जिला स्तरीय नेशनल ट्रायबल डांस फेस्टिवल : ट्रायबल डांस फेस्टिवल से आदिवासियों को अपनी कला-संस्कृति का प्रदर्शन करने का मिला मौका- मंडावी
संस्कृति को संवारने और संजोने की पहल है डांस
फेस्टिवल-कलेक्टर श्री मौर्य
राजनांदगांव नेशनल ट्रायबल डांस फेस्टिवल 2019 के अंतर्गत आज राजनांदगांव के पùश्री गोंविदराम निर्मलकर ऑडिटोरियम में जिला स्तरीय डांस फेस्टिवल का आयोजन किया गया। मोहला-मानपुर के विधायक श्री इन्द्रशाह मंडावी तथा कलेक्टर श्री जयप्रकाश मौर्य ने दीप प्रजवलित कर जिला स्तरीय ट्रायबल डांस प्रतियोगिता का शुभारंभ किया। जिला स्तरीय डांस फेस्टिवल में आदिवासी मांदरी नृत्य, हरेखा पायली द्वारा मांदरी नृत्य, जय बजरंदल डंडा नृत्य दल मंजियापार द्वारा डंडा नृत्य, जय बूढ़ा देव सांस्कृतिक मंच, आदिवासी नाचा पार्टी खेड़ेगांव द्वारा आदिवासी नृत्य, आदिवासी जय लिंगों नृत्य आंको द्वारा गोंडवाना जागृति नृत्य तथा जय ईशर गौरा नृत्य, मां कर्मा दल सांकरी गातापार द्वारा कर्मा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम की शुरूआत में रायगीत ‘अरपा पैरी के धार’ का गायन किया गया।
विधायक श्री इन्द्रशाह मंडावी ने अपने उद्बोधन में कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने ट्रायबल डांस फेस्टिवल के जरिए आदिवासियों को अपनी कला-संस्कृति का प्रदर्शन करने का मौका दिया है। श्री मंडावी ने कहा कि आदिवासी समाज के सभी लोगों को अपनी कला संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन पर गर्व होना चाहिए। इस समाज को अपनी पहचान हमेशा बनाई रखनी चाहिए। श्री मंडावी ने कहा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने हम सबके लिए लड़ाई लड़ी है। उन्होंने अपने मजबूत इरादों से संविधान में व्यवस्था करके हमें आगे बढ़ने का अवसर दिया है। श्री मंडावी ने कार्यक्रम में उपस्थित युवा छात्र-छात्राओं से कहा कि आपके परिजन उम्मीदों के साथ पढ़ने-लिखने के लिए भेजे हैं। परिजनों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए लगन और मेहनत से पढ़ाई करें। जीवन में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। लेकिन हमें सफलता के लिए लगातार कोशिश करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
कलेक्टर श्री जयप्रकश मौर्य ने कहा कि नेशनल ट्रायबल डांस फेस्टिवल के जरिए छŸाीसगढ़ के आदिवासी समाज की लोक कलाए संस्कृति, परंपरा, खान-पान को नई पहचान मिलेगी। श्री मौर्य ने कहा कि हर समुदाय अपनी खुद की संस्कृति बनाता है। प्रशासन की भूमिका इस संस्कृति को संवारने और संजोने की होती है। श्री मौर्य ने कहा कि अपनी स्थानीय बोली की एक अलग मिठास होती है। इस बोली में अपनापन होता है। जिस बोली या भाषा में आप अपनी भावनाएं अच्छे से व्यक्त कर सकते हैं। वहीं बोली या भाषा सबसे अच्छी होती है।
श्री मौर्य ने कहा कि लोकगीत दिल को छू जाते हैं। इससे मन को सुकून मिलता है। लोकगीत प्रकृति पर आधारित होते हैं। इनमे प्रकृति पूजा की महिमा यादा रहती है। स्थानीयता का प्रतिनिधि लोकगीतों के जरिए होता है। श्री मौर्य ने कहा कि व्यावसायिकता के इस दौर में भी लोक कलाकार व्यावसायिक नहीं हुए हैं। अपने प्रदर्शन की जरिए वे कला संस्कृति को संरक्षित करने का काम करते हैं। श्री मौर्य ने कहा कि आदिवासी और जंगल एक-दूसरे के पूरक हैं। कई उदाहरण मिलेंगे जिससे साफ होता है कि जहां आदिवासी आबादी नहीं है, वहां जंगल भी नहीं बचा है। श्री मौर्य ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी बोली, संस्कृति, कलाए रहन-सहन पर गर्व होना चाहिए। श्री मौर्य ने छात्र-छात्राओं से कहा कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहे पर पढ़-लिखकर तेजी से आगे बढें। पढ़-लिखकर आगे जाने के साथ ही पीछे मुड़कर भी देखें और अन्य लोगों को आगे बढ़ने में मदद करें।
राजगामी संपदा के अध्यक्ष श्री विवेक वासनिक ने कहा कि कला भी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। आदिवासी कला संस्कृति अ˜ूत और बेजोड़ हैं। समान अवसर नहीं मिलने के कारण आदिवासी समाज भी विकास के दौड़ में पीछे रह गया। उन्होंने कहा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने वंचितों को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया और उन्हें प्रेरित किया। सहायक आयुक्त आदिवासी विकास श्री देशलहरे ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में अंतर्राजातीय विवाह करने वाली चार दंपŸिायों को राय शासन की योजना के अनुसार एक-एक लाख रूपए प्रोत्साहन बतौर दिए गए। शेष डेढ़-डेढ़ लाख रूपए इनके खाते में जमा कराए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि राय शासन द्वारा ऐसी दंपŸिायों को ढाई-ढाई लाख रूपए प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस अवसर पर विभिन्न संस्थाओं के छात्र-छात्राओं द्वारा व्यंजन स्टॉल भी लगाए गए। मुख्य अतिथि श्री मंडावी ने स्टॉलों का निरीक्षण भी किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।