सूर्य दीप्ति से प्रभामय , वक्रशुण्ड गणराज  बाधा विघ्न विनाश प्रभु, सफल करो सब काज:

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वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अर्थ: हे गणेश जी! आप महाकाय हैं। आपकी सूंड वक्र है। आपके शरीर से करोडों सूर्यो का तेज निकलता है। आपसे प्रार्थना है कि आप मेरे सारे कार्य निर्विध्न पूरे करें।

जोगी एक्सप्रेस 

शहडोल म.प्र .धनपुरी दी सोसाइटी ऑफ इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी के प्रदेश अध्यक्ष व भाजपा के युवा नेता  राकेश कुमार सोनी ने विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की सभी प्रदेश वासियों को इस अवसर पर शुभकामनाये दी व अपने प्रशंसकों, मित्रों और नगर वासियों बधाई  को देते हुए बताया की हर वार्स की भांति इस वार्स भी अकवन की जड़ से हमरे घर में लगे गमले में भगवान  श्री गणेश जी प्रकट  हुए और हम उनकी पूजा करते है !वही  प्यार और समृद्धि की कामना की। वही इस बार नगर  में  बड़ी धूम- धाम से गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है। किसी भी शुभ काम को शुरु करने से पहले हम गणेश भगवान को याद कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। आज उन्हीं गणेश भगवान की जयंती है। आज के दिन सभी लोग गणेश भगवान को अपने घर आमंत्रित करते हैं और उनकी प्रतिमा को स्थापित करते हैं।गणेश चतुर्थी हिन्हुओं के खास पर्वो में से एक है, जो हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। लेकिन इस बार खास बात ये है, कि इस बार 10 दिन की जगह 11 दिनों तक गणेशोत्सव मनाया जाएगा। वैसे तो इस पर्व को पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन भारत में महाराष्ट्र में इस पर्व का अलग ही रंग देखने को मिलता है। जगह- जगह पंडालों में गणेश भगवान की भव्य प्रतिमा, खूबसूरत सजावट और मधुर आरती से सारा वातावरण मंत्रमुग्ध हो जाता है।शास्त्रों में श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के विधि विधान बताये गए हैं| आज हम आपको एक ऐसा चमत्कारी गणेश मंत्र बताने जा रहे हैं जो तुरंत मन्नत पूरी करता है! श्री गणेश की कामना विशेष मंत्र को संकल्प लेकर हर रोज 108 बार मंत्र स्मरण करें।

“श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरदे नम:”

दस दिनों तक बप्पा की पूजा अर्चना के बाद उन्हें ढोल नगाड़े के साथ किसी पवित्र नहीं में विसर्जित कर दिया जाता है।  इस आशा के साथ कि गणपति अपने पिता शिव और माता पारवती के पास वापस कैलाश पर्वत लौट जाएंगे और अगले साल हम फिर उन्हें अपने घर लाएंगे।

सूर्य दीप्ति से प्रभामय , वक्रशुण्ड गणराज 
बाधा विघ्न विनाश प्रभु, सफल करो सब काज

माँ पार्वती जी का व्रत और श्री गणेश जी की संपूर्ण जन्म कथा

शिव और पार्वती के विवाह को कुछ ही समय व्यतीत हुआ था। पार्वती जी ने शिव जी से कहा की मुझे एक अत्यंत श्रेष्ठ पुत्र की कामना है। इस पर शिवजी ने उन्हें ‘ पुण्यक ‘ व्रत रखने को कहा। जिसे रखने से किसी भी प्रकार की इच्छा की पूर्ती होती है। इस व्रत की अवधि एक वर्ष की होती है।पार्वती जी ने ‘ पुण्यक ‘ व्रत रखना आरंभ किया। व्रत के संपूर्ण होने पर स्वयं भगवान् कृष्ण बालक के रूप में भगवान् शिव और माता पार्वती के यहाँ अवतरित हुए। बालक के आने के बाद उसका जातकर्म-संस्कार करवाया गया।कुछ दिन बाद शनि देव, माता पार्वती भगवान् शिव और गणेश भगवान् के दर्शन हेतु कैलाश को पधारे। वे अपना सिर झुकाए हुए थे। इसलिए वे माता पार्वती और गणेश भगवान् के दर्शन नहीं कर पा रहे थे। कारण पूछने पर पता चला कि शनि देव को उनकी पत्नी ने यह श्राप दिया है कि वे जिसे देखेंगे उसका विनाश हो जाएगा।ये बात सुन पार्वती और उनकी सखियाँ हंसने लगीं। तब माता पार्वती ने कहा कि शाप मिला है तो नष्ट तो हो नहीं सकता लेकिन मेरा विचार है की हमें कुछ नहीं होगा इसलिए तुम मुझे और मेरे पुत्र को देख सकते हो।काफी सोच विचार करने के बाद शनि देव ने माता पार्वती की और न देखकर बालक गणेश की और देखने का मन बनाया। जैसे ही शनि देव ने बाल गणेश की और देखा उसी क्षण शाप के कारण बालक का मस्तक छिन्न हो गया और भगवान् श्री कृष्ण में  समाहित हो गया। यह देख माता पार्वती सहित सभी लोग व्याकुल हो गए। शनि देव तो लज्जा से सिर झुकाए खड़े थे। कैलाश में मातम छा गया था।उसी समय भगवन विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ का स्मरण किया। गरुड़ के प्रकट होते ही भगवन विष्णु उन पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर निकल पड़े। पुष्पभद्रा नदी के निकट एक हाथी और हथिनी सो रहे थे। तभी श्री हरी ने अपने चक्र से उस हाथी के मस्तक को काट दिया। और वो मस्तक ले जाकर बाल गणेश के धड़ पर लगा दिया।इस पर पार्वती जी ने आपत्ति जताई कि यह कोई षड़यंत्र है। अब तो उनका पुत्र कुरूप नजर आएगा। इस पर विष्णु जी ने पार्वती जी को आश्वाशन दिया कि अगर आपको यही चिंता है तो मैं इसे आशीर्वाद देता हूँ कि यह बालक सबसे ज्यादा बुद्धिमान होगा। पूरे विश्व में इस बालक का पराक्रम सबसे ज्यादा रहेगा। यह भक्तों को सदैव संतुष्ट करेगा और प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। तब जाकर पार्वती जी शांत हुयीं।उसके बाद गणेश जी को परशुराम जी ने एकदंत गणेश बना दिया था। ये कथा तो लगभग सभी को पता होगी। अगर नहीं पता तो हम बताये देते हैं।

कैसे हुए गणपति एकदंत

एक बार परशुराम जी भगवान् शंकर के दर्शन हेतु कैलाश पहुंचे। परन्तु भगवान् निंद्रा में थे और द्वार पर गणेश जी थे। गणेश जी ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया। लेकिन परशुराम कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। अंत में फैसला ये हुआ कि क्यों न युद्ध कर लिया जाए। जो जीतेगा वो अपनी मर्जी करेगा।खूब घमासान लड़ाई हुयी। अंत में कोई राह न देख परशुराम जी ने अपना परशु गणेश जी की और फेंका। ये परशु भगवान् शिव से वरदान स्वरुप परशुराम को प्राप्त था। तब अपने पिता जी  के कारण उस परशु का सम्मान करते हुए गणेश जी ने वो परशु अपने बाएं दांत से पकड़ लिया।जैसे ही उन्होंने दांत से परशु पकड़ा। उनका दांत मूल से ही उखड़ गया। तभी चारों तरफ बड़ी भारी गर्जना हुयी। शंकर जी जाग गए और पार्वती जी भी बाहर आ गयीं। जब पार्वती जी ने अपने पुत्र गणेश की हालत देखि तो वो परशुराम पर बरस पड़ीं।इस से पहले कि और कुछ होता। परशुराम जी ने मन ही मन भगवान् शंकर को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़े।ये कहाँ पहुँच गए हम? हम तो गणेश चतुर्थी के बारे में जानकारी हासिल कर रहे थे। तो आगे बात करते हैं गणेश चतुर्थी की कहानी में उनके अवतार मयूरेश्वर के बारे में।

त्रेतायुग में मयूरेश्वर अवतार

कहते है त्रेतायुग में उग्रेक्षण नामक राक्षस हुआ। उस राक्षस ने इतना आतंक फैलाया कि उस से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति की आज्ञा पाकर संकष्टीचतुर्थी का व्रत रखा। उस व्रत से प्रसन्न होकर गणेश जी देवताओं को वरदान दिया कि जल्दी ही वो माता गौरी के पुत्र मयूरेश्वर के रूप में जन्म लेंगे। उसके बाद उग्रेक्षण का संहार करेंगे।उधर जब शिव जी को पता चला कि देवता हार गए हैं और उग्रेक्षण ने सब को हरा दिया है तो वे भी माता पार्वती को लेकर त्रिसन्ध्या क्षेत्र में निवास करने लगे। वहां रह कर माता पार्वती ने तपस्या की। जिसके फलस्वरूप उनके घर बालक मयूरेश्वर ने भद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को जन्म लिया। उस दिन चंद्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न के साथ पाँचों लग्नों का साथ था। फिर बालक का जातकर्म संस्कार कराया गया।बालक मयूरेश्वर को मरवाने के लिए उग्रेक्षण ने गृध्रासुर, क्षेमासुर, कुशलासुर, क्रूर, व्योमासुर, राक्षसी शतमहिषा आदि कई राक्षसों को भेजा। लेकिन मयूरेश्वर के आगे कोई टिक न सका।जब मयूरेश्वर विवाह योग्य हुए तो उनके विवाह की बात चली। जब विवाह में जाने के लिए सब को संदेसा भेजा गया तो उग्रेक्षण के डर से सब ने मना कर दिया। तब मयूरेश्वर ने ये वचन दिया की अब वे विवाह उग्रेक्षण की मृत्यु उपरांत ही विवाह करेंगे। फिर उन्होंने उग्रेक्षण का भी अंत कर दिया।

अब बारी थी द्वापरयुग की

ब्रह्मा जी के मुख से जन्मे सिन्दूरासुर राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया था। उसके संहार के लिए देवताओं ने गणेश जी की पूजा की। इस बार गणेश जी ने माता पार्वती के यहाँ गजानन के रूप में अवतार लिया। इस अवतार में उन्होंने सिन्दुरासुर और लोभासुर का वध किया।

इसी तरह गणेश जी ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग अवतार लिए। उनमें जो आठ अवतार प्रमुख माने जाते हैं वो इस प्रकार हैं :-

गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार

वक्रतुंड

भगवान् गणेश्वर ने ‘ वक्रतुंड ‘ अवतार में मत्ससुर का संहार किया था।

एकदंत

एकदंत का अवतार गणेश जी ने राक्षस मदासुर को मारने के लिया था।

महोदर

भगवान् गणेश ने महोदर अवतार राक्षस मोहासुर का वध करने के ली या लिया था।

गजानन

गजानन अवतार उन्होंने सिन्दुरासुर और लोभासुर के अंत के लिया था।

लम्बोदर

इस अवतार में उन्होंने राक्षस क्रोधासुरे को मारा था।

विकट

यह अवतार उन्होंने कामासुर का वध करने के लिए लिया।

विघ्नराज

इस अवतार में वे माम्तासुर के संहारक बन कर आये थे।

धुम्रवर्ण

धुम्रवर्ण अवतार लेकर गणेश जी ने अभिमान नामक असुर का नाश किया था।

मोहम्मद शब्बीर

जोगी एक्सप्रेस

 

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