होली: कोरोना के चलते शासन के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मनाएं

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पलाश के फूल से मनाएं स्वस्थ और सुंदर होली-दीपक

अर्जुनी/सुहेला/रावन । अंचल सहित व आयुर्वेद ग्राम रावन में भाई-चारे और रंग-बिरंगे रंगों का त्यौहार होली का महान पर्व , पानी बचाओ अभियान के साथ व कोरोना के चलते शासन के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मनाया जाएगा। होली रंगों का त्योहार है। पलाश के फुल रंगों के इस त्योहार में योग आयुर्वेद के प्रचारक दीपक वर्मा ने कहां आयुर्वेद प्राकृतिक से जुड़ी सिंदूरी लाल पलाश (टेसू) के फूल का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि लंबे समय से इसके फूलों का प्रयोग रंग बनाने के लिए किया जाता है। इन रंगों का प्रयोग होली खेलने के लिए किया जाता है। वर्तमान में कृत्रिम रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करते हुए पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंगों के लिए करने लगे हैं।सुहेला, मोहरा,पडकीडीह, भटभेरा, तिल्दा बांधा,भोथाडीह,झीपन,खपराडीह, कई ग्रामीण इलाकों में पलाश के पेड़ मौजूद हैं। इन ग्रामीण इलाकों में कई वर्षों से पलाश के फूल से बने रंगों से होली खेली जाती है, क्योंकि इस रंग से त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता है। साथ ही इसके असीमित औषधीय गुण शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। प्राचीन काल में इसके फूलों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था। वे हर वर्ष पलाश के फूलों से रंग बनाकर होली खेलते हैं और लोगों को हर्बल रंग उपयोग करने के लिए जागरूक करते हैं।

होली खेलने से पहले केमिकल युक्त रासायनिक रंगों से बचने के लिए शरीर में ग्लिसरीन का उपयोग करें। जिससे होली खेलने के दौरान शरीर में लगे हुए रंगों को ज्यादा रगड़ कर धोने की जरूरत नहीं पड़ता। और आसीन से निकाल जाता है।

होलिका दहन

पं.चन्द्र प्रकाश वैष्णव ग्राम रावन ने बताया इस साल होलिका दहन दिन रविवार को पड़ रहा है। होलिका दहन भद्राकाल को त्याग कर किया जाता है, इस वर्ष संध्याकालीन 5:43 के बाद होलिका दहन किया जाएगा। साथ ही होलाष्टक भी समाप्त हो जावेगा। शुभ कार्य पुनः प्रारंभ हो जाएगा।

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