November 23, 2024

शांति से धरना-प्रदर्शन मौलिक अधिकार पर सरकार लगा सकती है वाजिब रोक, समझिए कानूनी बात

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नई दिल्ली

धरना-प्रदर्शन करना संवैधानिक अधिकार है। विचारों की अभिव्यक्ति के तहत देश के हर नागरिक को यह अधिकार मिला है। कानून के दायरे में शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन की इजाजत है लेकिन वाजिब रोक का भी प्रावधान है। कानूनी जानकार बताते हैं कि कानून के दायरे में शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का अधिकार लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार है लेकिन इससे दूसरे का अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिए। धरना-प्रदर्शन की आड़ में हिंसा की इजाजत नहीं है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर दिए फैसलों में कहा है कि लोकतांत्रिक देश में आवाज उठाने का अधिकार बेहद अहम है लेकिन जरूरत पड़ने पर सरकार इसमें वाजिब रोक भी लगा सकती है। संविधान के अनुच्छेद-14 से 32 के बीच मूल अधिकारों का प्रावधान किया गया है। इसके तहत समानता का अधिकार दिया गया है यानी कानून के सामने सबको बराबर माना गया है। लिंग, जाति, धर्म या फिर क्षेत्र के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किए जाने का प्रावधान है। साथ ही 'राइट टु फ्रीडम' का अधिकार मिला हुआ है। इसमें विचार अभिव्यक्ति के अधिकार शामिल हैं। इसके तहत कोई भी शख्स कानून के दायरे में धरना, प्रदर्शन या फिर भाषण आदि दे सकता है। अनुच्छेद-19 के तहत हर नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति का अधिकार मिला हुआ है।

प्रतिबंध की भी बात करता है संविधान
ऐडवोकेट करण सिंह बताते हैं कि धरना-प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार के तहत निहित है लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है। यानी जैसे ही दूसरे के अधिकार प्रभावित होने लगे, आपका अधिकार सीमित हो जाता है। कानून के दायरे में धरना-प्रदर्शन हो सकता है लेकिन इस दौरान कोई कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता। मसलन, अगर कोई रास्ता रोकता है तो दूसरे का अधिकार प्रभावित होता है।
 
अगर कोई आगजनी या हिंसा करता है तो यह गैरकानूनी है। ऐसे शख्स पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। धरना-प्रदर्शन मौलिक अधिकार है लेकिन सरकार वाजिब रोक लगा सकती है। अगर कोई शख्स सोशल मीडिया या किसी और तरह से अफवाह फैलाता है, दो समुदाय में नफरत पैदा करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-153 और 153-ए के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है।
 
दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस एस. एन. ढींगड़ा बताते हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में धरना-प्रदर्शन का अधिकार विचार अभिव्यक्ति के अधिकार में निहित है। अनुच्छेद-19 (1) के तहत विचार अभिव्यक्ति का अधिकार है। इसके तहत कोई भी नागरिक अपनी आवाज उठाने के लिए धरना-प्रदर्शन कर सकता है लेकिन यह धरना-प्रदर्शन कानून के तहत होना चाहिए। यानी अगर किसी इलाके में मैजिस्ट्रेट ने निषेधाज्ञा यानी धारा 144 लगा रखी है तो वहां धरना प्रदर्शन नहीं हो सकता। मैजिस्ट्रेट धारा-144 लगा सकता है। अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो पुलिस उस पर कार्रवाई कर सकती है। साथ ही सरकार द्वारा तय इलाके में धरना और प्रदर्शन हो सकता है, जिस इलाके में इसकी मनाही है वहां प्रदर्शन नहीं हो सकता। विचार अभिव्यक्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है बल्कि संविधान के अनुच्छेद-19(2) में वाजिब प्रतिबंध है और इसके तहत सरकार धरना प्रदर्शन को सीमित कर सकती है या फिर उस पर रोक लगा सकती है।

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