डॉ. हर्षवर्धन ने ‘संडे संवाद’ कार्यक्रम के माध्यम से अपने सोशल मीडिया फॉलोवर्स के साथ बातचीत की
नई दिल्ली : केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज ‘संडे संवाद’ कार्यक्रम के ज़रिये अपने सोशल मीडिया फॉलोवर्स से बातचीत की और उनके प्रश्नों के उत्तर दिए। डॉ. हर्षवर्धन से पूछे गए सवालों में न केवल कोविड की वर्तमान स्थिति के बारे में चर्चा हुई, बल्कि इस सम्बन्ध में सरकार के दृष्टिकोण के बारे में जाना गया। संभावना है कि कोविड के बाद की दुनिया और सरकार द्वारा इस बारे में उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही हो।
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि फ़िलहाल वैक्सीन लॉन्च होने के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई है, फिर भी संभव है कि यह 2021 की पहली तिमाही तक तैयार हो सकती है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार वैक्सीन के मानव पर परीक्षणों के संचालन में पूरी सावधानी बरत रही है। उन्होंने बताया कि डॉ. वीके पॉल, सदस्य (स्वास्थ्य) नीति आयोग की अध्यक्षता में कोविड-19 के लिए वैक्सीन प्रबंधन के लिए गठित राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह बड़ी आबादी पर संक्रमण सीमित करने के लिए एक विस्तृत रणनीति तैयार कर रहा है। उन्होंने कहा कि “टीके की सुरक्षा, लागत, समानता, कोल्ड-चेन आवश्यकता और उत्पादन का समय जैसे प्रमुख मुद्दों पर भी गहन चर्चा की गई है”। स्वास्थ्य मंत्री ने आश्वासन दिया कि टीका सबसे पहले उन लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। इसके लिए टीके की कीमत नहीं देखी जाएगी।
इसके अलावा, उन्होंने कहा कि सरकार विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों और उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के वास्ते कोविड-19 टीकाकरण के लिए आपातकालीन प्राधिकरण बनाने पर विचार कर रही है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि यह एक आम सहमति बनने के बाद किया जाएगा।
टीके के सुरक्षात्मक पहलू के बारे में सभी आशंकाओं को दूर करने के लिए, उन्होंने कहा कि अगर कुछ लोगों में विश्वास की कमी है, तो मैं कोविड का टीका लगवाने के लिए सबसे पहले खुद को प्रस्तुत करूंगा।
वैक्सीन के निर्माताओं और भारत में उनके विकास के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि जैव-प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के साथ-साथ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसी एमआर) भी वैक्सीन निर्माण की प्रगति को लेकर इसके निर्माताओं के साथ काम कर रहा है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि भारत महामारी से बचने की तैयारी में लगे नवाचारों के लिए बने गठबंधन (सीईपीआई) के साथ सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहा है। इसके अलावा टीके का परीक्षण अनेक भारतीय प्रयोगशालाओं (निजी या सार्वजनिक) और अस्पतालों में विभिन्न चरणों में है।
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि एक सुरक्षित और प्रभावी टीका प्राकृतिक संक्रमण की तुलना में बहुत तेज गति से कोविड-19 के ख़िलाफ़ प्रतिरक्षा स्थापित करने में मदद करेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि किसी समुदाय में सुरक्षात्मक सामूहिक प्रतिरक्षा के वांछित स्तर को प्राप्त करने के लिए अगले कुछ महीनों में आम सहमति बन जाएगी।
डॉ. हर्षवर्धन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि किस तरह से कोरोना महामारी भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में देश में अपेक्षित मानकों के साथ व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण-पीपीई का कोई स्वदेशी निर्माता नहीं था, अब अपेक्षित मानकों के साथ पीपीई के लगभग 110 स्वदेशी निर्माता हैं। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि देश न केवल अपनी मांगों को पूरा करने में सक्षम है बल्कि पड़ोसी देशों की मदद के लिए उन्हें निर्यात भी कर रहा है। उन्होंने दोहराया कि डायग्नोस्टिक किट, वेंटिलेटर और रेमेडिसिवर जैसी दवाओं के स्वदेशी विनिर्माण करने के साथ ही विदेशों पर इनकी निर्भरता कम करने के लिए मेक इन इंडिया पहल के तहत इन्हें बढ़ावा दिया गया। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से ही संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि विभिन्न मंत्रालयों की साझेदारी के साथ स्वदेशी निर्माताओं को निर्माण में आगे बढ़ाने तथा बाजार की उपलब्धता सुनिश्चित करने की एक बहुस्तरीय रणनीति अपनाई गई। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि सरकार ने भारत में महत्वपूर्ण एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस-एपीआई के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं और ऐसा करने से इस तरह के एपीआई के आयात पर भारत की निर्भरता में कमी आई है।
आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवा की लागत को उचित और किफायती बनाने के लिए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निजी अस्पतालों में कोविड-19 के उपचार के लिए उचित मूल्य तय करने का निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्र लोगों में कोविड रोगियों के लिए 5 लाख तक की मुफ्त कवरेज की घोषणा की गई है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य प्रदाताओं के साथ जुड़ने और सार्वजनिक तथा निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में पूलिंग पर विचार करने के लिए कहा है, क्योंकि इससे कोविड-19 रोगियों को शीघ्र, अच्छी गुणवत्ता और उचित स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने में मदद मिलेगी। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि निजी अस्पतालों को कोविड मरीजों से अधिक शुल्क वसूलने से बचना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रत्येक नागरिक तक सभी दवाओं और अन्य उपचारों की पहुंच तथा सामर्थ्य सुनिश्चित करने के अनेक उपाय किए गए हैं, भले ही उनकी भुगतान क्षमता कुछ भी हो। उन्होंने कहा कि सरकार ने रेमिडिसिवर जैसी दवाओं की कथित कालाबाजारी की खबरों पर संज्ञान लिया है और केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) को अपने राज्य समकक्षों के साथ इन लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा है।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार संक्रमण की बढ़ती प्रकृति और संक्रमित लोगों में प्रणालीगत स्वास्थ्य जटिलताओं के उभरते लक्षणों की जानकारी हासिल कर रही है। एम्स और अन्य शोध संस्थानों को कोविड के दीर्घकालिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि आईसीएमआर एक राष्ट्रीय क्लीनिकल रजिस्ट्री स्थापित कर रहा है जो कोविड-19 रोग, इसके विस्तार और रोगियों के इलाज के परिणाम के नैदानिक विश्लेषण में जानकारी जुटाएगा। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ समूह उभरते लक्षणों की समीक्षा करने और कोविड के चलते अंग प्रणाली विशेष (श्वसन प्रणाली, वृक्क प्रणाली, हृदय और जठरांत्र-आंत्र) में इसके प्रभाव पर डेटा इकठ्ठा करने का काम कर रहे हैं।
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि “राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) भारत सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है और यह डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत को वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ ऐसे निजी स्वार्थ वाले लोग हैं, जो भारत को सफल नहीं होने देना चाहते हैं और एनडीएचएम के खिलाफ विघटनकारी अभियान चला रहे हैं। उन्होंने आशंकाओं को दूर करते हुए स्पष्ट किया कि यह सरासर झूठ है कि जो लोग इस प्रणाली का हिस्सा नहीं बनेंगे, उन्हें अस्पतालों की सेवाओं से वंचित रखा जायेगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि, “जो व्यक्ति या संस्थाएं जो इस प्रणाली का हिस्सा नहीं होंगे, वे उसी तरह से स्वास्थ्य सेवा का उपयोग कर सकेंगे, जैसे वे अभी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र में भागीदारी पूरी तरह से वैकल्पिक होगी और इसे कभी भी लोगों के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा।