केंद्रीय पूल में चावल के कोटे में किंतु-परंतु और शर्तें लादना मोदी सरकार के किसान विरोधी चरित्र का प्रमाण है

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संघीय व्यवस्था के तहत राज्यों द्वारा उपार्जित सरप्लस धान से बने चावल को केंद्रीय पूल में प्रबंधित करने वाले मोदी देश के पहले किसान विरोधी प्रधानमंत्री हैं

रायपुर/13 अक्टूबर 2021। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा खरीफ वर्ष 2021-22 हेतु केंद्रीय पूल में लिए जाने वाले मात्र अरवा चावल लेने के शर्तों पर आपत्ति करते हुए छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता, सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के किसान हितैषी योजनाओं पर मोदी सरकार की पहले से ही टेढ़ी नजर है और लगातार राज्य की योजनाओं को रोकने में लगी है। सेंट्रल पूल में चावल की नई शर्ते भी उसी दिशा में मोदी सरकार का किसान विरोधी कदम है। छत्तीसगढ़ में किसान कई प्रकार के धान की पैदावार करते है। चालू खरीफ वर्ष में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत पंजीकृत किसानों से लगभग 1 करोड़ मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है। राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक किसान मोटा धान, सरना, महामाया आदि पैदावार करते है, जो ज्यादातर उसना चावल बनाने का काम आता है। ऐसे में मोदी सरकार 61 लाख मीट्रिक टन लेने और सिर्फ अरवा चावल लेने का शर्त छत्तीसगढ़ के किसानों के साथ अन्याय है। दरअसल मोदी सरकार 61 लाख मीट्रिक टन चावल लेने का वाहवाही लूट रही है लेकिन उनके लगाये शर्तो के अनुसार अरवा चावल लेने और उनके क्वालिटी कंट्रोल के नये मापदंड के चलते पूर्व वर्ष की तरह मात्र 24 लाख मीट्रिक टन लेने की मंशा नजर आती है। बीजेपी और मोदी सरकार की मंशा है कि आगे के लिये छत्तीसगढ़ सरकार पर दोष मढ़कर किसान हितैषी होने, राजनैतिक जमीन तैयार किया जा सके। 2014 से पहले इस प्रकार से राज्य सरकारों के द्वारा उपार्जित धान से बने चावल को केंद्रीय पूल में प्रतिबंधित करने का कोई प्रावधान नहीं था, क्योंकि एमएसपी तय करना और एमएसपी पर खरीदी संघीय ढांचे में तय व्यवस्था के तहत केंद्र का दायित्व है। राज्य सरकारें एक एजेंसी के रूप में खरीदती है। बल्कि राज्य सरकारों के द्वारा उपार्जित संपूर्ण अतिरिक्त धान और चावल केंद्र सरकार के द्वारा केंद्रीय पूल में हमेशा लिया जाता रहा है। रमन सिंह के समय भी 2014 के पहले जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी तब भी रमन सरकार के द्वारा छत्तीसगढ़ में उपार्जित सरप्लस धान से बने चावल की पूरी मात्रा केंद्रीय पूल में लिया जाता रहा है। 2014 में देश के इतिहास में पहली बार मोदी सरकार ने इस प्रकार का किसान विरोधी फरमान जारी किया कि कोई भी राज्य एमएसपी से अतिरिक्त ₹1 भी प्रोत्साहन राशि किसानों को देता है तो केंद्रीय पूल में नहीं खरीदा जाएगा।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि वर्तमान सीजन में केंद्र सरकार के द्वारा केंद्रीय पूल में उपार्जन के लिए जारी नियम में उसना चावल को लेने से प्रतिबंधित करने से छत्तीसगढ़ के लाखों किसानों जो मोटा सरना, महामाया जैसे मोटा धान की पैदावार लेते है, सैकड़ों उसना राइस मिल और वहां जुड़े हजारों छत्तीसगढ़िया जनता के आर्थिक हितों के खिलाफ है। गुणवत्ता और ब्रोकन के नए मापदंड लादकर केंद्र सरकार केंद्रीय पूल में लेने की अपनी जिम्मेदारी से बचने का नया बहाना तलाश रही है। जो क्वालिटी और परिस्थितियां वर्तमान में है अचानक सभी जगह परिवर्तित करना, न ही व्यवहारिक है, न ही संभव, लेकिन जानबूझकर मोदी सरकार किसानों और छत्तीसगढ़ सरकार को प्रताड़ित करने इस प्रकार के तुगलकी फरमान जारी कर रही है। पिछले साल भी इसी प्रकार 60 लाख मैट्रिक टन की सैद्धांतिक अनुमति देकर भारतीय जनता पार्टी के छत्तीसगढ़ के नेताओं के बरगलाने के कारण केंद्रीय पूल का कोटा घटाकर 60 लाख से 24 लाख मैट्रिक टन कर दिया गया। भाजपा और मोदी सरकार का रवैया पूरी तरह से किसान विरोधी है, छत्तीसगढ़ के हक़ और हित के खिलाफ हैं।

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