बेकसूर डॉ को अंततः 14 साल बाद मिली हाई कोर्ट से न्याय
दुर्ग
जिला चिकित्सालय दुर्ग में 2005 में पदस्थ प्रथम श्रेणी चिकित्सक एवं पैथोलॉजी विशेषज्ञ डॉक्टर आरके दामले को अंततः 14 वर्षों के बाद हाई कोर्ट बिलासपुर से न्याय मिल गया है। उन्हें 300 रू रिश्वत लेने के मामूली केस में षड्यंत्र पूर्वक फसाया गया था। हाईकोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल ने उन्हें इस आरोप से मुक्त करते हुए फैसला सुनाया है और दुर्ग जिला न्यायालय के फैसले को अमान्य करते हुए समस्त आरोपों से मुक्त कर दिया है।
डॉ दामले के अधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने मामले की पैरवी की और उन्होंने बताया कि घटना दिनांक 10 फरवरी2005 को डॉ दामले जब जिला चिकित्सालय में ड्यूटी कर रहे थे तभी अमर सिंह धृत लहरें नामक युवक उसके कक्ष में आया और बिना कोई बातचीत के डॉक्टर के एपरान की जेब में जोर जबरदस्ती करके 300 रू डाल दिया इसी बीच ट्रैपिंग टीम वहां पहुंची और रिश्वत लेने के आरोप में डॉ दामले को गिरफ्तार कर लिया। जबकि उनके ऊपर आरोप था की 7 फरवरी2005 को उन्होंने मरीज वैशाखी भाई से माइनर ऑपरेशन के लिए 300 रू की मांग की थी। दोनों तिथि में अंतर के कारण स्पष्ट लग रहा था कि उन्हें किसी साजिश के तहत फंसाया गया है। मामला जिला न्यायालय दुर्ग में चला जहां न्यायाधीश सत्येंद्र कुमार साहू की अदालत ने उसे रिश्वत लेने का दोषी करार दिया था इस फैसले के खिलाफ डॉ दामले ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट बिलासपुर का दरवाजा खटखटाया जहां उन्हें न्यायालय ने सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। सरकारी वकील आलोक निगम ने सरकार की ओर से मामले की पैरवी की किंतु वे डॉ दामले को मामले की दोषी करार देने के लिए न्यायालय में कोई मजबूत साक्ष्य नहीं रख पाए।
देर से हुई न्याय की जीत
उच्च न्यायालय द्वारा निर्दोष साबित किए गए डॉ दामले का कहना है कि देर से भले अंततः न्याय की जीत हुई। इस बीच उन्होंने पिछले 14 साल में जो दंश झेला है और षड्यंत्र पूर्वक की गई टाइपिंग के बाद जीवन की जो परेशानियां सामने आई है उसकी भरपाई तो नहीं हो पाएगी किंतु आज निर्दोष साबित होने के बाद वह समाज के सामने गर्व से सीना तान कर खड़े रहेंगे। उन्होंने यह भी संदेश दिया की ट्रिपिंग के मामले में षड्यंत्र रचने वालों के खिलाफ भी कोई ना कोई एक्शन सरकार को लेना चाहिए ताकि इस तरह के मिथ्या षड्यंत्र से निजात मिल सके।