ग्रामीणों की माँग पर सरपंच ने कराया भवरपुर के एतिहासिक तालाब की सफाई
जोगी एक्सप्रेस
महासमुंद[अनुराग नायक] भंवरपुर सरपंच कृष्ण कुमार पटेल ने ग्रामीणों की विशेष मांग पर अमल करते हुए भंवरपुर के ऐतिहासिक रानी सागर तालाब की सफाई की मांग को स्वीकार करते हुए जल्द ही इस संबंध में प्रस्ताव लाकर पास करवा कद और उतनी ही जल्द सफाई का काम शुरू करवा कर उन्होंने इस कार्य में ग्रामीणों के सहयोग से संभव कर दिखाया
इसके लिए तालाब का पूरा पानी खाली करना पडा जो पहले ही बहुत गंदा हो चुका था
पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका था ग्राम पंचायत द्वारा जेसीबी मसीन लगा कर रानी तालाब के जल कुम्भी और मलबा को हटाया गया रानी सागर की सफाई के लिए ग्राम पंचायत सहित पुरे गाँव ने इसके लिए सहयोग किया और स्वच्छ्ता अभियान को अंजाम तक पहुचाया
लगभग तीन दशक से भंवरपुर का रानी सागर तालाब सफाई की बाट जोह रहा था गंदगी से अटा पड़ा तालाब के बारे में बुजुर्ग बताते हैं कि 1987-88 में तत्कालीन सरपंच ने इस तालाब की सफाई करवाई थी। उसके बाद से किसी ने भी तालाब की खोज-खबर नहीं ली थी लिहाजा तालाब की अब तक सफाई नहीं हो पाया था भंवरपुर की आधी आबादी निस्तारी के लिए इसी तालाब पर निर्भर है।
ऐतिहासिक रानी सागर तालाब की सफाई जोरों पर चला तालाब में जमीं गंदगी की परतें हटाई गई कीचड़ के साथ-साथ तालाब का इतिहास भी बाहर आ रहा था तालाब के इतिहास को जानने के जिज्ञासु गांव के बड़े बुजुर्गों के पास जा रहे थे रानी सागर तालाब का इतिहास अौर उससे जुड़ी यादें ताजा करने के लिए बुजुर्ग यहां जमा होने लगे थे
भैना राजाओं ने बनवाया था :
बुजुर्ग बताते हैं कि भंवरपुर गांव में भैना राजाओं का राज्य हुआ करता था तब उन्हीं राजाओं ने अपनी रानियों के नहाने के लिए इस तालाब को बनवाया गया था।
उन्होंने इस तालाब के पार को बड़ी-बड़ी सराई की लकड़ियों से तैयार किया था। तालाब के भीतर पांच कुएं भी खुदवाये थे, जिनमें एक कुआं तालाब के बीचों बीच स्थित था। इन्हीं कुओं के भीतर से राजा ने तीन सुरंगें खुदवा रखी थी जिनमें एक सुरंग सारंगढ़, दूसरी सुरंग गढ़ फुलझर और तीसरी सुरंग पिरदा के राजमहल को जाती थी। बरसात का पानी तालाब में भरने लगता था तब उस कुएं के ऊपर से पानी की एक धार ऊपर की ओर फव्वारे के जैसे निकलती रहती थी जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते थे।
पहले हर दो साल में होती थी सफाई
बीच वाले कुएं के अलावा बाकी चार कुएं जो कि किनारों पर खोदे गए थे, वो तालाब के सूख जाने पर पानी की जरूरतों को पूरी करते थे और निस्तारी के काम भी आते थे। 41 वर्ष पहले 1975 में तालाब की सफाई करवाने के लिए उस समय के सरपंच ने तालाब को खाली करवाया था तभी वो बड़ी बड़ी सराई की लकड़ियां भी निकली थी, जिनसे तालाब के तटों को बांधा गया था। 1975 की सफाई के बाद इस तालाब की सफाई तीन बार और हो चुकी है, मगर अब तक वो कुएं नजर नहीं आएं हैं।
इस तरह गढ़फुलझर और पिरदा के ऐतिहासिक तालाबो का भी अभियान चलाकर तालाबो का सफाई अभियान चलाया जाना चाहिए