शासन को गुमराह कर रहा है वन मंडल क्षेत्र मनेंद्रगढ़ फर्जीवाड़े का नया खेल

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पुख्ता मामलों के जांच मैं भी मनेंद्रगढ़ वन मंडल कर रहा हिल हवाली

शिकायती कार्यों और स्थलों के जांच की जगह उच्चाधिकारियों को गुमराह कर भेजते हैं अन्य छेत्रो की जानकारी

इंट्रो: जब सब कुछ पर्दे में हो और गुजारिश की जाए नकाब हटाने की उस वक्त का आलम क्या होगा यह आप सभी जानते हैं मनेंद्रगढ़ मंडल क्षेत्र के अंतर्गत आपको यह देखने और देखने के लिए अधिकारियों के चश्मे से देखना होगा वह जहां बताएंगे वहां आपको सब कुछ हरा ही हरा नज़र आएगा ,लेकिन परिस्थितियां और स्थितियां दोनों ही इनके विपरीत हैं हम बात कर रहे हैं वन मंडल क्षेत्र मनेंद्रगढ़ की यहां पर जांच के नाम पर अधिकारी उसी स्थल का चयन करवाते हैं जहां पर उनकी इज्जत बची रहे ।लेकिन कागजों में बड़ा बड़ा खेल ये अधिकरियो के साथ मिल कर करते हैं बीते दिनों ही हमने खबर प्रकाशित की थी जिस पर जांच होनी चाहिए थी लेकिन अधिकारियों वह शासन को गुमराह करने के लिए अधिकारी अब नए पैंतरे आजमा रहे हैं शासन को चूना के साथ-साथ अब वह अधिकारियों की आंखों में धूल झोंकने का कार्य कर रहे हैं।अब जाँच होगी य भ्रष्टाचार मैजिक अधिकारियों को अभय दान मिलेगा यह अभी समय के गर्भ गृह में छुपा हुआ है।

मनेंद्रगढ़ कोरिया – मनेंद्रगढ़ वन मंडल और यहां के कुछ कर्मठ जिम्मेदार, इन दिनों अपने दायित्वों को पूरा करने में जिस तरह लापरवाह देखे जा रहे हैं।और अखबारों में सुर्खियां बटोर रहे हैं।वो बड़ी चर्चा का विषय बनता जा रहा है।जिस पर अपनी कमियों और कराए गए गुणवत्ता विहीन कार्यों पर सुधार व उन उद्देश्य हीन निर्माण कार्यों पर अध्ययन के बजाए सोशल मीडिया में डैमेज कंट्रोल का फंडा अपना रहे हैं।जबकि वर्तमान स्थिति में मनेंद्रगढ़ वन मंडल के कुछ परिक्षेत्रों में ऐसे कार्यों की पूरी फेहरिस्त पड़ी हुई है जिनकी अगर पारदर्शिता पूर्वक सिर्फ जांच ही हो जाए तो बयान बाज़ी करने वालों की सारी हेकड़ी निकल जाएगी

गुमराह करने वाली जांच और आर टी आई नियमों की अनदेखी से बात बनी तो ठीक वरना,,सोशल मीडिया में बयान बाज़ी पर आते हैं उतर

आपको बता दें कि वन विभाग के जिन अधिकारियों के कार्यक्षेत्र और ग्राउंड जीरो की वास्तविक स्थिति की खबरें अखबारों में प्रकाशित की जाती है तो उन्हें बड़ा खराब लगता है।जबकि अगर इन्हीं मामलों से जुड़ी कागजी जानकारी और सूचना के अधिकार के तहत लगे आवेदनों पर गौर करें तो ये वहां पर भी डैमेज कंट्रोल वाली पद्धति अपनाते हैं।सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारियों में भी आवेदनों को निर्धारित समय से ज्यादा लटका दिया जाता है और अंतोगत्वा जानकारी न देने के लिए शाम दाम और दंड भेद की नीति अपना लेते हैं।विगत महीने पूर्व अखबारों में उद्देश्य हीन और नरवा निर्माण के गलत मापदंडों की खबर पर विभाग के ही एक एस डी ओ के द्वारा उच्चाधिकारियों के कहने पर उक्त मामले की जांच की गई थी।जो आज भी संदेहास्पद है अवगत करा दें कि जिस कार्य और स्थल का जिक्र अख़बार में किया गया था। शायद उनकी जांच न करके अन्यत्र स्थल की जांच की गई और अख़बार में लिखे तथ्यों को निराधार बता दिया गया।जिसे अगर गुमराह करने वाली जांच भी कहें तो अतिश्ोक्ति नहीं होगी।बहरहाल उक्त सभी पहलुओं पर विभाग के जिम्मेदारों को सार्थक अमल करते हुए छत्तीसगढ़ शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं को अमली जामा पहनाना चाहिए और रही बात अच्छे कार्यों और वास्तविक विकास की तो अख़बार और सोशल मीडिया के प्रतिनिधियों को सभी बातें स्पष्ट दिखाई देती हैं।बिल्कुल निष्पक्ष।

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