यदुनाथ का बाँसुरिवादन बना जूनून

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 महासमुंद । पिथौरा ,,महासमुंद जिले के पिथौरा ब्लॉक के समीपस्थ ग्राम बरतुंगा में।  स्वयं  से बांसुरी सिख कर क्षेत्र में ख्याति अर्जित करने एवम 1998 में सर्वोच्च अंक पाने के बाद भी शिक्षाकर्मी की नॉकरी हासिल नही कर पाने वाला यदुनाथ अब गुमनामी के साथ सब्जी व्यवसाय कर रहा है।उसे इस बात का मलाल है कि उसने मध्यप्रदेश स्तर पर बांसुरी में ख्याति प्राप्त की इसके बावजूद आज तक किसी भी सरकार या जनप्रतिनिधियो ने उसकी कद्र नही की।
10 मई 1966 को पिथोरा विकासखण्ड के एक छोटे से ग्राम बरतुंगा के एक मजदूर परिवार कृष्णा चौहान के घर में जन्मे यदुनाथ चौहान अपने अंदर अनेक कला छिपाए अब खेतीबाड़ी कर रहे है।पढ़ाई में तात्कालिक समय मे सर्वोच्च अंक पाने के बाद भी उनकी शिक्षा कर्मी नॉकरी नही लग पाई।क्यों कि जनपद से हुई नियुक्तियों के कारण उनकी बलि व्यवस्था के कारण चढ़ गई।इस घटना से निराश वे इधर उधर भटक ही रहे थे कि एक दिन रेडियो में उन्होंने सुप्रसिद्ध बांसुरीवादक हरि प्रशाद चौरसिया का बांसुरी वादन सुना।इस वादन से उन्हें काफी सुकून मिला।उसके बाद से ही उन्हें बांसुरी सीखने की सनक सवार हुई और वे दिन भर मजदूरी के बाद जब भी बाजार जाते एक बांसुरी खरीद लेते।इन्ही बांसुरियों से यदुनाथ स्वयम ही बांसुरी से राग निकलने लगा।और धीरे धीरे उसके लिए बांसुरी से कोई भी धुन निकलना आसान हो गया।

छत्तीसगढ़ी  फ़िल्म एवम कार्यक्रमो में शिरकत

बांसुरी की मधुर धुन सुन कर छत्तीसगढ़ी फ़िल्म फुलकयना सहित उन्होंने छत्तीसगढ़ रंग मंच के कार्यक्रमो माटी मोर महतारी ,दूज के चंदा, एवम भोजली में अनेक वर्षों तक कार्य किया।इसके अलावा मध्यप्रदेश शासन द्वारा अयोजित एक कार्यक्रम में रायपुर के रँगमन्दिर में भी बांसुरी वादन के अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।।

शौक अब भी बरकरार

यदुनाथ का बाँसुरिवादन का शौक  अब भी बरकरार है।वे अपने घर मे जब भी थोड़ा समय मिलता है बांसुरी की धुन निकल कर अपना शौक पूरा करते है।
श्री चौहान स्थानीय स्तर पर रामायण एवम भजन संध्या में दिन भर काम करने के बाद भी बुलावे पर शामिल होकर कार्यक्रम में चार चांद लगा देते है।वे अपनी कला को व्यवसायिक रूप देना चाहते थे परन्तु कंप्यूटर एवम मोबाइल युग मे बांसुरी की धुन की अब बहुत ज्यादा कद्र नही है।लिहाजा उन्हें अपना प्रदर्शन निःशुल्क कर अपना शौक पूरा करना पड़ रहा है।

    परिवार गुजरा के लिए लगते है सागभाजी

यदुनाथ ने बताया कि उनकी एक लड़की मिला कर कुल तीन बच्चे है।परिवार का गुजारा करने वे सन 1998 से ही ग्रामीणों की जमीन किराए पर लेकर सब्जी के साथ प्याज का थरहा लगा कर आजीविका कमा रहे थे।उसी कमाई से अब उन्हीने 2 एकड़ कृषि भूमि खरीद ली है और उस पर भी वे सब्जी और थरहा लगा कर अपना परिवर आसानी से चला रहे है।बच्चो में  लड़की को वे बसना की आई टी आई में प्रशिक्षण दिल रहे है जबकि दोनो लड़के भी अध्ययनरत है।
बहरहाल एक छोटे से ग्राम के इस कलाकार ने पढ़ लिख कर भी नॉकरी नही मिलने के बाद भी संघर्ष जारी रखा और अब बांसुरी वादन एवम सागभाजी से अपना एवम अपने परिवार का भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में अग्रसर है।

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