श्रीलंका के नए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की भारत के मुकाबले पाकिस्तान के प्रति है ज्यादा झुकाव

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श्रीलंका
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के रूप में गोटबाया राजपक्षे के निर्वाचन के बाद से ही भारत, चीन और पाकिस्तान के साथ श्रीलंका के रिश्तों को लेकर अटकलें लग रही हैं। कहा जा रहा है कि नए राष्ट्रपति का भारत के साथ रिश्ते की परख न केवल चीन के साथ उनके परिवार के नजदीकी रिश्तों बल्कि पाकिस्तान के साथ खुद उनके संबंधों के आधार पर होगी। वहीं, पाकिस्तान को श्रीलंका में नई उम्मीद दिखने लगी है।

क्यों खुश है पाकिस्तान?

पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर पाकिस्तानी अखबार डेली एक्सप्रेस ट्रिब्यून से कहा, 'वह (रानिल विक्रमसिंघे) भारत के इतनी करीब थे कि पाकिस्तान के प्रति उनका रवैया बेहद ढीला-ढाला रहा। अगर (सजीत) प्रेमदासा चुनाव जीत जाते तो पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका होता।' उन्होंने कहा,'गोटबाया राजपक्षे का चुनाव जीतना वाकई में पाकिस्तान के लिए एक सकारात्मक संदेश है।'

गोटबाया और पाकिस्तान
इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, राजपक्षे को 1970 के दशक में एक युवा सैन्य अधिकारी के तौर पर ऑफिसर्स ट्रेनिंग कोर्स के लिए उस वक्त पाकिस्तान भेजा गया था जब दोनों देशों के बीच काफी घनिष्ठ संबंध हुआ करते थे। बाद में एलटीटीई के साथ युद्ध के दौरान जब वह अपने भाई और तत्कालीन राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के अंदर रक्षा सचिव थे, तब पाकिस्तानी सेना ने श्रीलंका की सेना की मदद की थी।

पाकिस्तान को यह उम्मीद
राजपक्षे को चुनाव में जीत मिलते ही पाकिस्तान ने झट से बधाई दे डाली जैसा कि भारत ने किया। मामले से वाकिफ लोगों ने बताया कि पाकिस्तान ने कोलंबो की नई सरकार से पाकिस्तान को लेकर पूर्व में लिए कुछ फैसलों को वापस लेने की उम्मीद जताई। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन किया। उन्होंने 2016 में इस्लामाबाद में होने जा रहे सार्क समिट का भी बहिष्कार किया था। लेकिन, अब नजरें राजपक्षे के नेतृत्व में श्रीलंका की पाकिस्तान नीति पर होगी। कोलंबो से आ रही खबरों के मुताबिक, जल्द ही विक्रमसिंघे की जगह किसी अन्य को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा।

गोटबाया ने क्या कहा?
बहरहाल, गोटबाया ने सोमवार को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बड़ा नपा-तुला भाषण दिया। उन्होंने कहा कि उनका देश सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कायम करेगा और अंतरराष्ट्रीय ताकतों के आपसी मुद्दों में दखल नहीं देगा ताकि संघर्ष से बचा जा सके।
 

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