनुरूप छत्तीसगढ़ में नृत्य उत्सव का आयोजन हो रहा है तो आदिवासी विरोधियों के पेट में दर्द हो रहा है। इस आयोजन की देश विदेश में चर्चा हो रही है तो आदिवासी विरोधियों को तकलीफ हो रही है। 15 वर्ष तक रमन राज में आदिवासियों की जमीन हड़पी जाती रही। रमन सिंह के 15 वर्ष आदिवासियों के लिए बेहद बुरे रहे।

 

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