चमकी बुखार’ को गंभीर मुद्दा बता कर केंद्र और राज्य सरकार जवाबदारी से छुड़ा रही है पीछा

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डबल इंजन की बीजेपी सरकारे महामारी की रोकथाम में पूरी तरह से नाकाम – कांग्रेस

रायपुर- प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने बिहार, असम और उत्तर प्रदेश में लगातार फैल रही और मौतों का तांडव मचा रही एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एइएस) के प्रकोप पर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के नकारात्मक रवैय्ये पर अफसोस जताते हुए कहा है, कि सैकड़ों गरीब बच्चों की मौतें हो रही है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है। केवल गरीब बच्चे ही इस दिमागी बुखार की चपेट में क्यों है? इस रोग को क्यों नियंत्रित करने में विफलता आ रही है और क्यों इसे अति गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है?
प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा है कि बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में चमकी बुखार का तांडव पहली बार नहीं हुआ है। भारत सरकार के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री ने जो पेशे से स्वयं चिकित्सक भी हैं ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में वर्ष 2014 में कहा था, कि यहां की अस्पतालों में सुधार किया जाएगा और बच्चों के स्वास्थ्य के विषय को लेकर कई वादे किए थे। जो आज तक पूरे नहीं किए गए हैं, जबकि वे इसी तरह बच्चों की मौतों पर हुए हाहाकार के बाद बिहार का दौरा किए थे। आयुष्मान योजना के तहत 5 लाख रुपए गंभीर बीमारी में देने की बात की जाती है, पर सैकड़ों मौत के बाद भी इस रोग को गंभीर नहीं माना जा रहा है और मासूम बच्चों को पर्याप्त सुविधा मुहैया नहीं कराई जा रही है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा है कि चमकी बुखार पर कांग्रेस सियासत चमकाने का प्रयास नहीं कर रही है। वास्तविकता यही है कि इस दिमागी बुखार से विगत 5 वर्षों से हो रही मौतों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की लापरवाही सर्वविदित है। कांग्रेस ने बिहार में हुए 154 बच्चों सहित देश के अन्य राज्यों में बच्चों की मौतों पर अफसोस जताया है और समय रहते हुए रोग को नियंत्रित नहीं कर पाने को सरकार की विफलता बताते हुए कहा है कि दुर्भाग्य जनक स्थिति यह है कि इतने बड़े पैमाने पर बच्चों की मौतों को लेकर कोई जवाबदारी नहीं लेना चाहता है।गरीब परिवार ही इस रोग से प्रभावित क्यों है? खतरनाक बीमारी की असली वजह अब तक सामने क्यों नहीं आई है? इस सवाल का कोई जवाब देना नहीं चाहता है। केवल संवेदना व्यक्त कर देना और बीमारी को गंभीर मुद्दा बताकर पीछा छुड़ाना कहां तक जायज है। क्या सरकारों का यही दायित्व रह गया है?

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