भ्रष्टाचार का गढ़ वन मंडल मनेंद्रगढ़,,क्या सीएम बघेल के करीबी डी एफ ओ लोकनाथ पटेल के कारनामें होंगे उजागर

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भ्रष्टाचार के कई गंभीर मामलों सहित बड़ी राशियों के घोटालों के बाद भी किसकी मेहरबानी से बचे रहे,

कोरिया /एम सी बी – छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार की हिटलर साही और भ्रष्टाचार पूरे पांच वर्ष इतना हावी रहा कि सरकार का सूपड़ा ही साफ हो गया।जिस तरह भूपेश सरकार की भ्रष्टाचारी नीति से छत्तीसगढ़ सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए नामचीन कर दिया गया।उसी तरह इनसे जुड़े कुछ इनके तथाकथित अधिकारी रिश्तेदार जो पूरे पांच वर्ष भूपेश बघेल या उनके पिता के करीबी बताकर मलाईदार कुर्सी में दबंगई से बैठे रहे और जमकर भ्रष्टाचार किए।जिनमे से एक नाम मनेंद्रगढ़ वन मंडल के डी एफ ओ लोकनाथ पटेल का भी आता है।अवगत करा दें कि डीएफओ मनेंद्रगढ़ लोकनाथ पटेल कभी फॉरेस्ट डिविजन के लिए तरसते थे लेकिन इनके आका की जब सरकार बनी तो इन जनाब का किस्मत खुल गया या यू कहे अंधे के हाथ बटेर लग गए।और जो मनेंद्रगढ़ वन मंडल में पहली पोस्टिंग हुई इनके जलवों की तो बात मत पूछिए।चारो हाथ पांव घी में और सर पूरा कड़ाही में घुसाकर अब तक बैठे हुए हैं।जबकि अगर वन विभाग के बड़े अफसर पूरी स्वतंत्रता से काम करते तो इनके करतूतों की फेहरिस्त काफी पहले तैयार हो जाती परंतु जनाब डी एफ ओ साहब हल्के आदमी थोड़ी थे कि कोई भी अधिकारी इन पर हाथ डाल देता।बल्कि दबाव में अधिकारी इनके काले पीले को लीपापोती करने में विवश रहे।

इनके गुर्गे बनकर निर्माण कार्य करते थे प्रभारी रेंजर,,

सत्ता दल के जन प्रतिनिधियों के तलवे चाटने में महारत हासिल थी जनाब डी एफ ओ साहब को। जी हां जिस तरह भूपेश सरकार हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार और माफियाओं का एक छत्र राज स्थापित कर चुकी थी उसी की तर्ज पर डी एफ ओ मनेंद्रगढ़ तथाकथित रिश्तेदार वन मंडल में ठेकेदार बनकर पूरे कार्यकाल अपने प्रभारी रेंजरों से निर्माण कार्य कराते रहे। कैंपा से नरवा, अर्दन डेम, एनिकट,वन मार्ग,वृक्षारोपण,कंटूर ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसमे बड़े पैमाने पर राशियों की हेरा फेरी नही की गई हो।भौंता नारायणपुर का भारी भरकम डेम की राशि में भ्रष्टाचार हो या , थिनिंग के नाम सागौन की असमय कूप कटाई हो,जंगल से कोयले का अवैध गोरख धंधा हो या फिर लैंटाना उन्मूलन कार्य हो जनाब डी एफ ओ साहब हर काले कारनामे को खुद अंजाम देते आए हैं।ऐसा नहीं कि शिकायत नहीं हुई परंतु इनके आका का जब इन पर हाथ था तो ऐसे में मुख्य वन संरक्षक या प्रधान मुख्य वन संरक्षक स्वाभाविक रूप से इनका ही सहयोग करते इन्हे कार्यवाही से या काले पीले की लीपापोती से।एक बात जानकर हैरानी होगी कि इनकी दादागिरी इतनी है कि अगर कोई पत्रकार इनके करतूतों को अखबार में उजागर करता है तो ये अपने रेंजर से पत्रकार के खिलाफ झूठी शिकायत का अवसर भी नहीं गंवाते हालांकि अपने मामलों में स्पष्ट वादी रेंजर इनकी घटिया चाल में नही फंसते और खुद को इनके लिए उपयोग होने की स्थिति से बचाते रहते हैं।

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