किसान को फसलों की सुरक्षा के लिए समसामयिक सलाह
किसानों को कीट एवं बीमारियों रोकथाम नियंत्रण की दी गई जानकारीे
रायपुर, राज्य में खरीफ मौसम खरीफ फसलों की सुरक्षा और कीट-व्याधियों की रोकथाम हेतु कृषि विभाग द्वारा किसान भाईयों को आवश्यक सलाह दी गई है। कृषि विभाग ने कहा है कि चालू खरीफ मौसम में पर्याप्त वर्षा होने के कारण धान की फसल अच्छी पैदावार होने की संभावना है। विगत दिनों से राज्य के कुछ जिलों में असामयिक वर्षा एवं आर्द्र मौसम होने के कारण कीट एवं बीमारियों के प्रकोप की शिकायत मिल रही है। वर्तमान मौसम की स्थिति को देखते हुए किसानों को विभिन्न कीट एवं बीमारियों के नियंत्रण हेतु निम्नानुसार उपाय अपनाने की समझाईश दी गई है।
कृषि विभाग ने पेनीकल माईट सूक्ष्म जीव से फसलों की रक्षा के संबंध में जानकारी देते हुए कहा है कि इसके प्रकोप के कारण पौधे में दाना एवं बालिया बदरंग हो जाती है। दानों में दूध नहीं भरने के कारण बालियां पोचा पड़ जाता है। दाने बदरंग हो जाते है और भूरा धब्बा जैसे दिखाई पड़ते है। ये जीव बालियों के रस को चूस लेती है ये सामान्य आखों से दिखाई नहीं देता ये बहुत अधिक संख्या में पौधों के शीथ के नीचे छिपे होते है। इसके नियंत्रण के लिए प्रोपर जाईट 57 प्रतिशत की 25 मि.ली प्रति स्प्रेयर की दर से एवं इथियोन 50 प्रतिशत तथा सायपर मेथ्रिन 30 प्रतिशत की दर से एवं प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत की 30 मि.ली. प्रति स्प्रेयर की दर से छिड़काव सुबह या शाम में करने की सलाह दी गई है।
इसी तरह धान फसल में भूरा माहो रोग की समस्या देखने को मिल रही है। भूरा माहो धान की बहुत ही नुकसान दायक कीट है, जो धान के तने से रस चूस कर बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाता है। वातावरण में उसम होने के कारण भूरा माहो का प्रकोप बढ़ जाता है। मध्यम से लंबी अवधि में पकने वाली किस्मों में अधिक नुकसान पहुंचाती है। भूरा माहो के प्रकोप वाले पौधें गोल घेरे में पीली या भूरे रंग के दिखाई देनी लगती है व सूख जाती हैं यह कीट पानी के सतह के ऊपर पौधें से चिपककर रस चूसता है। भूरा माहो के नियंत्रण के लिए किसान को नीम का तेल 2500 पी.पी.एम. वाला 1 लीटर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए या इमिडाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल. 25 मि.ली. प्रति एकड़ या डायनोटेफ्यूरोन 20 प्रतिशत एस.जी. 60 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव फसल एवं मेड़ पर करने की सलाह दी गई है।
कृषि विभाग ने कहा है कि शीथ ब्लाइट एक फफूंद जनित रोग है। यह फसल के सही प्रबंधन नहीं होने के कारण होता हैं। जिस खेत में अधिक दिनों तक लगातार पानी जमा रहने से, नमी युक्त मौसम व मेड़ों पर उगे घास से धान में फैलती है। धीरे-धीरे बीमारी पूरे फसल में फैल जाती है। इस रोग से ग्रसित धान फसल की बालियां काली पड़ती है। शीथ ब्लाइट का प्रकोप सबसे पहले धान के तने में होता है। तने में काले धब्बे पड़ जाते है। इसके नियंत्रण के लिए किसान खेत में जमे अतिरिक्त पानी का निकासी करें, तुरंत फफूंद नाशक दवाईयां जैसे कार्बेन्डाजिम का छिड़काव 500 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
इसी तरह बैक्टिरियल लीफ ब्लाइट रोग धान में व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है। इस रोग में धान फसल के पत्ते पीले या पैरा के रंग के एवं एक या दोनों किनारों से ऊपर या नीचे बढ़ते है और अंत में सूख जाते है। अधिक प्रकोप होने पर पूरा का पूरा पौधा सुख जाता है। इस रोग के लक्षण प्रकट होने पर कृषक कापर आक्सीक्लोराइड का 25-30 मि.ली प्रति स्प्रेेयर की दर से छिड़काव करें या एग्रोमाईसिन 100 ग्राम 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल में 2 से 3 बार आवश्यकतानुसार छिड़काव करने की सलाह दी गई है। किसान भाईयों को फसलों में कीट-व्याधि लगने की सूचना तत्काल अपने इलाके के कृषि विस्तार अधिकारी को देने को कहा गया है। किसानों को अपनी फसलों का निरंतर निरीक्षण करने तथा कीट-व्याधि के प्रकोप की रोकथाम के लिए अनुशंसित मात्रा में ही दवाईयों का उपयोग करने को कहा गया है।