चन्द्रहासिनी मंदिर चंद्रपुर में पशुबलि पर रोक लगे:डॉ. दिनेश मिश्र

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रायपुर,जांजगीर-चांपा के नजदीक चंद्रपुर स्थित चंद्रहासिनी मंदिर में राज्य सरकार के धर्मस्व एवं न्यास विभाग के आदेश के बावजूद पशुओं की बलि चढ़ाये जाने की परंपरा जारी है, जबकि राज्य में पशुबलि निषेध अधिनियम लागू है तथा राज्य शासन के धर्मस्व एवं न्यास विभाग द्वारा पशुबलि पर रोक के लिए लिखित में आदेश भी जारी किया जा चुका है इसके बाद भी उक्त स्थान पर पशुबलि की परंपरा का जारी रहना उचित नहीं है। देश के अनेक धार्मिक स्थलों में आज भी विभिन्न धार्मिक अवसरों पर पशुओं के बलि देने की परंपरा कायम है जबकि किसी भी धर्म ने हिंसा को मान्यता नहीं दी है। सभी धर्म प्रेम और अहिंसा पर चलने की ही सीख देते हैं फिर भी कुछ पुरातन मान्यताओं का सहारा लेकर पशुबलि की घटनाओं के समाचार मिलते हैं।
उक्ताशय का जानकारी डॉ. दिनेश मिश्र ने दीहै। उन्होंने बताया कि नगर पंचायत चंद्रपुर में स्थित मंदिर परिसर में दोनों पक्ष की नवरात्रि में हजारों बकरे, मुर्गी व भैंस के बच्चे की बलि चढ़ती है। जिससे माहौल अशांत होता है। उक्त बलि प्रथा का विरोध गायत्री परिवार के सदस्यों के अलावा नगर पंचायत चंद्रपुर द्वारा भी पूर्व में किया जा चुका है। अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति बलि प्रथा के खिलाफ अनेक वर्षों से कार्य कर रही है। वहीं राज्य सरकार के धर्मस्व एवं न्यास विभाग से पशुबलि रोकने कई बार आग्रह भी किया गया है. जिसे गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार के धर्मस्व विभाग द्वारा सितम्बर 2010 में प्रदेश के सभी देवी मंदिरों में बलि प्रथा पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया था तथा राज्य सरकार ने चंद्रहासिनी मंदिर चंद्रपुर में पशु बलि पर प्रतिबंध लगाया था, जो कि प्रभावी नहीं रहा है। बताया जाता है कि मंदिर प्रबंधन श्रद्धालुओं से बकरे की बलि चढ़ाने के एवज में सहयोग राशि लेकर रसीद भी देता है। जबकि मां चंद्रहासिनी मंदिर में बलि प्रथा पर रोक लगाने के लिए गायत्री परिवार पिछले एक दशक से विरोध कर रहा है। बलि प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए गायत्री परिवार ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है। डॉ. मिश्र ने बताया कि नगर पंचायत चंद्रपुर द्वारा भी सन् 2010 में मां चंद्रहासिनी मंदिर में बलि प्रथा बंद किए जाने को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया था। जिस प्रस्ताव पर चंद्रहासिनी देवी ट्रस्ट के पदाधिकारियों के अलावा नगर पंचायत के सभी सदस्यों की सहमति थी। प्रस्ताव पारित होने के बाद उसकी प्रति प्रशासन को देकर बलि प्रथा पर रोक लगाने का आग्रह भी किया था। पर उस पर भी क्रियान्वयन नहीं हो पाया था।
डॉ. मिश्र ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पशुबलि प्रतिषेध अधिनियम 1989 के तहत पशु बलि प्रतिबंधित है और इसके उल्लंघन पर तीन महीने की जेल या जुर्माने का प्रावधान है. राज्य के कई धार्मिक स्थलों पर भैंसा और बकरे की बलि देने की परंपरा रही है. समिति के प्रयासों से पिछले वर्षों में अनेक स्थानों पर पशुबलि की परंपरा बंद हो गई है। सभी धर्मों एवं धार्मिक स्थानों में ऐसे निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि धर्म के नाम पर निरीह पशुओं को मारने पर अंकुश लग सके।

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