विदेशी अब छत्तीसगढ़ में ले रहे हैं टिश्यू कल्चर से गन्ना एवं केला पौधा तैयार करने की तकनीक का प्रशिक्षण  

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jogi express

  रायपुर,  अफ्रीका महाद्वीप के 14 देशों के 45 प्रतिनिधि इन दिनों छत्तीसगढ़ में टिश्यू कल्चर से गन्ना एवं केला पौधा तैयार करने की तकनीक का प्रशिक्षण ले रहे हैं। इनका प्रशिक्षण 20 नवम्बर से शुरू हुआ है और 16 दिसम्बर तक चलेगा। इन प्रतिनिधियों को राजधानी रायपुर के नजदीक यश बॉयोटेक छछानपैरी में लेब टेªनिंग दी जा रही है। इन्होंने छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में गन्ने और केले की खेती भी देखी। प्रतिनिधियों में संबंधित देशों के कृषि वैज्ञानिक, कृषि मंत्रालयों के अधिकारी, कृषि विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और अन्य विभागों के अधिकारी शामिल हैं। कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल से आज यहां उनके शंकरनगर स्थित निवास पर इन प्रतिनिधियों ने सौजन्य मुलाकात की। इनमें अफ्रीकी देश चाड, कोमोरोस, कीनिया, मलावी, मेडागासकर, नाईजीरिया, सूडान, सेनेगल, तनजानिया, तुनिसीया यूगाण्डा, जाम्बिया, मॉरिशस और सेशेल्स के प्रतिनिधि शामिल हैं।
यश बॉयोटेक के लेब इंचार्ज श्री चितरंजन सिंह ठाकुर एवं कृषि वैज्ञानिक श्री अशोक टेम्भरे ने मुलाकात के दौरान बताया कि भारत-अफ्रीकी समन्वय कार्यक्रम के तहत इन प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण चल रहा है। भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इस कार्यक्रम का प्रायोजक है। इन प्रतिनिधियों ने नई दिल्ली में एक सप्ताह का वॉयरस एवं बॉयोटेक पर भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है। कृषि मंत्री श्री अग्रवाल के साथ मुलाकात के दौरान इन प्रतिनिधियों ने छत्तीसगढ़ में गन्ने और केले की खेती की प्रशंसा की। कृषि मंत्री श्री अग्रवाल ने प्रतिनिधियों को बताया कि छत्तीसगढ़ की जलवायु और भौगोलिक स्थिति खेती-किसानी के लिए अनुकूल है। प्रदेश सरकार द्वारा पूरे छत्तीसगढ़ को भौगोलिक स्थिति के अनुसार खेती-किसानी के लिए तीन भागों में बांटकर खेती-किसानी एवं किसानों के लिए अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। बस्तर के पहाड़ी क्षेत्र, सरगुजा के पठारी क्षेत्र और शेष मैदानी क्षेत्र के रूप में चिन्हित कर खेती-किसानी को बढ़ावा दिया जा रहा है। अनाज, दलहनी, तिलहनी, फल-फूलों, सब्जियों तथा मसाला फसलों की खेती के मामले में अलग-अलग जिलों की एक पहचान है।

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