1940 में आई चार्ली चैपलिन की इस फिल्म से प्रभावित था कॉमेडियन असरानी का ये सीन
नई दिल्ली
बॉलीवुड के कॉमिक कैरेक्टर एक्टर असरानी को एक दौर में दर्शकों के बीच काफी लोकप्रियता हासिल थी. साल 1975 में आई फिल्म शोले को उनके करियर की अहम फिल्मों में शुमार किया जाता है. अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र स्टारर ये फिल्म बॉलीवुड की क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है. इस फिल्म में ना केवल उस दौर के टॉप सितारे नजर आए थे बल्कि स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स के मामले में भी ये फिल्म यादगार मानी जाती है. फिल्म के कई डायलॉग्स हैं जो आज भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं.
ऐसा ही एक डायलॉग एक्टर असरानी का भी है जो इस फिल्म में एक फनी जेलर की भूमिका में दिखे थे. असरानी का एक डायलॉग 'हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं' काफी लोकप्रिय हुआ था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म में असरानी का एक सीन साल 1940 में आई फिल्म 'द ग्रेट डिक्टेटर' से प्रभावित था?
दरअसल फिल्म 'द ग्रेट डिक्टेटर' में महान एक्टर चार्ली चैपलिन ने जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की भूमिका निभाई थी. ये चार्ली की पहली बोलती फिल्म थी. इस फिल्म से पहले उन्होंने कई फनी साइलेंट फिल्मों में काम किया. द ग्रेट डिक्टेटर में एक सीन है जब हिटलर की भूमिका में चार्ली एक ग्लोब के साथ खेलते हुए दिखते हैं. बैलून के इस ग्लोब के साथ हिटलर बच्चों की तरह खेलता है और जब वो इस ग्लोब को जोर से पकड़ता है तो ये फट जाता है जिसके बाद हिटलर मायूस हो जाता है.
चार्ली चैपलिन की फिल्म से इंस्पायर था असरानी का ये सीन
इस फिल्म के बाद 35 सालों बाद आई फिल्म शोले में भी एक सीन चार्ली चैपलिन के ग्लोब सीन से प्रभावित है. इस सीन में असरानी ग्लोब के साथ दिखते हैं और वो एक ग्लोब के साथ टाइम पास कर रहे होते हैं. असरानी इस सीन में ग्लोब को घुमाते हैं वहीं उनका कॉन्स्टेबल आकर उनसे कहता है कि जेल में सुरंग बन रही है. असरानी उसकी ये बात सुनकर चौंकते हैं और लड़खड़ा जाते हैं और उनसे ग्लोब छूट जाता है. ये सीन असरानी के फनी मोमेंट्स में शुमार किया जाता है.
गौरतलब है कि फिल्म में असरानी का लुक भी चार्ली चैपलीन से काफी मिलता जुलता था. अमिताभ और धर्मेंद्र की फिल्म शोले मेनस्ट्रीम थी लेकिन चार्ली चैपलिन की फिल्म सबसे साहसी फिल्मों में शुमार की जाती है. इस फिल्म की काफी तारीफ हुई थी क्योंकि इस फिल्म के सहारे चार्ली ने ना केवल हिटलर पर व्यंग्य कसा था बल्कि फिल्म के अंत में एक बेहद गंभीर मैसेज भी दिया था. उस दौर में हिटलर को ताकतवर तानाशाह के रुप में शुमार किया जाता था, इसके बावजूद वे इस फिल्म को रिलीज कराने में कामयाब रहे थे.