सब कुछ है फिर भी दुखी हैं – गौरव कृष्ण
रायपुर।
सब कुछ है फिर भी दुखी है इंसान, आनंद व शांति की तलाश में वह भटकता फिर रहा है। आनंद सांसारिक वस्तुओं में नहीं हैं और जहां हैं वहां तक वह पहुंच ही नहीं पा रहा है। आनंद और शांति तो बांकेबिहारी के चरणों में है, इसे यदि अनुभव करना है तो गोकुलवासी बनना होगा। जहां आनंद की पराकाष्ठा है। सुख बटोरने से बढ़ता है और आनंद बांटने से और यही न समझने वाले आज दुखी हैं। मनुष्य का मन ही दुख व परेशानियों का कारण है।
कमल विहार माहेश्वरी भवन में श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग के दौरान कथावाचक गौरव कृष्ण ने श्रद्धालुओं ने कहा कि आंनद संसार में या वस्तुओं में छुपा हुआ नहीं है मनुष्य जिसकी खोज कर रहा है वह तो मनुष्य के अंदर ही विद्यमान है अंतर केवल इतना है कि वह वहां तक पहुंच ही नहीं पा रहा। किसी को यदि कुछ प्राप्त करना होता है तो विघ्न बाधाएं आती हैं जो उन बांधाओं को पार कर लेते हैं वे आनंद प्राप्त कर लेते हैं। यदि कुछ समय का सुख चाहिये तो थोड़ी देर सो जाईये एक दिन का सुख चाहिये तो परिवार बच्चों के साथ बाहर घूम आईये, महिनों का चाहिये तो शादी कर लें। लेकिन ये आनंद स्थायी रूप से जीवन में रहने वाला नहीं है। यदि जीवन में परम शांति और आनंद चाहिये तो बांके बिहारी के चरणों का उनके भजन कीर्तन और उनकी कथाओं का आश्रय लेना चाहिये। जीवन में यही आनंद स्थायी होगा और फिर कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं होगी। सुख बटोरने से सुख बढ़ता है और आनंद बांटने से बढ़ता है। सुख स्थायी कभी नहीं हो सकता लेकिन जीवन में यदि आंनद आ गया तो वह स्थायी रहेगा ही।
उन्होंने कहा कि संसार में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो दुखी न हो-परेशान न हो जीवन में दुख और परेशानियां तो आयेगी ही ऐसे समय में केवल भगवान का ही आश्रय उसे इन दुखों और परेशानियों से निकाल सकता है। जिनके पास सब कुछ है वह भी दुखी है और जिसके पास कुछ नहीं वह भी पाने के लिये दुखी है। मनुष्य का मन ही दुख व परेशानियों का कारण है। जिसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया-संतुष्ट कर लिया तो वह हर परिस्थिति में आनंद में ही रहता है। चाहे जैसी भी स्थिति हो प्रसन्न रहना चाहिये। उन्होंने कहा कि नंद और यशोदा नाम के शब्दों की व्याख्या करते हुए श्रद्धालुओं को बताया कि यशोदा का अर्थ है दूसरों को यश देना जो दूसरों को यश देता है उसको यश प्राप्त होता ही है। आज परिवार की समाज की यह दशा है कि वे स्वंय का यश तो चाहते हैं लेकिन दूसरों को यश देना नहीं चाहते। आज परिवार में टकराव व टूटन इसलिये आ रही है कि यश सभी चाह रहे लेकिन देना कोई नहीं चाहता। छोटा हो या बड़ा सबका सम्मान-आदर करना चाहिये। सम्मान करने से सम्मान मिलता है और यदि सम्मान करना नहीं आया तो जीवन में कब अपमानित होना पड़ जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता। नंद का अर्थ है जो दूसरों को आनंद दे। आनंद बांटने से आनंद बढ़ता है। नंद बाबा दूसरों को आनंद बांट रहे हैं और उनका स्वंय का आनंद बढ़ते जा रहा है।
उन्होंने कहा कि भगवान को कपट कदापि पसंद नहीं है लेकिन भगवान किसी को मारते नहीं है भले ही सामने वाले उनका कितना ही अपमान क्यों न किया हो वे अपने भक्तों को तारते हैं। यहां तक कि जहर देने वाले को भी तार देते हैं। जो सच्चे भक्त और साधक होते हैं वे हर पल भगवान की कृपा का दर्शन करते हैं वे जानते हैं कि उन्हें जो प्राप्त हुआ या नहीं हुआ वह भगवान की कृपा ही है। जीवन में कभी संकट आ भी जाये तो उसमें भी भगवान की कृपा छुपी होगी कोई बड़ा संकट आने वाला होगा जिससे भगवान हमें बचा रहे हैं। भगवान को यदि पाना है तो सबसे सरल रास्ता भक्ति मार्ग है और इस कलयुग में इस मार्ग के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। भगवान भक्ति से जल्दी रिझ जाते हैं और अपने भक्त पर कृपा करने-दर्शन देने उतावले रहते हैं।