आम बजट 2021 में राष्ट्र की संपत्ति निजी हाथों में सौपने और कोरे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं है

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रायपुर/ 01 फरवरी 2021। राज्यसभा सांसद छाया वर्मा ने कहा है कि आम बजट 2021 में सरकार का सारा का सारा जोर सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में बेचने पर है। रेल्वे, खनन, एयरपोर्ट, एअर इंडिया, बीपीसीएल, खान, खनन क्षेत्र की कंपनियां, ंबीमा क्षेत्र में 49 से एफडीआई 74 प्रतिशत करना जैसे तमाम क्षेत्र हैं, जिनको निजी हाथों में मनमाने तरीके से सौंपने की नीति/घोषणा इस बजट में सरकार द्वारा किया गया है।
सवाल है कि निजी क्षेत्र जनहित और राष्ट्रहित के काम कितना करेंगे, यह बात देश के बड़े औद्योगिक घरानों को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार की गलत नीतियों के कारण चंद निजी कंपनियों की आय देश की संपत्ति के दोहन के बाद तकरीबन हर वर्ष दोगुनी होती जा रही है, यह नितान्त चिंता की बात है।
रेलवे जैसा विभाग, देश में सबसे ज्यादा रोजगार देता है, इसे निजी हाथों में सौंपने का क्या कारण है?  सरकार कारण नहीं बताती, मनमानी तरीके से राष्ट्र की संपत्ति को निजी हाथों में सौंपने का उपक्रम चला रही है। सरकार सब कुछ निजी हाथों में बेचने पर आमादा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। आज बेरोजगारी चरम पर है और जो क्षेत्र रोजगार दे सकता है, उसे सरकार निजी हाथों में सौप रही हैं। नौजवानों का भविष्य अंधकार में है, हम अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे हैं, अच्छे बेहतर जॉब-नौकरी के लिए पर उनका भविष्य सरकार अंधकार की ओर ले जा रही है, यह बजट से प्ररिलक्षित हो रहा है।
जहां तक किसानों की बात है, इस बजट में किसानों के लिए आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं दिखता है। पूरा का पूरा बजट किसानों की आय आश्वासनों के जरिए डेढ़ गुणा करने की बात के इर्द-गिर्द घूम रहा है, जबकि सरकार कहती है कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी कर देगी, दोगुना होगी या डेढ गुणा, यह विरोधाभासी बातें किसानों के लिए, इस बजट में है।
दूसरी तरफ कांग्रेस सरकार के राज में कृषि उपकरण पर 4 से 12 प्रतिशत टैक्स था लेकिन भाजपा सरकार जीएसटी लागू किया और कृषि में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों  पर 28 प्रतिशत तक टैक्स लगा दिया है। यह किसानों के साथ भद्दा मजाक है, इतना ज्यादा कृषि उपकरणों पर टैक्स किसानों के साथ धोखा है।
जहां तक एमएसपी की बात है तो सरकार मात्र आश्वासन दे रही है की एमएसपी थी है और रहेगी। इसके अलावा कुछ नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि एमएसपी के लिए कोई कानून है ही नहीं। वह सरकार के घोषणा के आधार पर एक एक्सक्यूटिव आदेश के जरिए लागू है। इसीलिए देश भर के 6 प्रतिशत किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल पा रहा है। फिर सवाल है कि एमएसपी जब कानून ही नहीं है तो जब नए कानून के तहत निजी क्षेत्र किसानों की उपज खरीदेगा तो वह एमएसपी दर पर अनाज क्यों खरदेगा, जब कोई कानून ही नहीं है, तो मनमाने तरीके से किसानों के उत्पाद को निजी क्षेत्र खरीदेगा। जिसके आसानी के लिए सरकार पहले ही कानून दी है। ऐसे हालात में सरकार खुद किसानों को गुमराह कर रही है कि एमएसपी था, है, रहेगा। ऐसे में किसान का कल्याण कैसे होगा ?
सरकार यह भी कह रही है कि वह तो निजी हाथों में सब कूछ सौंप ही रही है, राज्यों को भी प्रोत्साहन देगी कि वह भी निजी हाथों में अपने-अपने उपक्रमों को सौंपने की प्रक्रिया अपनाएं।
किसान अपने खेतों में सिंचाई के लिए डीजल का इस्तेमाल करता है। डीजल पर सात से आठ प्रतिशत वृद्धि इस 1 साल में प्रति लीटर हुई है जबकि एमएसपी पर प्रति कुंटल चंद रुपए बढ़ाने की घोषणा सरकार करती है। वह भी गारंटी नहीं है कि वह एमएसपी दर पर खरीदेगी। जब सरकार डीजल पर प्रति लीटर वृद्धि करती है तो क्यों नहीं किसानों द्वारा उत्पादित खद्यान्न पर प्रति किलो की दर से एमएसपी दर में इजाफा किया जाए, जैसे डीजल और पेट्रोल पर वृद्धि हो रही है। अगर वाकई किसानों की आय बढ़ानी है, किसानों की आय दोगुनी करनी है तो सरकार कुंटल की बजाय प्रति किलो की दर पर एमएसपी की दर बढ़ाए और बाध्यकारी कानूनी खरीदने के लिए लाए।
इस बजट में ज्यादातर चीजें आश्वासनों पर है, एमएसपी, पर्यावरण स्वच्छ करने के लिए बड़ी राशि की घोषणा की गई है। गंगा निर्मल स्वच्छ बनाने की योजना में अरबों रुपया लगा दिया गया पर गंगा कितनी निर्मल-स्वच्छ हुई, यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार की नीतियों से पर्यावरण कितना स्वच्छ होगा, यह बात भविष्य की गर्त में है लेकिन पिछले कुछ वर्षों का सरकारी कामकाज देखा जाए तो पर्यावरण के मामले में मात्र किसानों पर उनके अवशेष जलाने पर फाइन लगाने से ज्यादा और कुछ सरकार ने नहीं किया है। यह आश्वासनों से काम चलाने वाली सरकार है, जमीनी धरातल पर उतरने वाली नहीं।
इस बजट में आधी आबादी यानी महिलाओं की उपेक्षा साफ नजर आती है। महिलाओं के लिए बजट में कुछ नहीं है। आधी आबादी की उपेक्षा, निंदनीय है।
सब कुछ ऑनलाइन करने पर सरकार का जोर है। पर सरकार यह भूल रही है कि देश में कितने टेक्नोलॉजी साधन-सम्पन्न लोग हैं, जो ऑनलाइन के जरिए सब कुछ पा लेंगे। लॉकडाउन में शिक्षा पूरी तरह ऑनलाइन थी, इसमें क्या दिक्कतें आई, समस्याओं की वजह से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा, इसका मूल्यांकन करना चाहिए था। ऑनलाइन के फायदे और दूष्प्रभाव दोनों हैं। किसान, आम आदमी और मजदूर ऑनलाइन व्यवस्था से लाभ कितना उठा पाएगा, यह बात किसी से छिपी नहीं है। ऑनलाइन की व्यवस्था से आम आदमी को गुमराह करने जैसा है। वन नेशन वन राशन कार्ड पर सरकार लंबे समय से काम कर रही है, धरातल पर इस दिशा में कितना काम हुआ है। सरकार आंकड़े प्रस्तुत नहीं कर रही है। आश्वासनों, निजी हाथों में सरकारी कंपनियों को सौपने के अलावा इस बजट में और कुछ नजर नहीं हा रहा है।

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