कारनामों का गढ़,वन मंडल मनेंद्रगढ़ सूचना का अधिकार को रेंजरों ने बना दिया मजाक

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मनेंद्रगढ़ कोरिया – मनेंद्रगढ़ वन मंडल की भर्रासाही साही पर जिस तरह राज्य स्तर के नुमाइंदों से लेकर सरगुजा वन वृत्त की अफसरशाही का खुला समर्थन प्राप्त है उससे एक बात तो काफी हद तक साफ हो गई है की प्रदेश के उच्च स्तरीय वन विभाग के अधिकारियों की नीति और नियति पूरी तरह भ्रष्ट हो चुकी है।विभाग में ऐसे ऐसे लोग लंबे समय से विभाग के मलाई दार पदों पर बैठे हैं जिनकी विभागीय भूमिका लाइसेंसी चोरों और उठाईगीरों से कम नहीं है।जंगल की संपत्ति का खुला दो नंबर का व्यापार संचालित करने वालों का हुजूम बन चुका है वन विभाग।
मनेंद्रगढ़ रेंजर को खुली छूट किसके सह पर,,,
आपको बता दें कि काफी वर्षों से बड़ी बड़ी और गंभीर कारनामों की फेहरिस्त में पहला नाम मनेंद्रगढ़ के रेंजर का काफी शुमार हो चुका है।लगातार सुर्खियों में रहने के बाद भी कुर्सी बरकरार रखने की बड़ी महारत दिखा चुके हैं।जनाब की भाषाओं में अक्सर आम रहता है,,की सरकार किसी की भी हो पैसा बोलता है।जिस बात पर हम भी करीब करीब सहमत हो चुके हैं की ये सच है।आइए जानते हैं कैसे। वर्षों से मनेंद्रगढ़ के जंगलों से जारी कोयले का अवैध उत्खनन और बेरोक टोक तस्करी,मनेंद्रगढ़ के जंगलों की कटाई, नरवा योजना की मट्टी पलीत,गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्य,प्लांटेशन के नाम पर शासकीय राशि का बंदर बांट सहित कई गंभीर मामलों की शिकायतें मीडिया के माध्यम से राज्य तक अवगत कराने के बावजूद भी कार्यवाही का न होना जहां एक तरफ जंगलों के प्रति अनदेखी का सबब तो है ही परंतु ऐसे लापरवाह और गैरजिम्मेदार जो चिन्हित व सुर्खियों में बने हुए हैं।उनको जानबूझकर संरक्षित करने का कार्य इस बात को पुख्ता करता है की पैसा बोलता है सरकार कोई भी हो।

कारनामें न हो उजागर इसलिए नहीं देते जानकारी,,
सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी पर विभाग द्वारा पहले तो उल्टे सीधे जवाबों में उलझाया जाता है।और जब आवेदक नियमों के दांव पेंच शुरू करता है तो उससे मंडवाली यानी की ले देकर दस्तावेज न लेने की जोर आजमाइश की जाती है।बावजूद इसके अगर जानकारी पर अगर अड़ता है आवेदक तो उसे जानकारी देने में महीनों आनाकानी करने की बात पर आ जातें हैं।एक के कारनामों की भागीदारी दस से भी ज्यादा दोषियों को सामने न ला दे इसलिए डी एफ ओ और बाबू से लेकर चपरासी तक आर टी आई आवेदक को छकाने में कोई प्रयास बाकी नहीं रखते।जिससे आवेदक को परेशानी होती है जानकारी नहीं मिलती और इसी आड़ में भ्रष्टाचार का खेल चलता रहता है।

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