स्मृतियों को बदला गया अनुष्ठान मेंःअशोक वाजपेयी

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रायपुर, देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार ,कवि आलोचक और संस्कृति कार्य से जुडे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अशोक वाजपेयी ने कल रात रायपुर के प्रेस क्लब में छत्तीसगढ़ फिल्म एण्ड विजुअल आर्ट सोसाइटी की ओर से “वर्तमान साहित्यक परिदृश्य ” विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले पचास वर्ष में हिन्दी अंचल का जो सांस्कृतिक क्षरण हुआ है। जो लोग हिन्दी में ज्ञानोत्पदक की श्रेष्ठता सृजित करने वाले लोग थे उनकी जगहंसाई होती रही है। ये अंचल अपनी स्मृति से सबसे ज्यादा वंचित हो स्मृति को अनुष्ठान में बदल दिया गया है।
बाजपेयी ने कहा कि हिन्दी अंचल में राजनीेतिक प्रतिपक्ष कोई नहीं हैं। सभी पार्टियां कुल मिलाकर एक दूसरे थैली के चट्टे-बट्टे नजर आते हैं। हालांकि ध्रुवीकरण होने के बाद ऐसा लगता है, ये कहना बहुत ही सामान्यीकरण होगा । कुछ राजनीतिक दल अधिक समावेशी है। उन्हें बढावा मिलना चाहिए।
अशोक वाजपेयी ने कहा कि अब जो प्रतिपक्ष है, हिन्दी समाज का, वो हिन्दी साहित्य है । यह काम कवि, कहानीकार, उपन्यासकार को करना पड़ रहा है। जिस तरह आलोचना कवियों के लिए आपद धर्म होती थी आज प्रतिपक्ष की राजनीति हिन्दी लेखक का आपद धर्म है। अशोक वाजपेयी ने कहा कि जब राजनीति के नाम पर उनसे जुड़े लोग छल प्रपंच करें तो लेखकों का काम हो जाता है की वे राजनीति करें ।
वाजपेयी ने कहा कि आज हिन्दी अंचल के शहर सबसे अापराधिक शहर बन चुके हैं नेशनल क्राइम डाटा के अनुसार हमारी पुलिस सबसे बड़ी अपराधी हो चुकी है ।खासकर के उत्तर प्रदेश में वो हिन्दू भी हो चुकी है। और अपराधी भी हो चुकी है । पकड़ते उसे हैं जिस पर प्रहार किया गया हो। इससे ज्यादा और क्या नैतिक पतन होगा ?भाषा का अवमूल्यन तो एक छोटी बात है। जिस भाषा में सच बोलना मुश्किल हो जाए, या असम्भव हो जाए वहां साहित्यकार चुप नहीं बैठ सकता, वह भाषा-इस समय हिन्दी बहुत ओर अपराधियों की भाषा हो गई है। हिन्दी में लेखन कराना एक तरह से ब्रजघात करना हो। ब्रजमूर्ख ही लेखक होंगे। एक समाज कर ऐसी भाषा में जिसमें अपने लेखकों को सम्मान नहीं है ।
साहित्यकारों के लिए अब वक्त ऐसा आया है की हम चुपचाप नहीं बैठ सकते। हमकों इस बात के प्रति अब सजग होने की जरूरत है। हमारी भाषा, बुद्धि ओर ज्ञान विरोधी भाषा हुई जा रही है। पिछले 50 सालों में हिन्दी में कितना ज्ञानोत्पादन हुआ है। अब सोचने की बात है । हमने एक अखिल भारतीय कीर्ति का समाजवादी , राष्टीय निष्ठावान, ईमानदार, निर्विवाद, बौद्धिक नहीं दिया । ज्ञान का केन्द्र कहे जाने वाले हमारे विश्वविद्यालय कूड़े हो चुके हैं और हिन्दी विभाग घूरे पर जा चुके हैं ।
समय हिन्दी अंचल की हालात ज्ञान विज्ञान के क्षैत्र में काफ़ी पिछड़ी हुई ।
सुप्रसिद्ध कवि, आलोचक उदयन वाजपेयी ने कहा कि कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि के स्थान पर साहित्य का एक बड़ा सोपान होता है, वह है बौद्धिक। संसदीय लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य में जो राज कर सकता है और जो राज करता हैं उसके बीच अंतराल होता हैं। खराब राज्यसत्ता में यह अंतराल ज्यादा होता है, ओर बेहतर राज्य सत्ता में यह अंतराल कम होता है। जो नागरिकों की आवश्यकता है जरूरत है, वह अलग है, और जो राज्य सत्ता कर सकती है वह अलग है। दोनों के बीच अंतर होता है। यही लोकतंत्र की खाई है, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है चाहे वह अमेरिका हो या नीदरलैण्ड ।
उदयन वाजपेयी ने कहा कि हिन्दी में बौद्धिक जैविकी परम्परा सूख रही है यह हमारे समय के लिए भयानक संकट हैं। राज्य और लोगों के बीच के अंतराल को आलोकित करने का काम बौद्धिक किया करते है, गांधी के काम और चिंतन के बीच एक बौद्धिक हमेशा से मौजूद रहा हमें पूरी दुनिया में संसदीय लोकतंत्र में सबसे बड़े बौद्धिक के रूप में महात्मा गांधी दिखाई पड़ते हैं।
संगोष्ठी के विषय का प्रवर्तन करते हुए डाॅ. राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि यह भाषा के अवमूल्यन का समय हैै। जब एक भाषा सिकुडती है तो एक मनुष्य भी सिकुडता है । एक लेखक भाषा की व्यंजना शक्ति का विस्तार करता है। शब्द और अर्थ के बीच इतनी खाई बढ गई है कि कोई चीज क्या है उसे समझना मुश्किल है। जिन पदों,व्याख्याओं का हम सहारा लेते है वे अमूर्त हो चुके हैं , हिन्दी साहित्य का एक हजार साल का इतिहास बताता है कि ये प्रतिष्ठान की भाषा नहीं रही इसने हमेशा ही प्रतिष्ठान का विरोध किया है।
संगोष्ठी का संचालन छत्तीसगढ़ फिल्म एण्ड विजुअल आर्ट सोसाइटी के अध्यक्ष सुभाष मिश्र ने किया । प्रेस क्लब के अध्यक्ष दामू अम्बाडारे ने और सोसाइटी की ओर से अतितिथयों का स्वागत किया, रचना मिश्रा, साकेत साहू, मिजान खान, हेमन्त यादव ने किया । संगोष्ठी के अन्त में उपस्थित लोगों की ओर से पूछे गए प्रश्नों के जवाब अशोक वाजपेयी ने दिए संगोष्ठी में बड़े संख्या में साहित्यकार,पत्रकार और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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