November 24, 2024

मोबाइल टावर के ज्यादा रेडिएशन से विलुप्त हुईं 90 फीसदी मधुमक्खियां

0

अलीगढ़
संचार उपकरणों के बिना आज जीवन जीने की कल्पना करना ही बेमानी सा है, लेकिन इनके बढ़ते उपयोग के साथ ही प्रकृति पर इनके दुष्प्रभाव भी बढ़ रहे हैं। हाल ही में एक शोध में सामने आया कि मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन के कारण क्षेत्र विशेष में 70 से 90 फीसदी तक मधुमक्खियां विलुप्त हो गई हैं।

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में वन्य जीव विभाग की ओर से जनवरी में पूरे किए गए तीन साल तक चले शोध के अनुसार, इनके प्रभाव सिर्फ पशु-पक्षियों पर ही नहीं बल्कि अन्य जीवों पर भी देखने को मिल रहे हैं। ' इलेक्ट्रो मैग्नेटिक विकिरणों का पक्षियों पर असर' विषयक शोध के निष्कर्षों में बताया गया है कि मोबाइल टावर से निकलने वाले इलेक्ट्रो मैग्नेटिक विकिरणों के कारण मधुमक्खियों में कॉलोनी कोलेप्स डिसॉर्डर नामक अवसाद पैदा हो रहा है। इससे उन्हें उड़ने में परेशानी हो रही है। उनका एक साथ चलने का क्रम टूट गया है। वे रास्ता भटकते हुए धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं।

शोध के निर्देशक एवं विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अफीफुल्लाह खान ने बताया कि अलीगढ़ समेत आसपास के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में तीन साल तक यह शोध किया गया। इसमें पाया गया कि विकिरणों से मधुमक्खियों की प्रजनन शक्ति क्षीण हो रही है। उनके घोंसले (छत्ते) बनाने की शक्ति पर असर पड़ रहा है। जहां-जहां रेडिएशन ज्यादा होता है, वहां 70 से 90 फीसदी तक मधुमक्खियां विलुप्त हो गई हैं।

एक शहद मधुमक्खी जीवन चक्र में चार मुख्य विशिष्ट चरण या चरण- अंडा, लार्वा, पिल्ला और अंततः एक वयस्क होता है। सामान्य मधुमक्खी की उम्र 40 से 45 दिन होती है। रानी मक्खी जो छत्ते के अंदर शहद उत्पन्न करती है, उसकी उम्र तीन से पांच वर्ष तक होती है। यह औसतन 2500 से 3000 अंडे प्रतिदिन देती है।

वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, यदि किसी कारणवश धरती से मधुमक्खियों का जीवन समाप्त होता है तो चार वर्ष के भीतर ही मानव जीवन समाप्त हो जाएगा। हालांकि, कई विशेषज्ञ उनके कथन से आज तक सहमत नहीं हैं। एक अन्य शोध रिपोर्ट में जालंधर के डीएवी विश्वविद्यालय के पू‌र्व कुलपति डॉ. आरके कोहली कहते हैं कि मैं मानता हूं कि इन पर बुरा असर पड़ा है, लेकिन मानव जीवन के खत्म होने की बात तो बचकानी लगती है।

रेडिएशन के मानव जीवन और पशु-पक्षियों के जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों पर पूर्व में हुए अध्ययन बताते हैं कि मनुष्यों में रेडिएशन के चलते सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, स्मरण की समस्या, घुटनों का दर्द, हार्मोनल असंतुलन, दिल संबंधी बीमारियां तथा कैंसर की आशंका भी पाई गई।

अमेरिका में रेडिएशन का मधुमक्खियों पर इतना बुरा असर पड़ा कि वे विलुप्त होने की कगार पर आ गईं, जिससे वहां का फसल चक्र बिगड़ गया और किसानों को भारी नुकसान हुआ। बाद में चीन और ऑस्ट्रेलिया से बहुत बड़े पैमाने पर मधुमक्खियों को आयात किया गया।

मधुमक्खी पालन से फसलों में भी परागण की क्रिया तेज होती है जिससे उद्यानिकी व वानिकी फसलों की उपज 25 प्रतिशत तक बढ़ती है। एक अन्य एनजीओ की रिपोर्ट बताती हैं कि मधुमक्खियों पर रेडिएशन के असर से केरल, बिहार, पंजाब में फसलों को भारी नुकसान देखने को मिला है। इसके बाद से ही सरकार ने कृत्रिम मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना शुरू किया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *