सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर फैसला देते हुए बंद किए मथुरा और काशी पर मुकदमे के रास्ते?
नई दिल्ली
अयोध्या पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि हिंदुओं को देने और मुस्लिम पक्ष के लिए 5 एकड़ भूमि आवंटित करने का आदेश देकर भविष्य के लिए भी बड़ी लकीर खींची है। शीर्ष अदालत के इस फैसले के साथ ही काशी और मथुरा में मौजूदा स्थिति में किसी भी तरह के बदलाव के लिए याचिकाओं के दरवाजे भी एक तरह से बंद हो गए हैं। यहां भी लंबे समय से पूजा को लेकर विवाद रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) ऐक्ट पर खास जोर दिया। इस ऐक्ट से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था, जिस पर उस दौर में अदालत में केस चल रहा था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने फैसला सुनाते हुए देश के सेक्युलर चरित्र की बात की। इसके अलावा बेंच ने देश की आजादी के दौरान मौजूद धार्मिक स्थलों के जस के तस संरक्षण पर भी जोर दिया।
1991 का ऐक्ट धार्मिक स्थलों पर किसी भी तरह के विवाद पर नई याचिकाओं और मामले की सुनवाई पर रोक की बात करता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री एसबी चव्हाण के बयान का भी जिक्र किया। चव्हाण ने कहा था कि यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल में जबरन बदलाव करने पर रोक लगाता है। इसके अलावा ऐसे पुराने विवाद भी उठाने की अनुमति नहीं है, जिन्हें अब लोगों के द्वारा भुलाया जा चुका है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1991 का यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है। बेंच ने कहा, 'देश ने इस ऐक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है।' कोर्ट ने कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट देश में मजबूती से सेक्युलरिज्म के मूल्यों को लागू करने की बात करता है। यह एक तरह से देश में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर चलने का विधायी प्रावधान है, जो हमारे संविधान का बेसिक है।