एक ऐसा म्यूजियम जिसके तहखाने में रखा है बेहद ही अजीब किस्म का खजाना
म्यूजियम ऑफ लंदन के तहखाने में बेहद अजीब किस्म का खजाना रखा है। इसके बारे में शायद ही यहां आने वालों को भनक हो। म्यूजियम में ऊपर भले ही आपको चलते हुए रोमन काल से लेकर विक्टोरिया युग में जाने का अहसास हो। तहखाने में जाएंगे तो यकीनन आप चौंक जाएंगे।
इस तहखाने में तरतीब से रखे हुए हैं हजारों गत्ते के बक्से। ठीक वैसे ही जैसे आप, घर बदलते वक्त इस्तेमाल करते हैं, सामान पैक करने के लिए। आप सोचेंगे कि इनमें कुछ खास सामान रखा है। मगर इनके लेबल देखेंगे तो चौंक जाएंगे। इन पर लिखा हुआ है मानव कंकाल।
बरसों पहले खत्म हो चुकी जिंदगियों के ये सबूत, लंदन और उसके आस-पास की खुदाई के दौरान मिले हैं। इनमें से कई महज एक सदी पुराने हैं तो बहुत से हजार साल पुराने भी हैं। लंदन म्यूजियम में जमा ये मानव कंकाल, शायद इंसानी अवशेषों का दुनिया में सबसे बड़ा खजाना हैं।
इन कंकालों की देखभाल करने वाली येलेना बेक्वालाक कहती हैं कि ये इंग्लैंड के रोमनकाल से लेकर उन्नीसवीं सदी तक की कहानी सुनाने वाले कंकाल हैं। इन्होंने इतिहासकारों को लंदन का इतिहास यूं बताया है, जैसे कोई बुजुर्ग पुराना किस्सा सुना रहा हो।
येलेना बताती हैं कि इन कंकालों की पड़ताल के बाद कई बार इतिहासकारों ने लंदन के इतिहास में फेरबदल किया है। जैसे कि लंदन की बदनाम 'ब्लैक डेथ' यानी प्लेग से हुई मौत से जुड़ी बातों को इन कंकालों के जरिए नए सिरे से जाना समझा गया। माना जाता है कि ब्लैक डेथ के दौरान लंदन शहर पूरी तरह बर्बाद हो गया था। मगर इन कंकालों को देखकर पता चलता है कि प्लेग से मरने वालों की कब्रें बेहद करीने से खोदी गई थीं। यहां कोई भगदड़ का माहौल नहीं दिखता।
ये माना जाता है कि मध्य युग में इंसान दांतों की सफाई को लेकर बेपरवाह थे। दांतों की सफाई का चलन, आधुनिक युग की देन माना जाता है। मगर, लंदन में मिले कंकाल बताते हैं कि मध्य युग में लोगों के दांत ज्यादा साफ रहते थे। शायद इसका ताल्लुक हमारे चीनी खाने से है, क्योंकि चीनी ही हमारे दांतों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसी तरह लंदन के इन कंकालों से पता चलता है कि इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति का असर लोगों की सेहत पर कैसा पड़ा था। हालांकि अभी इसकी पूरी पड़ताल की जानी बाकी है।
लंदन में पिछली कई सदियों में लाखों लोग दफन किए गए हैं। इनमें से ज्यादातर कंकाल, शहर के विकास के लिए होने वाली खुदाई के दौरान निकले हैं। कभी मेट्रो के लिए तो कभी नई इमारतें बनाने के लिए। जानकार कहते हैं कि पहले चर्च ही कब्रिस्तानों की देख-रेख करते थे। कई बार जब चर्चों को अपने स्कूल का विस्तार करना होता था तो वो पुराने कब्रिस्तानों को ही बेच देते थे। इन्हीं की खुदाई के दौरान बहुत से कंकाल मिले। जैसे कि 2011 में चर्च ऑफ इंग्लैंड के प्राइमरी स्कूल के खेल के मैदान की खुदाई में 959 कंकाल मिले।
कई बार पुराने कंकालों को फिर से दफन कर दिया जाता है। ऐसा विकास की प्रक्रिया के दौरान निकले कंकालों के साथ होता है, या फिर कुछ ऐसे कंकाल मिलते हैं जिनसे बहुत ज्यादा जानकारी होने की उम्मीद नहीं होती। फिर भी ऐसे कंकाल काफी मात्रा में मिल जाते हैं जिनसे लंदन के इतिहास की झलक मिल सकती है। ऐसे कंकाल म्यूजियम ऑफ लंदन की देख-रेख में दे दिए जाते हैं।
कई बार अच्छे से संवारे हुए बाल या करीने से काटे गए नाखून मिलते हैं। ये अक्सर मध्य युग के होते हैं। अब इन कंकालों को दो हिस्सों में बांटकर इनकी पड़ताल की जा रही है। जैसे कि करीब पंद्रह सौ कंकाल लंदन के हैं और एक हजार कंकाल लंदन के बाहर के। इसी तरह कुछ औद्योगिक क्रांति से पहले के हैं तो कुछ उसके बाद के हैं। इनके बीच तुलना करके दो अलग-अलग दौर के बीच के फर्क को समझने की कोशिश की जा रही है।
कंकालों की पड़ताल में आधुनिक तकनीक काफी मददगार साबित हो रही है। जैसे कि रेडियोग्राफी और सीटी स्कैन। इनकी मदद से उस दौर के इंसानों की सेहत के बारे में अच्छी खासी जानकारी मालूम हो जाती है। जैसे कि औद्योगिक क्रांति से इंग्लैंड के लोगों का रहन-सहन काफी बेहतर हुआ था, लेकिन उन्हें मोटापे और डायबिटीज जैसी बीमारियों से भी दो-चार होना पड़ा। म्यूजियम में रखे कंकालों से ये बातें सामने आई हैं। अक्सर बीमारियों का असर हमारी हड्डियों पर होता है। इनकी महीन जांच से हमें इस असर का अंदाजा होता है।
पहले इतिहासकार उस दौर के दस्तावेजों से अंदाजा लगाते थे कि किसी खास दौर में लोगों को किस तरह की बीमारियां होती थीं। लेकिन, दिक्कत ये है कि अलग दौर में डॉक्टर किसी मर्ज को अलग-अलग तरह से समझते और लिखते थे। इसलिए आज कंकालों की पड़ताल से हमारी पुराने दौर के लोगों की बीमारियों की समझ बेहतर हुई है।