जैविक खेती की ओर तेजी से बढ़ता छत्तीसगढ़ गौठानों के वर्मी कम्पोस्ट से बढ़ रही पैदावार

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रायपुर, 17 फरवरी 2022/ छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद कृषि क्षेत्र में कई नवाचार हो रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ अब जैविक खेती की ओर तेजी से बढ़ रहा है। प्रदेश के किसान रासायनिक खाद की जगह गांवों के गौठानों में तैयार हो रहे वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट का उपयोग फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। इससे किसानों को कई लाभ हो रहे हैं। एक ओर जहां भूमि की उर्वरता बढ़ रही है तो दूसरी ओर कृषि लागत में भी कमी आ रही है। जैविक खाद के उपयोग से फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई है। वहीं रासायनिक खाद के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभाव से भी बचाव हो रहा है।  

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार ने न्याय योजना की कड़ी में गोधन न्याय योजना की शुरुआत की। राज्य सरकार इस योजना में गोबर की खरीदी गौठानों के माध्यम से कर रही है। गौठानों में एकत्र होने वाले गोबर से वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट का निर्माण किया जा रहा है। इस वर्मी कम्पोस्ट को 10 रुपये प्रति किलोग्राम और सुपर कम्पोस्ट को 8 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। गांवों में ही सस्ती कीमत पर जैविक खाद उपलब्ध होने से किसान जैविक खेती के लिए प्रेरित हो रहे हैं। जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखंड के ग्राम अंजोरपाली के किसान श्री किरीत राम पटेल भी उन्हीं किसानों में से एक हैं। किसान श्री किरीत राम ने बीते वर्ष खरीफ में धान की कटाई के बाद रबी फसल में उड़द लगाकर 62,400 रूपये का अतिरिक्त लाभ लिया है।
किसान श्री किरीत राम ने बताया कि उन्होंने कृषि विभाग के द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। विभाग द्वारा समय-समय में भ्रमण कर नवाचार की जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि पहले वे सिर्फ धान की खेती करते थे। धान की खेती के बाद खेत का उपयोग नहीं होता था। विभाग द्वारा दलहन क्षेत्र विस्तार और जैविक खेती फसल परिवर्तन के लिए प्रेरित किया गया।

घटा खर्च, बढ़ा उत्पादन –

किसान श्री किरीत राम ने बताया कि कृषि विभाग के मार्गदर्शन से रबी फसल के रूप में उन्होंने उड़द की खेती की, जिसमे 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से वर्मी कम्पोस्ट खाद का उपयोग किया। वर्मी खाद के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि हुई। जैविक खाद के उपयोग से बीज, पौध संरक्षण औषधि व अन्य उर्वरक की खरीदी में लगने वाले खर्च में बचत भी हुई।

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