जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं …यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
दिल्ली
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं …यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर। गार्गी कॉलेज में बहन – बेटियों के साथ हैवानों की करतूत को शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। बाउंसर कम थे। सिक्यॉरिटी गार्ड्स ने कुछ नहीं किया। पुलिस नदारद थी। लाजिम है ये दलीलें दी जाएंगे। ठीक है कि अगर ये इंतज़ाम होते तो स्कूल की दहलीज पार कर कुछ और आजाद हवा में तैरने के प्यारे ख्वाबों को सदमा न लगता। वो फर्स्ट ईयर की लड़कियां विद्या के मंदिर में बदहवास नहीं मिलतीं।
तो क्या हम अपनी बहनों को, बेटियों को सुरक्षा कवच में रखें? दरअसल यह प्रश्न नहीं, स्वीकारोक्ति है। हम मान कर चलें कि पौरुष का निकृष्टतम स्वरूप स्वाभाविक तौर पर कहीं भी परिलक्षित हो सकता है। चाहे वो गार्गी कॉलेज ही क्यों न हो ? गिद्धों की तरह लड़कियों पर टूट पड़ने वाली मानसिकता सुरक्षाकर्मी के रहते भी मरेगी नहीं। जहां सिक्यॉरिटी नहीं होगी, वहां तांडव होगा। न जाने कितनी निर्भया चीख-चीख कर दर्द की इंतहा की कहानी बयां कर चुकी हैं। पर, सुन्न पड़े कानों में हलचल नहीं होती।
निर्भया दिल्ली की हो या हैदराबाद की, कुछ दिनों तक मन मस्तिष्क में झंझावात पैदा करती है। एक ब्रेक सा लगता है। शायद कुकर्मों की इंतहा सिर्फ अंतराल पैदा करती है। गार्गी की सिसकती आँखों को ही लीजिए। ये कितनों की आँखें सुलगाती हैं? शायद हमारे – आपके मन को कचोटता हो कि आखिर ऐसा होना बंद कब होगा? इसका जवाब कौन देगाा? ये हमारे – आपके घरों से निकले लड़के ही तो हैं!
हमारी – आपकी सोच से सुरक्षाकर्मी नहीं लड़ पाएंगे
गार्गी कॉलेज के कैंपस में 6 फरवरी की शाम दानवों का भौंडा प्रदर्शन आधे घंटे ही चला लेकिन उसका शिकार हुईं लड़कियों के मानस पटल पर वो सदैव के लिए अंकित हो गया। अगर वो आज से हर अनजान पुरुष में दानव देखना शुरू कर दे तो उसकी क्या गलती? याद रखिए, इस सोच से सुरक्षाकर्मी नहीं लड़ पाएगा। अगर ऐसी घटना सिर्फ सिहरन पैदा करती है तो कसर है। गुस्सा आना ज़रूरी है।
हम इसका इंतजार न करें कि पीड़िता की नज़र में सारे पुरुष गुनहगार बन जाएं। अपने भाई, पिता, चाचा से उसका भरोसा टूट जाए, इसलिए गुस्सा आना चाहिए। हमें खुद ऐसे दानवों को रोकना होगा। आज सुबह एफएम पर नावेद को सुन रहा था। वो ठीक कह रहे थे उनके लिए जो कहते हैं लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सीखना चाहिए। गार्गी की वो बच्चियां शरीफ घरों से हैं। उन्हें हाथ चलाना नहीं आता। तो क्या हम उन दानवों को नहीं रोक सकते?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में सालाना फेस्ट की परंपरा काफी पुरानी है। गर्ल्स कॉलेज है या को-एड इसका फर्क नहीं होता। हर कॉलेज के स्टूडेंट दूसरे कॉलेज जाते रहे हैं। लेडी श्रीराम कॉलेज के तरंग, मिरांडा हाउस के टेम्पेस्ट, गार्गी के रीवियर, दौलत राम कॉलेज के फेस्ट मंजरी में लड़कों का हुजूम दिख जाएगा जबकि ये सारे कॉलेज लड़कियों के हैं। पर, कभी भी गार्गी कॉलेज जैसा घिनौना मंजर नहीं दिखा। खुद वहां की लड़कियां भी नहीं मानतीं कि ये स्टूडेंट थे लेकिन थे तो लड़के ही। इसलिए मत कहिए बॉयज विल बी बॉयज।