गणतंत्र दिवस से जुड़े दिलचस्प फैक्ट, आप जानते हैं कहां हुई थी पहली 26 जनवरी की परेड
इस साल भारत अपना 71 वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। इस मौके पर दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। इस परेड का हिस्सा बनने के लिए सारे राज्यों में कई दिनों पहले तैयारियां शुरु हो जाती हैं। गणतंत्र दिवस समारोहों के 71 वर्षों के सफर में ऐसी अनेक घटनाएं हुईं हैं जो सुनहरी यादें बनकर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं। गणतंत्र दिवस परेड से जुड़े ऐसी ही कुछ रोचक किस्से आज हम आपको बता रहे हैं, जिसके बारे में आप अभी तक बेखबर थे।
लालकिले पर नहीं हुई थी पहली परेड
आप शायद नहीं जानते होंगें कि 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस राजपथ पर नहीं बल्कि इर्विन स्टेडियम यानी मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में मनाया गया था। तब इसकी चारदीवारी नहीं बनी थी और पृष्ठभूमि में पुराना किला नजर आता था। यही नहीं पहला गणतंत्र दिवस समारोह सवेरे नहीं बल्कि दोपहर को मनाया गया था।
पहली बार दी गई थी 31 तोपों की सलामी
देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन से छह घोड़ों वाली बग्गी में बैठकर दोपहर ढाई बजे समारोह स्थल के लिए रवाना हुए। कनॉट प्लेस के आस-पास से होती हुए उनकी सवारी पौने चार बजे सलामी मंच तक पहुंची थी। यहां उन्हें 31 तोपों से सलामी दी गई और यह परंपरा 70 के दशक तक चली। बाद में 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा रखी गई और यह अभी तक जारी है।
21 तोपों की सलामी
21 तोपों की सलामी वास्तव में भारतीय सेना की 7 तोपों द्वारा दी जाती है, जिन्हें पौन्डर्स कहा जाता है। प्रत्येक तोप से तीन राउंड फायरिंग होती है। ये तोपें 1941 में बनी थीं और सेना के सभी औपचारिक कार्यक्रमों में इन्हें शामिल करने की परंपरा है।
1951 से शुरू हुई सुबह के समय परेड
1951 से किंग्सवे यानी राजपथ पर समारोह होने लगे, ताकि अधिक संख्या में लोग समारोह देख सकें। पुराने दस्तावेजों के मुताबिक उस वर्ष सुबह के वक्त परेड हुई तथा अदम्य साहस के लिए सेना के चार रणबांकुरों को सर्वोच्च अलंकरण परमवीर चक्र से नवाजा गया।
1952 में शुरु हुई थी बीटिंग रिट्रीट
वर्ष 1952 से बीटिंग रिट्रीट की परंपरा भी शुरू हुई। जिसमें पहला समारोह रीगल सिनेमाघर के सामने मैदान में तथा दूसरा लालकिले में संपन्न हुआ। सेना ने पहली बार महात्मा गांधी के पसंदीदा गीत ‘अबाइड विद द मी' प्रस्तुत किया और तब से आज तक यह धुन हर बार बजाई जाती है।
पाकिस्तान के गर्वनर बन चुके है मुख्य अतिथि
गणतंत्र दिवस समारोह में हर साल किसी न किसी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या शासक को विशेष अतिथि के तौर पर सरकार द्वारा आमंत्रित किया जाता है। 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो विशेष अतिथि बने थे। इसके अलावा 1955 में राजपथ पर आयोजित पहले गणतंत्र दिवस समारोह में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद विशेष अतिथि बने थे।
गहनता से होती है सुरक्षाकर्मियों की जांच
परेड में शामिल होने वाले प्रत्येक जवान को चार स्तर की सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। उनके हथियारों की भी कई चरणों में गहन जांच होती है। जांच का मुख्य उद्देश्य ये सुनिश्चित करना होता है कि किसी जवान के हथियार में कोई जिंदा कारतूस न हो। इससे बहुत बड़ी अनहोनी हो सकती है।
5 किमी की रफ्तार से चलती है झांकियां
परेड में शामिल सभी झांकियां 5 किमी प्रति घंटा की नीयत रफ्तार से चलती हैं, ताकि उनके बीच उचित दूरी बनी रहे और लोग आसानी से उन्हें देख सकें। इन झांकियों के चालक एक छोटी से खिड़की से ही आगे का रास्ता देखते हैं, क्योंकि सामने का लगभग पूरा शीशा सजावट से ढका रहता है।
दिग्गज कलाकारों ने लिया था हिस्सा
1963 के गणतंत्र दिवस समारोह में दिलीप कुमार, तलत महमूद और लता मंगेशकर ने विशेष कार्यक्रम पेशकर प्रधानमंत्री कोष के लिए धन एकत्र किया।
भूकंप की वजह से रद्द करनी पड़ गई थी बीटिंग रिट्रीट
26 जनवरी 2001 को गुजरात व देश के अन्य हिस्सों में भूकंप के कारण भयानक रूप से हुई जान-माल की हानि के कारण बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। 13 जनवरी 2001 को संसद पर हमले के बाद ‘ऑपरेशन पराक्रम' के कारण परेड में सेना की भागीदारी कम कर दी गई।
फ्लाई पास्ट
राजपथ पर मार्च पास्ट खत्म होने का बाद परेड का सबसे रोचक हिस्सा शुरू होता है, जिसे ‘फ्लाई पास्ट' कहते हैं। इसकी जिम्मेदारी वायु सेना की पश्चिमी कमान के पास होती है। ‘फ्लाई पास्ट' में 41 फाइटर प्लेन और हेलिकॉप्टर शामिल होते हैं, जो वायुसेना के अलग-अलग केंद्रों से उड़ान भरते हैं। इनका तालमेल इतना सटीक होता है कि ये तय समय और क्रम में ही राजपथ पर पहुंचते हैं। आकाश में इनकी कलाबाजी और रंग-बिरेंगे धुएं से बनाई गई आकृतियां लोगों का मन मोह लेती हैं