रीजनल अस्पताल में विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मना कर लोगो को किया जागरूक

0

ankus gupta

* मस्तिष्क की गतिविधियों में असमर्थता है आटिज्म

जोगी एक्सप्रेस

चिरमिरी .

 विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस पर रविवार को एसईसीएल रीजनल अस्पताल गोदरीपारा में सीएमओ डाॅ संजय सिंह के मुख्य आतिथ्य में जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया .जिसमें उपस्थित डाॅक्टरों व हाॅस्पिटल स्टाफ के द्वारा ऑटिज्म ग्रस्त बच्चों और बड़ों के जीवन में कैसे सुधार के कदम उठाए जाते हैं और उन्हें सार्थक जीवन बिताने में कैसे सहायता दी जाती है इस पर परिचर्चा की .

  हर साल दो अप्रैल को यह दिवस मनाया जाता है, यह जानकारी देते हुए डाॅ आशुतोष कुमार ऑटिज्म रोग पर ब्याख्यान दिया  .उन्होंने कहा कि प्रत्येक 88 में से एक बच्चा ऑटिज्मग्रस्त होता है और हर 42 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है .इस बीमारी की चपेट में आने के बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज्यादा संभावना है .  इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका ज्ञात नहीं है . लेकिन जल्दी निदान हो जाने की स्थिति में सुधार लाने के लिए कुछ किया जा सकता है .  दुनियाभर में यह बीमारी पाई जाती है और इसका असर बच्चों, परिवारों, समुदाय और समाज पर पड़ता है .

   डाॅ आशुतोष ने कहा कि मैं खुद ऑटिज्मग्रस्त हुॅ और इसका पता मुझे 47 साल गुजारने के बाद चला, बचपन मेें र और उ शब्द को उल्टा लिखता था जिसपर  मेरे पिता मुझपर नाऱाज भी होते, लेकिन वह समझ नहीं पाए की मैं ऑटिज्मग्रस्त हुॅ .इस बिमारी का हल भी मैंने खुद ही ढूंढा, जो याद नहीं रहता कागज पर लिखकर याद रखता . उन्होंने बताया कि ऑटिज्म के दौरान व्यक्ति को कई समस्याएं हो सकती हैं, यहां तक कि व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग हो सकता है .कई बार ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं . इस आयोजन के दौरान एक बालक प्रदीप कुमार को बुलाया गया जोकि मस्तिष्क ऑटिज्म से ग्रसित है .
  डाॅ संजय सिंह ने बताया कि जिन बच्चों में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चों से असामान्य होता है, साथ ही इसकी वजह से उनके न्यूरोसिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है . इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना  यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है .  ऑटिज्म जब गंभीर रूप से होता है तो इसे ऑटिस्टिक डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है लेकिन जब ऑटिज्म के लक्षण कम प्रभावी होते हैं तो इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है . एएसडी के भीतर एस्पर्जर सिंड्रोम शामिल है .
  डाॅ सुभाष सिंह ने कहा कि ऑटिज्म या आत्मविमोह स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो विकास संबंधी एक गंभीर विकार है जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था (प्रथम तीन वर्षों में) में ही नजर आने लगते है और व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है . 
  सिस्टर प्रिंकलिंक ने ऑटिज्म पर विस्तार से प्रकाश डाला . कार्यक्रम का संचालन डॉ आनंद ज्ञान तथा आभार प्रदर्शन डाॅ आरसी बावरिया ने किया . इस दौरान डाॅ एमपी आनंद,डॉ राजीव दूबे,   डॉ शशिकांत कुमार,डॉ मिथलेश प्रसाद , डॉ सुमित राधाकृष्णन , डॉ जुल्फिकार अली , डाॅ बी.सिंघा, डाॅ सतेंद्र सिंह, हाॅस्पिटल स्टाफ जेपी वर्मा, समीर दहवाल, अभिषेक कुल्हाड़े, ढोला प्रसाद, रमेश प्रसाद, एसके राय, आरबी शुक्ला, विवेक बैनर्जी, रेणुका खांडा, बब्बी सिंह, सावित्री प्रताप, श्रीमती वंदना लाल, ग्लोरिया, रेहाना बेगम, पार्वती नामदेव, गीता दास, प्रिंकलिंक, एस.सुरेखा, पी.केरकेट्टा, रीता मार्टीन, रचना बनर्जी, उपस्थित रही 
ऑटिज्म या स्वलीनता के लक्षण —-
इस रोग से ग्रसित मरीज अकेलापन पसन्द , सामाजिक संपर्क से दूरी , बातचीत में असमर्थता , शब्दो को समझने में असमर्थ ,असामान्य व्यवहार और प्रतिक्रिया  तथा भावनाओ को समझने व्यक्त करने में असमर्थ होता है . ऑटिज्म विषय को लेकर कई फिल्में भी बनी है जिसमे प्रमुख रूप से तारे जमीं पे , ब्लैक तथा जलेबी काफी प्रसिद्ध हुई है .

अंकुश गुप्ता 

जोगी एक्सप्रेस चिरमिरी जिला कोरिया छत्तीसगढ़ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *