अयोध्या फैसला: जानें क्या था ASI रिपोर्ट में, जिसका सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार जिक्र किया
लखनऊ
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की जिस रिपोर्ट का हवाला उच्चतम न्यायालय ने बार-बार दिया है, दरअसल वह रिपोर्ट एएसआई के तत्कालीन निदेशक हरी मांझी और तत्कालीन सुपरिटेंडिंग इंचार्ज बीआर मणि की थी। इन दोनों पुरातत्व विशेषज्ञों ने वर्ष 2003 में उच्च न्यायालय के आदेश पर अयोध्या के विवादित स्थल की खुदाई करवाकर यह रिपोर्ट तैयार की थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अयोध्या में विवादित परिसर के आसपास खाली जमीन नहीं थी। 12वीं सदी ईसा पूर्व से लगातार वहां बसावट थी। इसके अलावा विवादित ढांचे के ठीक नीचे मंदिर के अवशेष मिले ,जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहां पहले कभी मंदिर रहा होगा। इससे पहले 1969-70 से लेकर 1975-76 के दरम्यान एएसआई की ओर से प्रोफेसर बी.बी. लाल ने अपनी टीम के साथ अयोध्या में विवादित परिसर के आसपास खुदाई की और अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।
12 मार्च 2003 को तत्कालीन रिसीवर व मंडलायुक्त रामशरण श्रीवास्तव की निगरानी में एएसआई की टीम ने वहां उत्खनन कार्य शुरू किया। मौके पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष के वकील भी मौजूद रहे। एएसआई की टीम में हिंदू व मुस्लिम दोनों समुदायों के विशेषज्ञ भी थे। इस टीम का नेतृत्व डॉ. बी.आर. मणि कर रहे थे। लगभग दो महीनों तक एएसआई ने इस जगह की खुदाई की। इसमें 131 मजदूरों को लगाया गया था। 11 जून को एएसआई ने अंतरिम रिपोर्ट जारी की और अगस्त 2003 में उच्च न्यायालय में 574 पेज की अंतिम रिपोर्ट सौंपी।
राम चबूतरे के नीचे भी एक पत्थर का चबूतरा
खम्भों के आधार मतलब खम्भों का निचला हिस्सा कच्ची ईंटों से बना हुआ था। खुदाई में सभी खम्भे एक कतार में मिले थे। एक दूसरे से लगभग 3.5 मीटर दूर। खुदाई के दौरान राम चबूतरे के नीचे पलस्तर किया हुआ चबूतरा मिला था। यह 21 गुना 7 फीट पत्थर का बना था। इससे 3.5 फीट की ऊंचाई पर 4.75 गुना 4.75 फीट की ऊंचाई पर दूसरा चबूतरा मिला। इस पर सीढ़ियां थीं जो नीचे की ओर जाती थीं। रिपोर्ट के निष्कर्ष में उन्होंने किसी नाम का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन आखिरी पैराग्राफ में उन्होंने लिखा है कि पश्चिमी दिशा की दीवार, खम्भों के अवशेषों और खुदाई में मिली चीजों से ये पता चलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर मौजूद था। इसके बाद 1990 से 92 के बीच उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने विवादित परिसर में समतलीकरण का काम शुरू किया। उस वक्त भी वहां पर कुछ अवशेष मिले थे, जिस पर मुस्लिम पक्ष ने एतराज उठाते हुए कहा था कि यह अवशेष वहां बाहर से लाकर डाल दिए गए थे।
मंदिरों में थी आमलक लगाए जाने की परंपरा
वर्ष 1989 में प्रो. बी.बी. लाल यह बयान देकर चर्चा में आए कि उन्हें उत्खनन में वहां मंदिर के स्तम्भ मिले थे। इस बात की तस्दीक उस समय उनके सहयोगी ट्रंच सुपरवाइजर रहे के.के. मोहम्मद ने भी की। आमलक की व्याख्या करते हुए केके मोहम्मद ने मान्यता दी कि उत्तर भारत के मंदिरों में शिखर के साथ आमलक लगाए जाने की परंपरा थी और इससे सिद्ध होता है कि उस स्थल पर मंदिर था। इसके बाद यह मामला तूल पकड़ गया था।
11-12 वीं शताब्दी की इमारत का ढांचा मिला
रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदाई में 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के अवशेष मिले हैं। उनमें कुषाण, शुंग काल से लेकर गुप्त और प्रारंभिक मध्य युग तक के अवशेष हैं। गोलाकार मंदिर सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया। प्रारंभिक मध्य युग के अवशेषों में 11-12 वीं शताब्दी की 50 मीटर उत्तर-दक्षिण इमारत का ढांचा मिला। इसके ऊपर एक और विशाल इमारत का ढांचा है, जिसका फर्श तीन बार में बना। यह रिहायशी इमारत न होकर सार्वजनिक उपयोग की इमारत थी। रिपोर्ट के अनुसार, इसी के भग्नावशेष पर वह विवादित इमारत (मस्जिद) 16वीं शताब्दी में बनी।
50 विशाल खंम्भों ने दावा पुख्ता किया
एएसआई ने दो खंडों में विस्तृत रिपोर्ट, फोटोग्राफ, नक्शे और ग्राफिक अदालत में पेश किए थे। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि खुदाई में जो चीजें मिलीं, उनमें सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, आमलक, द्वार चौखट, ईंटों का गोलाकार मंदिर, जल निकास का परनाला और एक विशाल इमारत से जुड़े 50 खंभे शामिल हैं। दैवीय युगल की तुलना शिव-पार्वती और गोलाकार मंदिर की तुलना पुराने शिव मंदिर से की गई है। यह सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया है। इसके अलावा मगरमच्छ, घोड़ा, यक्षिणी, कलश, हाथी, सर्प आदि से जुड़े टुकड़े भी मिले।
एएसआई की रिपोर्ट
2003 में हुई थी खुदाई विवादित स्थल पर। नीचे जाने का रास्ता भी मिला था
1989 में प्रो. बी.बी. लाल यह कह चर्चा में आए कि उन्हें वहां मंदिर के स्तम्भ मिले