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ओबीसी आरक्षण, सामाजिक न्याय विरोधी भाजपा का नया भ्रमजाल है - Jogi Express

ओबीसी आरक्षण, सामाजिक न्याय विरोधी भाजपा का नया भ्रमजाल है

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सत्ता में रहते हुए आरक्षण में कटौती करने वाले भाजपाई अब पिछड़ों और वंचितों के हितैषी होने का ढोंग कर रहे हैं

भाजपा के कुशासन में स्थानीय नेताओ, कार्यकर्ताओं के हक का गला घोंट कर शोषक वर्ग के हाथों में रही 15 साल सत्ता की कमान

पूंजीवाद ही भाजपा, आरएसएस का हिडन एजेंडा है, निजीकरण के द्वारा पिछले दरवाजे से आरक्षण, आरक्षित वर्ग के रोजगार के
अधिकार को खत्म करने की साजिश

रायपुर/17 अगस्त 2021। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि सामाजिक न्याय, सत्ता में सभी वर्गों की सहभागिता, पिछड़ों के हितों का संरक्षण और संवर्धन भूपेश बघेल सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। भूपेश बघेल सरकार ने 15 अगस्त 2019 को ही छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की घोषणा की थी। 15 साल रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार को कभी पिछड़ों और वंचितों की याद नहीं आयी। 15 साल इनके द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया बल्कि इसके विपरीत अनुसूचित जाति के आरक्षण को 14 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया। रमन सरकार में 15 साल तक आउटसोर्सिंग किए गए नेताओं के हाथों में ही सत्ता की कमान रही। प्रतापगढ़ीया सीएम, रतलामी और राजस्थानी कद्दावर मंत्री नंबर दो और नंबर तीन के पोजीशन पर रहे। ओबीसी वर्ग के कद्दावर नेता ताराचंद साहू को भाजपा छोड़ना पड़ा। सात बार के सांसद रमेश बैस की भाजपा सरकार में स्थिति सर्वविदित है। ननकीराम कंवर, रामविचार नेताम और नंदकुमार साय जैसे कद्दावर आदिवासी नेता किनारे लगा दिए गए। भाजपा सरकार में महत्वपूर्ण निगम, मंडल, आयोग आदि यूपी, गुजरात और महाराष्ट्र से आयातित संघियों को बाटे गए। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 32 परसेंट है और इस वर्ग को वर्तमान में 32 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है जो यथावत जारी रहेगा। अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है जिसको रमन सरकार के दौरान 14 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था, जिसे भूपेश बघेल सरकार ने 15 अगस्त 2019 में बढ़ाकर 13 प्रतिशत करने की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में ओबीसी आबादी प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 50 परसेंट है और इस वर्ग को 14 परसेंट आरक्षण का लाभ मिल रहा है जिसे बढ़ाते हुए भूपेश बघेल सरकार ने 15 अगस्त 2019 को 27 परसेंट करने की घोषणा की। प्रदेश की लगभग आधी आबादी ओबीसी वर्ग की है फिर इस वर्ग को 27 परसेंट आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए? आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के लाभ को भी शामिल किया गया है। बिलासपुर हाईकोर्ट में चार अलग-अलग याचिका ओबीसी को 27 परसेंट आरक्षण दिए जाने के खिलाफ लगाई गई, जबकि एक याचिका उक्त आरक्षण के पक्ष में लगी है। माननीय उच्च न्यायालय, बिलासपुर के द्वारा सरकार से ओबीसी वर्ग को 27 परसेंट आरक्षण दिए जाने का आधार पूछा गया है। प्रदेश के 50 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग की जनता के लिए 27 परसेंट आरक्षण लागू करने सरकार प्रतिबद्ध है और इसी संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के समक्ष पुख्ता आधार प्रमाणित करने प्रदेश सरकार इन वर्गों के आंकड़े जुटा रही है। इसके लिए जिला और नगरीय निकाय क्षेत्र स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित किया गया है प् 05 सदस्यीय इन समितियों में ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का एक-एक प्रतिनिधि अनिवार्य रूप से शामिल करने का प्रावधान है। आरक्षित वर्गवार सही संख्या जानने के लिए सेवानिवृत जिला एवं सत्र न्यायाधीश छबीलाल पटेल की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया है । वर्गवार जानकारी जुटाने का आधार राशन कार्ड होगा। विदित हो कि छत्तीसगढ़ में करीब 68 लाख़ 15 हज़ार से ज्यादा राशन कार्ड जारी किया गया है, इनमें 2 करोड़ 52 लाख़ से ज्यादा लोग शामिल हैं। 95 प्रतिशत राशन कार्ड आधार से लिंक है। 32 लाख से अधिक राशन कार्ड ओबीसी वर्ग के लोगों का है। सरकार की योजना उक्त डेटाबेस के सोशल ऑडिट करवाने की भी है। ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सभा में और नगरीय निकाय क्षेत्र में वार्ड स्तर पर उक्त राशन कार्ड का सत्यापन, संशोधन और अनुमोदन किया जाएगा ताकि प्रमाणित आधार तैयार हो।
प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि पिछड़ा वर्ग के हितैषी होने का ढोंग करने के बजाए भाजपा यह बताएं की रमन सरकार के 15 साल में ओबीसी आरक्षण के लिए क्या प्रयास हुए? ओबीसी, एससी और एसटी की कुल आबादी छत्तीसगढ़ में 95 प्रतिशत है, यदि इन तीनों वर्गों के स्थानीय लोगों को कुल मिलाकर 72 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है? जहां तक संवैधानिक बाध्यता की बात है तो हरियाणा में 70 प्रतिशत, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में 68 प्रतिशत, एमपी में 63 प्रतिशत, झारखंड में 60 प्रतिशत और राजस्थान में 54 प्रतिशत भी पूर्व में तय 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है। संविधान का दर्शन और मूल भावना पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी और सामाजिक न्याय के लिए उनके अधिकारों के संरक्षण का है। समता और समानता का तात्पर्य पिछड़ों और वंचितों के हितों का संरक्षण भी है। पिछड़ों और वंचितों के संदर्भ में भाजपा का बयान केवल ढोंग और दिखावा है। भाजपा तो केवल मुखौटा है इनको चलाने वाले आरएसएस मोहन भागवत का बिहार चुनाव के दौरान वक्तव्य याद होगा जब उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है आरक्षण की समीक्षा करके उसे खत्म करने का। आर एस एस के बड़े नेता एमजी वैद्य ने भी देश में आरक्षण खत्म करने की वकालत की है। अब चूकी यूपी में चुनाव है और भाजपा के पास बताने को कोई उपलब्धि नहीं है, जनता हिसाब मांग रही है, तो भाजपाई 52 प्रतिशत ओबीसी आबादी को लक्ष्य करके आरक्षण के समर्थक होने का ढोंग करने लगे हैं।
प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि आर एस एस और भाजपा का असल एजेंडा पूंजीवाद है, आरक्षण का मुखौटा तो केवल दिखावा है। सरकारी कंपनियों, सरकारी निगमों, सरकारी उपक्रमों के निजीकरण से सर्वाधिक प्रभावित आरक्षित वर्ग के युवा हो रहे हैं क्योंकि बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्ट, नवरत्न कंपनियां, बंदरगाह, एचपीसीएल जैसी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण करके मोदी सरकार द्वारा इन संस्थानों में आरक्षित वर्ग के युवाओं के रोजगार के अवसर को षडयंत्र पूर्वक समाप्त किया जा रहा है। दरअसल भाजपा पिछड़ों और वंचितों की नहीं, बल्कि चंद पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए काम करने वाली पार्टी है। इनके जुमले केवल चुनावी हैं।

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