भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध : राजनाथ सिंह
नई दिल्ली : रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने आज यहां राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज (एनडीसी) के हीरक जयंती समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर एक दो-दिवसीय (05-06, नवंबर 2020) वेबिनार की शुरुआत करते हुए श्री सिंह ने ‘भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा- एक दशक आगे’ विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया।
श्री सिंह ने कहा कि सिर्फ युद्ध को रोकने की क्षमता के जरिए ही शांति सुनिश्चित की जा सकती है। “विभिन्न राष्ट्रों के उत्थान और पतन का शायद सबसे बुनियादी सबक यह है कि सिर्फ शांति की कामना से ही आवश्यक रूप से शांति हासिल नहीं की जा सकती। बल्कि इसे युद्ध को रोकने की क्षमता के जरिए सुनिश्चित किया जा सकता है। दुर्भाग्य से महज शांति की कामना, दूसरों की पहल के अभाव में, सुरक्षा, संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के परस्पर विरोधी विचारों से घिरी इस दुनिया में एक समरस वातावरण बनाने में आवश्यक रूप से सफल नहीं होती।” रक्षा मंत्री ने चार व्यापक सिद्धांतों को रेखांकित किया, जो संभावित रूप से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के भविष्य के प्रयासों का मार्गदर्शन करेंगे। “पहला सिद्धांत, बाहरी खतरों और आंतरिक चुनौतियों से भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित करने की क्षमता है। दूसरा, भारत के आर्थिक विकास को प्रेरित करने वाली सुरक्षित और स्थिर परिस्थिति बनाने की क्षमता ताकि राष्ट्र निर्माण और व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों का सृजन किया जा सके। तीसरा, हम सीमाओं से परे उन क्षेत्रों में अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जहां हमारे लोग निवास करते हैं और हमारे सुरक्षा संबंधी हित निहित होते हैं। और आखिर में, हम भी यह मानते हैं कि एक वैश्वीकृत और परस्पर जुड़ी दुनिया में किसी देश के सुरक्षा संबंधी हित साझा और सुरक्षित उभयनिष्ठ हितों के जरिए आपस में जुड़े होते हैं।”
श्री राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि भारत ने यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति के एक साधन के रूप में अपनाने वाले देशों को उन विकल्पों के माध्यम से भी रोका जा सकता है, जिन्हें अतीत में कार्यान्वित नहीं किये जाने योग्य समझा जाता था। उन्होंने कहा, “राज्य की एक नीति के रूप में आतंकवाद के उपयोग को लेकर पाकिस्तान अडिग है। हालांकि, हमने प्रगतिशील और समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर न केवल पाकिस्तान की प्रतिगामी नीतियों को उजागर किया है, बल्कि उसके लिए एक आम रवैये के रूप में अपनी पिछली गतिविधियों को जारी रखना भी कठिन बना दिया है।”
रक्षा मंत्री ने साझा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से समान विचारों वाले मित्र देशों और इस क्षेत्र एवं उससे परे के देशों के साथ भारत के करीबी रिश्तों और भागीदारी को रेखांकित किया। “अमेरिका के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी पहले की अपेक्षा कहीं अधिक मजबूत है।” भारत की मित्रता जापान, ऑस्ट्रेलिया और रूस के साथ भी काफी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि फ्रांस और इजरायल जैसे भरोसेमंद मित्रों के साथ भी भारत ने एक बहुत ही ख़ास साझेदारी की है।
उन्होंने कहा कि भारत की विदेश और सुरक्षा नीति के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक “पहले पड़ोस (नेबरहुड फर्स्ट)” पहल है। “2014 से ही, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त व्यक्तिगत प्रयास किया है कि यह रिश्ता सकारात्मक और प्रगतिशील साझेदारी बनाने के उद्देश्य से निर्मित व मजबूत हो। इस पहल के परिणाम स्पष्ट हैं। आतंकवाद को बढ़ावा देने के पाकिस्तान के एजेंडे को देखते हुए, उसे छोड़कर भारत ने अन्य सभी पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों में सुधार किया है। पारस्परिक-सम्मान और पारस्परिक-हित पर आधारित संबंध बनाने के उद्देश्य से हमने अपने दोस्तों को काफी मदद और समर्थन दिया है।”
रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया के हमारे सहयोगी देशों साथ संपर्क बढ़ाने में विशेष रुचि ली है। “इसी पहल का यह परिणाम है कि हमने पश्चिम में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ओमान के साथ और पूर्व में इंडोनेशिया, वियतनाम और दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों के दायरे और उसकी गुणवत्ता में विस्तार किया है। मुझे लगता है कि अगले दशक में इस रुझान को और आगे बढ़ाया जायेगा।”
भारत के क्षमता विकास और स्वदेशीकरण की दीर्घकालिक नीति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी हाल की खरीद नीतियां “उन प्रमुख ओईएम के साथ साझेदारी करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जो भारत में निवेश और निर्माण करने के इच्छुक हैं। रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में मेक इन इंडिया के हमारे दृष्टिकोण को भारत को और अधिक आत्मनिर्भर बनाने की दीर्घाकालिक नीति के साथ लागू किया जा रहा है।”
युद्ध के उभरते और बदलते चरित्र के बारे में बोलते हुए, रक्षा मंत्री ने कहा “इस संबंध में हाल के दिनों में हमारी ओर से बड़ी संख्या में पहल की गई है। संरचनात्मक स्तर पर, भारत के पास अधिक बारीकी से परस्पर जुड़ा और समन्वित सुरक्षा नेटवर्क है। हमने न केवल चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सीडीएस, की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग की स्थापना की है, बल्कि हम थिएटर और कार्यात्मक कमांड, दोनों, के माध्यम से सशस्त्र बलों को और अधिक एकीकृत करने की प्रक्रिया में भी हैं।”
आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि एक त्रि-आयामी दृष्टिकोण अपनाया गया है। “इसमें पीड़ितों को न्याय के प्रावधान के साथ-साथ आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्रों का विकास शामिल है। इसमें राजनीतिक समाधान को संभव बनाने के उद्देश्य से असंतुष्ट समूहों के साथ समझौतों पर बातचीत करने के लिए आधे से अधिक रास्ते तक जाने की क्षमता और इच्छा भी शामिल है। और अंत में, अगर यथास्थिति असहाय नागरिकों और शासन के प्रावधानों के शोषण का एक उपकरण बन जाती है, तो हम यथास्थिति को चुनौती देने के लिए भी तैयार हैं।”
रक्षा मंत्री ने कहा कि आर्थिक सुरक्षा के व्यापक मुद्दे पर, सरकार ने भूमि, श्रम, पूंजी और उद्योग के क्षेत्र में विकास के सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है। रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार और एनडीसी के कमांडेंट, एयर मार्शल डी. चौधरी ने भी इस वेबिनार में भाग लिया।