अयोध्या केस : आरंभ से लेकर अंत तक रामलला का कवच बनी अदालत
अयोध्या
रामजन्मभूमि में विराजमान ‘रामलला' का आजादी के बाद शुरू हुआ सफर अदालत के ही आदेश पर निर्भर रहा। अदालत ने न केवल उन्हें उनकी अपनी जन्मभूमि में काबिज रखा है, बल्कि उनकी सुरक्षा व उत्सव-समैया के आयोजन का भी प्रावधान किया।
खास यह था कि एक तरफ सिविल अदालत में चल रहे विवाद की सुनवाई भी नहीं हुई थी कि नौ नवंबर 1989 को मंदिर का शिलान्यास भी करा दिया गया। यह शिलान्यास भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आलोक में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कराया। शिलान्यास के अवसर पर तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह भी मौजूद रहे।
6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे के ध्वंस के बाद जनवरी 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के जस्टिस एचएन तिलहरी के आदेश से विराजमान रामलला की पूजा-अर्चना एवं चैत्र राम नवमी से लेकर विभिन्न पर्वों पर उत्सवों का आयोजन किया जा रहा है। इस व्यवस्था में अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर की ओर से रामलला के भोग-राग के अलावा पुजारियों के वेतन के लिए एक निश्चित धनराशि दी जाती है । इसके पहले 22/23 दिसंबर 1949 को विवादित परिसर में रामलला के पदार्पण के बाद उनके कब्जे में दखल न देने का आदेश भी अवर न्यायालय ने ही दिया था। तभी से प्रतिवर्ष पौष शुक्ल तृतीया को श्रीरामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से रामलला का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है।
9 दिवसीय यह प्राकट्योत्सव पहले गर्भगृह में ही मनाया जाता था लेकिन वर्ष 2002 में दर्शनार्थियों की सुविधा की मांग को लेकर विहिप सुप्रीमो अशोक सिंहल के जबरन गर्भगृह में घुसने के बाद प्राकट्योत्सव बाधित हो गया। पुन: कोर्ट के ही आदेश के आलोक में पुजारी के माध्यम से अंतिम दो दिन पूजन की अनुमति दी गई है। यही नहीं रामजन्मभूमि पर 1949 से लगे ताले को एक फरवरी 1986 को खोला गया। यह आदेश तत्कालीन जिला जज केएम पाण्डेय ने अधिवक्ता उमेश चंद्र पाण्डेय के प्रार्थना पत्र पर दिया था।
राम चबूतरे का निर्माण भी
रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान विवादित परिसर में राम चबूतरे का निर्माण भी कोर्ट की ओर से अविवादित भूमि निर्धारित कर दिए जाने के बाद हो सका। तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री सुबोध कांत सहाय यहां मौजूद रहे। इसके बाद रामजन्मभूमि न्यास की ओर से रामजन्मभूमि परिसर में समतलीकरण का कार्य कराया गया। तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चह्वाण यहां मौजूद रहे। अब सुप्रीम कोर्ट ने रामलला का पूरी तरह से स्थापित कर दिया है। सुप्रीम आदेश से पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 30 सितम्बर 2010 को रामलला के अस्तित्व को स्वीकार कर उनके पक्ष में आदेश सुनाया था।