स्वामी विवेकानंद जयंती: युवा महोत्सव पर विशेष युवा महोत्सव में दिखेगी छत्तीसगढ़ी संस्कृति की इंद्रधनुषी छटा
रायपुर ,युवा शक्ति और राष्ट्रभक्ति के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती पर राजधानी रायपुर आयोजित किया जा रहा ‘युवा महोत्सव’ छत्तीसगढ़ के युवाओं की प्रतिभा, कौशल, ऊर्जा और उत्साह का अदभुत संगम होगा। महोत्सव में युवा शक्ति की रचनात्मक प्रतिभा देखने को मिलेगी। युवा इस महोत्सव के जरिए जहां अपनी संस्कृति से जुड़ेगे वहीं आपने पारंपरिक खेलों और विभिन्न विधाओं में जौहर भी दिखाएंगे। लोक संस्कृति और परम्परा की गहराईयों को आत्मसात कर पाएंगे। विविध संस्कृति वाले इस राज्य में महोत्सव के दौरान मिनी भारत की छटा लोगों को देखने को मिलेगी। साथ ही यहां छत्तीसगढ़ी कर्मा, नाचा, ददरिया, गम्मत, पंथी, राउत नाचा रहेंगे मुख्य आकर्षण।
स्वामी विवेकानंद की स्मृति हर युवा के मन में रहे और उनके आदर्शों से युवाओं को परिचित कराने के साथ ही उन्हें सांस्कृतिक सरोकारों से जोड़ने के लिए साईंस कालेज मैदान में 12 से 14 जनवरी तक आयोजित किए जा रहे युवा महोत्सव में छत्तीसगढ़ की माटी की महक लिए लोक नृत्यों और शास्त्रीय नृत्यों, लोक गीत -संगीत और शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी जाएगी। छत्तीसगढ के पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ बांसुरी, वीणा और सितार, मृदंगम और तबले, गिटार और हार्मोनियम की स्वर लहरियों के संगम ंसे एक मनमोहक समंा बनेगा। युवाओं के लिए अपनी गौरवशाली संस्कृति से जुड़ने का यह अनूठा अवसर होगा।
इस आयोजन में भौंरा, कबड्डी, खोखो, फुगड़ी गेड़ी दौड, जैसे ग्रामीण अंचल के भुलाए जा रहे खेलों को नया जीवन मिलेगा। युवा उत्सव में 7 हजार से अधिक कलाकार इस आयोजन में शामिल होंगे। जिलों से आने वाले कलाकार अपने जिले की सांस्कृतिक विशेषताओं के अनुरूप विभिन्न लोक संस्कृतियों की झांकी प्रस्तुत करेंगे। वहीं परम्परागत खेलों में भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर युवाओं को मिलेगा। तीन दिनांें तक चलने वाले इस आयोजन में शिल्पग्राम और राज्य के विकास झांकी भी दिखेगी। यहां राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का स्वाद भी मिलेगा।
छत्तीसगढ़ विविध संस्कृतियों का संगम स्थल है। यहां न केवल छत्तीसगढ़ी संस्कृति बल्कि मिनी भारत के दर्शन होते हैं। यहां सभी धर्मों के त्योहार आपसी भाईचारे के साथ मनाए जाते हैं। चाहे गुजरात का डांडिया हो या राजस्थान का घूमर नृत्य या उत्तर प्रदेश का कत्थक हो या ओडिशा का ओड़सी, मणिपुर का मणिपुरी, आंध्र्रप्रदेश का कुचिपुड़ी, सभी नृत्य यहां के युवाओं में लोकप्रिय हैं। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ में महाराज चक्रधर सिंह के कत्थक के रायगढ़ घराने की प्रस्तुति का एक अलग आकर्षण रहेगा। नई सरकार ने स्वामी विवेकानंद की स्मृति को चिर स्थाई बनाने के लिए भूतनाथ डे भवन को उनके स्मारक के रूप में विकसित करने की पहल की है। इस पहल की चहुंओर सराहना हो रही है। राजधानी रायपुर के एयरपोर्ट का नामकरण स्वामी विवेकानंद के नाम पर किया गया है। राजधानी के ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब को विवेकानंद सरोवर के नाम से जाना जाता है। उनके नाम पर तकनीकी विश्व विद्यालय का नामकरण भी किया गया है।
स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं में आत्मविश्वास जगाने के लिए कहा था कि उठो जागो और तब तक प्रयत्न करो, जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए। उन्होंने युवाओं से कहा था, अपने आप को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है। युवा ही समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं। उन्हें समाज में अपनी महती भूमिका के लिए संस्कृति और सम्यता से हमेशा जुडा रहना होगा। उन्होंने शिकागो में आयोजित धर्म संसद में भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्म की पताका फहराई थी और पूरे विश्व को नतमस्तक कर दिया था। उनके इस प्रेरणादायी कार्य से पूरे विश्व में भारतीयों का मस्तक उंचा हुआ।
यह हम सबके लिए सौभाग्य की बात है कि स्वामी विवेकानंद ने बंगाल से बाहर सबसे ज्यादा समय छत्तीसगढ़ में बिताया है। वे किशोरावस्था में सन 1877 में जबलपुर से बैलगाड़ी में बैठकर रायपुर पहुंचे थे। उन्हें इस यात्रा के दौरान ही पहली आध्यात्मिक अनुभूति हुई, ऐसी मान्यता है। उन्होंने अपने जीवन के 2 वर्ष यहां बिताया। कहा जाता है कि किशोर नरेन्द्र नाथ रायपुर के बूढातालाब में स्नान करने आते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में ही घर में रहकर हुई । उनके पिता उन्हें स्वंय पढाया करते थे। उनके घर में बौद्धिक और आध्यत्मिक चर्चा होती थी। इसका प्रभाव उन पर पड़ा। अनेक विद्वान स्वामी विवेकानंद का आध्यात्मिक जन्म स्थान रायपुर को मानते हैं। उनके व्यक्तित्व विकास में रायपुर पड़ाव का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आध्यत्म का वह पौधा जो रायपुर में रोपा गया था, उसने वटवुक्ष बनकर पश्चिम को छांव दी। यहां उनका परिचय हिन्दी और छत्तीसगढ़ी से हुआ। बूढ़ातालाब के बीच स्थित टापू पर ध्यान मुद्रा में स्थापित उनकी विशाल प्रतिमा इसकी परिचायक है।
इस उत्सव में फरा, चीला, ठेठरी, खुर्मी, अइरसा जैसे अनेक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का दिलकश स्वाद और सौध्ंाी खुशबू महोत्सव को नया रंग भरेगी। अनेक राज्यों की पारंपरिक वेशभूषा में सजे धजे युवा आकर्षण का केन्द्र रहेंगे। राज्य के उत्तर और दक्षिण अंचल में जनजातीय नृत्य और वहां के पहनावे और बोली भाषा की एक अलग ही विशेषता है। इन अंचलों में गोड़ी, हल्बी, भतरी, दोरली, सरगुजिहा बोली जाती है। वहीं महिलाओें के गहने और गोदना सौंदर्य का प्रतीक है। पारंपरिक वेशभूषा और तीर कमान लिए पुरूष की अलग ही छवि बनती है। उत्तर अंचल छांेटा नागपुर के पठार से जुड़ा है यहां पण्डों, पहाड़ी कोरवा और उरांव जनजाति निवास करती है। इस अचंल में हिन्दी छत्तीसगढ़ी के साथ सादरी भाषा बोली जाती है। यहां के निवासियों के रीति रिवाज और परम्पराएं लोगों को आकर्षित करती है। यहां लोग कर्मा नृत्य फसल कटाई के बाद बड़े ही उत्साह से करते है। युवा महोत्सव में छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों की सतरंगी संस्कृति युवाओं के जोश, प्रतिभा और कौशल से जीवंत हो उठेगी।