अंतिम सांस तक राम मंदिर के लिए समर्पित रहे अशोक सिंहल, जानें उनका योगदान
प्रयागराज
अयोध्या मुद्दे का फैसला शनिवार को आने के बाद राम मंदिर समर्थकों के जेहन में अशोक सिंहल का नाम कौंध गया। विश्व हिन्दू परिषद के लंबे समय तक अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंहल आजादी के बाद भारतीय इतिहास में ऐसे व्यक्तित्व के रूप में स्थापित हैं जिन्हें राम मंदिर आन्दोलन के पर्याय के रूप में जाना व पहचाना जाता है। 17 नवंबर 2015 को अंतिम सांस लेने तक वह राम मंदिर निर्माण के अपने संकल्प के प्रति समर्पित रहे।
अशोक सिंहल ने राम मंदिर के विषय को लेकर देशव्यापी आंदोलन की ऐसी संरचना तैयार की जिसने देश की राजनीति की दिशा और दशा को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाशिमपुर रोड स्थित महावीर भवन से मंदिर आंदोलन को देश-दुनिया तक ले गए। अशोक सिंहल का जन्म 27 सितम्बर 1926 को आगरा में हुआ था। उनके पिता महावीर सिंहल अलीगढ़ जिले के बिजौली गांव के थे। युवावस्था में वह आगरा में रहने आए और बाद में नौकरी के सिलसिले में प्रयाग आ गए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक के पूर्व सर संघ चालक प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भइया के साथ उनके पिता महावीर सिंहल की निकटता के कारण वह 1942 से ही संघ की शाखाओं में जाने लगे थे, लेकिन उनका सीधा जुड़ाव 1950 में हुआ। उसी वर्ष उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बीटेक की डिग्री हासिल की थी। फिर वह किसी नौकरी में जाने के बजाए संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बनकर हिन्दुत्व के उत्थान में जुट गए।
अयोध्या विवाद के संदर्भ में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में साक्षी बनकर प्रस्तुत हुए जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कुम्भ 2019 के दौरान राम मंदिर निर्माण की जोरदार वकालत की थी। आपके अपने अखबार 'हिन्दुस्तान' से साक्षात्कार में उन्होंने प्रश्न 'गुरुजी राम मंदिर का निर्माण कब होगा?' के जवाब में कहा था, 'मैं राम मंदिर प्रकरण से 1984 से जुड़ा हूं। मेरा मोदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) या किसी अन्य किसी से झगड़ा नहीं है। परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सरकार मुख्य कार्यक्रम में इसे शामिल क्यों नहीं कर रही। राम मंदिर प्रकरण में सरकार की उदासीनता से प्रसन्न नहीं हूं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल रही है, उम्मीद है कि इस महीने 29 से सुनवाई हो सकेगी। जब भिन्न-भिन्न प्रकरणों में अध्यादेश लाया जा सकता है तो राम मंदिर पर क्यों नहीं। हालांकि अध्यादेश सर्वमान्य नहीं होगा। मैं इतना जानता हूं कि राम मंदिर पहले बनना चाहिए, सरकार रहे या न रहे।'