राज्यसभा में हंगामा करने वाले सांसद से छिन सकता है वोटिंग राइट
नई दिल्ली
राज्यसभा में हंगामा करना अब माननीयों को महंगा पड़ सकता है. उच्च सदन की कमेटी ने ऐसी सिफारिशें की हैं जिनके अमल में आने के बाद हंगामा करने वाले सांसदों से विधेयक पर वोटिंग का अधिकार छीना जा सकता है. सदन की जनरल पर्पस कमेटी ने कार्यवाही को सुचारू ढंग से चलाने के लिए 124 नए नियमों का लागू करने के साथ ही 77 नियमों में संशोधन का प्रस्ताव दिया है.
वेल में आने पर छिनेगा वोटिंग राइट
नए नियम अगर लागू होते हैं तो लोकसभा की तरह वेल में आकर हंगामा करने वाले सांसद सदन की कार्यवाही से निलंबित हो सकते हैं साथ ही उन्हें 5 दिन के लिए सदन की कार्यवाही से बाहर रहना पड़ सकता है. अब यह कमेटी नियमों से जुड़ी कमेटी को अपने प्रस्ताव सौंपेगी जिसके बाद इन्हें लागू करने पर विचार किया जाएगा. नए नियमों में हंगामा करने वाले सांसद से वोटिंग अधिकार छीनने और उसे गैरमौजूद की श्रेणी में लागू का प्रस्ताव भी शामिल है.
राज्यसभा में गतिरोध एक बड़ी समस्या है और संख्याबल में लोकसभा के मुकाबले ज्यादा मजबूत विपक्षी सांसद आए दिन उच्च सदन में हंगामा करते दिख जाते हैं. सभापति वेंकैया नायडू के ओर से बीते कई सत्रों में व्यवधान खत्म करने सदन को सुचारू ढंग से चलाने के लिए सांसदों से मदद की अपील की गई है लेकिन CAA जैसे मुद्दों पर उस अपील का असर नहीं दिखा और सदन में जोरदार हंगामा देखने को मिला था.
सदन के नियमों की विस्तृत समीक्षा
सभापति वेंकैया नायडू ने बुधावार को जनरल पर्पज कमेटी की अध्यक्षता की जिसमें 23 दलों के नेता शामिल हुए थे. सभापति की ओर से मई 2018 में ही नियमों की समीक्षा के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था जिसमें राज्यसभा के पूर्व महासचिव विवेक अग्निहोत्री और कानून मंत्रालय के पूर्व एडिशनल सेक्रेटरी दिनेश भारद्वाज शामिल थे.
इस कमेटी ने करीब 51 बैठकों के बाद नए नियमों का प्रस्ताव दिया है. कमेटी की ओर से मौजूदा नियमों की समीक्षा की गई और उनके कार्यान्वयनपर विचार किया गया, तब जाकर कमेटी की ओर से यह सिफारिशें सामने आई हैं. इसके बाद सभापति और उपसभापति हरिवंश ने राजनीतिक दलों के सामने यह सुझाव रखे हैं जिन्हें सभी की सहमति के बाद लागू किया जा सकता है.
राज्यसभा के नियमों को लेकर बीते 5 दशक में यह सबसे बड़ी समीक्षा मानी जा रही है. इससे पहले जनरल पर्पज कमेटी 13 रिपोर्ट दे चुकी है जिनमें से कई सुझावों को लागू भी किया गया है. सभापति सदन में होने वाले गतिरोध को लेकर लगातार चिंतित है क्योंकि इससे उच्च सदन की उत्पादकता पर सीधा असर पड़ता है.